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महासमुंद. भगवान शिव की महिमा से कोई अछूता नहीं है. पुराणों के अनुसार, शिव मंदिरों में दर्शन करने से सभी इच्छाएं पूरी हो जाती है. छत्तीसगढ़ में शिव को समर्पित ऐसे कई मंदिर हैं जो खूबसूरती और रहस्यों से भरे हुए हैं. महासमुंद जिले के ग्राम भंवरपुर स्थित शिव मंदिर की दूर-दूर तक प्रसिद्धि है. यहां मौजूद शिवलिंग स्वंभू है. दावा किया जाता है कि ये जमीन से अपने आप निकला है. इसके अंतिम छोर का आज तक पता नहीं लगाया जा सका है. लोगों में ऐसी मान्यता है कि यहां सच्चे मन से की गई मनोकामना स्वयंभू भोलेनाथ जरूर पूरी करते हैं. जिसके कई उदाहरण आज भी इस क्षेत्र में मौजूद है. महाशिवरात्रि और सावन के पूरे माह यहां भक्तों का तांता लगा रहता है.
भंवरपुर के देव तालाब रानीसागर के किनारे स्थित इस पूर्व मुखी शिव मंदिर का इतिहास जितना पुराना है, उतना ही रोचक भी है. गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि वर्षों पहले इस मंदिर की जगह पर एक खेत था. जहां खेत के मालिक किसान ने एक कुआं बनाने के उद्देश्य से जमीन की खोदाई शुरू की. कुछ दूर खोदाई करने के बाद किसान को उस जगह पर एक गोल पत्थर मिला जो खोदाई को आगे बढने नहीं दे रहा था. किसान ने उस पत्थर को निकालने के लिए बहुत जतन किया. उसने पहले उस गोल पत्थर की गोलाई में खोदाई की फिर वहां पानी डालकर उसे हिला डुला कर निकालने की कोशिश की. लेकिन उसे वह नहीं निकाल पाया. तब उसने पत्थर को तोडऩे के लिए कुदाल से जोरदार प्रहार किया, लेकिन पत्थर पर इसका कोई असर नहीं हुआ.
भगवान शिव ने दिए स्वप्न में दर्शन
गांव वाले दावा करते हैं कि पत्थर पर कुदाल का निशान हो गया, जो आज भी शिवलिंग पर मौजूद है, उसे स्पर्श करके महसूस किया जा सकता है. दिनभर की मेहनत के बाद भी जब किसान सफल नहीं हुआ तो दूसरे दिन किसी भी तरह उस पत्थर को निकालने का संकल्प लेकर घर आ गया और आराम करने लगा. तब उसे स्वप्न में भगवान शिवजी ने दर्शन देकर कहा कि तुम जिस पत्थर को निकालना चाहते हो वो कोई साधारण पत्थर नहीं है, एक शिवलिंग है. मैं स्वयं वहां शिवलिंग के रूप में प्रकट हो रहा हूं. मेरे विचार से तुम्हें उस जगह की खोदाई बंद करके किसी और जगह खुदाई करनी चाहिए.
जमीन से बाहर आ गया था शिवलिंग
कहा जाता है कि सुबह जब किसान उस जगह पर फिर खोदाई करने पहुंचा तो उसने देखा कि वह पत्थर पहले दिन से बाहर आ गया था, धीरे-धीरे यह शिवलिंग बाहर निकल आया. शिवलिंग की पूजा-अर्चना प्रारंभ कर दी और गांव वालों के सहयोग से एक छोटा सा मंदिर उस जगह पर बनाकर कुएं को अन्यत्र जगह पर खोदा गया. जो आज भी मौजूद है. वह पुराना छोटा सा शिव मंदिर आज जन सहयोग से बड़ा और भव्य हो गया है. शिवलिंग आज जमीन से लगभग 3 फीट से ज्यादा ऊपर आ गया है और दावा किया जाता है कि इसकी ऊंचाई दिनों दिन बढ़ती ही जा रही है.
शिवलिंग का नहीं है कोई ओर छोर
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि आज से तकरीबन 35 वर्ष पूर्व 1986 में जब पुराने मंदिर का जीर्णोद्धार करने पुराने मंदिर को तोड़ा गया, तब कुछ भक्तों द्वारा शिवलिंग को भूतल से ऊपर उठाकर स्थापना करने के विचार से शिवलिंग को उखाडने के लिए उसके चारों ओर खोदाई की गई. बहुत गहराई तक खोदने पर भी जब उन्हें शिवलिंग का कोई ओर छोर नजर नहीं आया, तब उन्होंने भगवान शिव से अपने कृत्य पर क्षमा याचना कर शिवलिंग को उखाड़ने का विचार त्याग दिया.