PMनरेंद्र मोदी हैं सबसे अलग, पीएम नरेंद्र मोदी! जो किसी ने नहीं किया वो भी कर दिया

PM Narendra Modi is different from everyone! I did what no one else did
PM Narendra Modi is different from everyone! I did what no one else did
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नई दिल्ली: बात 2019 लोकसभा चुनाव से कुछ समय पहले की है… देश की राजधानी नई दिल्ली में बीजेपी के सीनियर नेता अमित शाह बोल रहे थे… उन्होंने बीजेपी के नेशनल लेवल के प्रोग्राम में अप्रैल-मई में होने वाले आम चुनाव को विचारधाराओं की लड़ाई करार दिया … लोकसभा चुनाव की तुलना पानीपत की तीसरी लड़ाई से करते हुए उन्होंने कहा था कि मराठाओं की हार के ब्रिटिश राज आ गया। इसी तरह बीजेपी की हार से गुलामी की तरफ लेकर जाएगी।बीजेपी ने इस चुनाव में बड़े मार्जिन से जीत हासिल की और नरेंद्र मोदी ने लगातार दूसरी बार पीएम पद की शपथ ली। बीते शुक्रवार को, यानी 2019 चुनाव के पांच साल बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा की कि वह प्राण प्रतिष्ठा से पहले खुद को तैयार करने के लिए ग्यारह दिनों का खास अनुष्ठान कर रहे हैं।

आने वाले दिनों में अयोध्या में होने जा रहे कार्यक्रम को संघ जब देश के कोने-कोने में लेकर जाएगा तो यह निश्चित ही 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए बिगुल बजाने का काम होगा। इसके अलावा संघ अपने इस कार्यक्रम के जरिए सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर भी फोकस करेगा।

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर आगे बढ़ेगी बीजेपी?
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विषय पर अपनी पार्टी को आगे आकर लीड कर रहे नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों को बैक फुट पर धकेल दिया है। मोदी को मुकाबला करने के लिए आइडिया खोज रहा विपक्ष मुद्दे और नेरेटिव की तलाश कर रहा है। आने वाला लोकसभा चुनाव ऐसी ही एक और स्टेज हो सकता है।

दिलचस्प बात यह है कि एक दशक तक राष्ट्रीय स्तर पर और हिंदी पट्टी में पार्टी के एकछत्र रूप से शासन को लेकर बीजेपी में मौजूद उत्साह के माहौल के बीच पार्टी के नेताओं के एक वर्ग का मानना है कि “विचारधारा-आधारित लोकतांत्रिक संगठन” के रूप में पार्टी की पहचान को भी संरक्षित किया जाना चाहिए। इसे भविष्य में अपने दम पर खड़ा होने में सक्षम बनाएं।

हिंदुत्व और विकास के पर्याय बन गए मोदी?
अब तक, यह मोदी का रथ है जो हर जगह चल रहा है। पार्टी के नेता भी यह स्वीकार कर रहे हैं कि पीएम उनके तीन प्रमुख चुनावी मुद्दों – हिंदुत्व, विकास और वैश्विक मंच पर विश्वगुरु के रूप में भारत की महिमा का पर्याय बन गए हैं।हाल के विधानसभा चुनावों के नतीजे ने साबित कर दिया है कि विपक्ष की वेलफेयर पॉलिटिक्स हो या ओबीसी पुश- दोनों को ही विशेष रूप से उत्तर भारत में ज्यादा बढ़ावा नहीं मिल रहा है। इन राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों या मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला कास्ट सर्वे, रेवड़ी पॉलिटिक्स और सॉफ्ट हिंदुत्व कारगर साबित नहीं हुए हैं।दूसरी तरफ पीएम मोदी की “सोशल इंजीनियरिंग” और उनकी “गारंटी” ने फिर से बीजेपी के लिए काम किया।

मोदी की छवि का फायदा उठाना चाहती है बीजेपी
हाल में दिनों में आए राज्यों के चुनावी नतीजे ये दर्शाते हैं कि जाति अब प्रमुख चुनावी फैक्टर नहीं रह गई है, इसके उलट ऐसा लगता है कि वोटर मोदी के विकास मॉडल पर भरोसा करते हैं। एक संगठन के रूप में बीजेपी पीएम मोदी के संदेशों की लोगों तक ले जा रही है और उनकी लोकप्रियता का फायदा उठा रही है। विभिन्न इलाकों में कई बीजेपी नेताओं ने स्वीकार किया कि मतदाता पार्टी को नहीं बल्कि मोदी को वोट दे रहे थे।

इसीलिए बीजेपी को इस समर्थक वर्ग को अपने कैडर वोट में मिलाने के लिए अपने संगठनात्मक प्रयासों को बढ़ाना होगा। आने वाले चुनाव में विपक्ष के सामने एक बड़ी चुनौती पीएम नरेंद्र मोदी की हिंदुत्व आइकन वाली छवि का मुकाबला करना होगा। बीजेपी के अंदरुनी लोगों की मानें तो पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा हाल में दी गई उपवास और अनुष्ठान की जानकारियों को इसमें इजाफा करने वाला मानते हैं।

राम मंदिर निर्माण के केंद्र में अब सिर्फ मोदी
भले ही विश्व हिंदू परिषद और आरएसएस के नेतृत्व ने राम जन्मभूमि आंदोलन के जरिए राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया, लेकिन अब मोदी आने वाले कार्यक्रम के केंद्र में हैं। बीजेपी ने भी इसे मोदी कार्यक्रम बनाने के लिए अपनी पूरी ताकत और संसाधन लगा दिए हैं। राज्य और धर्म के बारे में प्रश्न अब बेकार मालूम पड़ते हैं क्योंकि राज्य धार्मिक समारोह में नेतृत्व कर रहा है और इसकी औपचारिक और अनौपचारिक संरचनाएं प्रधानमंत्री के पीछे लामबंद हो रही हैं।

राजनीति और सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों की इस मेल को पहले किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा इस हद तक न तो एक्सप्लोर किया गया और न ही ऐसा प्रयास किया गया। यह न सिर्फ विपक्ष के लिए चुनौती होगी बल्कि भावी प्रधानमंत्रियों के लिए भी सवाल खड़ा कर सकता है। पीएम मोदी के उलट पंडित जवाहरलाल नेहरू अपनी सरकार को सोमनाथ मंदिर पुनर्निर्माण से अलग करने के फैसले में राज्य और धर्म को अलग रखने के बारे में स्पष्ट थे। पीएम मोदी से पहले अटल बिहारी वाजपेयी भी पीएम पद पर रहते हुए जानबूझकर सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में गहरी छलांग लगाने से दूर रहे।