उत्तराखंड में सबने सजा रखे हैं CM पद के सपने, पर सबसे ज्यादा चर्चा में ये दो चेहरे

Everyone has kept their dreams of CM post in Uttarakhand, but these two faces are the most discussed
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देहरादून: उत्तराखंड की राजनीति में इस वक्त दो चेहरे सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। यशपाल आर्य ने चुनाव से ठीक पहले मंत्री पद छोड़ते हुए कांग्रेस में ‘घर वापसी’ कर ली है। इससे जितनी हलचल बीजेपी में नहीं है, उससे कहीं ज्यादा कांग्रेस में शुरू हो गई है क्योंकि उनसे कई तरह के समीकरण बन-बिगड़ सकते हैं। उधर धामी सरकार के एक और मंत्री हरक सिंह रावत हैं तो अभी बीजेपी में ही, लेकिन चुनाव न लड़ने का ऐलान कर उन्होंने पार्टी नेतृत्व को अपने बागी तेवर का अहसास करा दिया है। दोनों के बारे में बता रहे हैं

यूथ कांग्रेस से ही राजनीति का ककहरा सीखे यशपाल आर्य उत्तराखंड में सबसे बड़ा दलित चेहरा माने जाते हैं। वह छह बार विधायक हुए, दो बार यूपी से भी रहे हैं। 2007 से 2014 तक कांग्रेस की उत्तराखंड इकाई के अध्यक्ष थे। कांग्रेस के कद्दावर नेता नारायण दत्त तिवारी के भी करीबियों में गिने जाते थे। तिवारी सरकार के वक्त वह विधानसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वह विजय बहुगुणा और हरीश रावत के नेतृत्व वाली दोनों कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे हैं लेकिन मंत्री रहते हुए कई बार कोप भवन में बैठ कर विरोध जताते रहे हैं। बीजेपी से उनकी नाराजगी की चर्चा पर खुद मुख्यमंत्री पुष्कर धामी उनको मनाने उनके घर गए थे, लेकिन मुख्यमंत्री भी यशपाल को बीजेपी में रोक पाने में नाकामयाब रहे। कहा जाता है कि आर्य ने मुख्यमंत्री बनने के सपने के साथ कांग्रेस में घर वापसी की है। 2016 में जब नौ विधायकों ने विद्रोह कर हरीश रावत की सरकार गिराई थी तो यशपाल आर्य हरीश रावत सरकार को बचाने में भूमिका निभाते दिखे थे। साल 2017 में उन्होंने कांग्रेस में अपने पुत्र संजीव आर्य को पार्टी का टिकट न मिलने पर बीजेपी का दामन थामा। बीजेपी की बहुमत की सरकार बनने पर उन्हें परिवहन और समाज कल्याण मंत्री बनाया गया, बाद में धामी सरकार बनने पर आबकारी मंत्रालय भी उन्हें मिला। उनके बीजेपी छोड़ने के जो कारण बताए जा रहे हैं, उनमें पिछले दिनों पंजाब में कांग्रेस के दलित चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद कांग्रेस नेता हरीश रावत के उत्तराखंड में भी दलित चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने वाला बयान भी शामिल है। लखीमपुर खीरी में प्रियंका गांधी के आक्रामक तेवर दिखाने के बाद बाद कांग्रेस के भीतर आए नए जोश को भी इसकी वजह माना जा रहा है। यशपाल आर्य उधमसिंह नगर जिले की जिस बाजपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ते हैं, वहां सिखों की बहुलता होने से इस क्षेत्र को मिनी पंजाब भी कहा जाता है। किसान आंदोलन के चलते इस क्षेत्र से बीजेपी में रहते जीत दर्ज कराना उनके लिए आसान नहीं था। बीजेपी ने जिस तरह तीन मुख्यमंत्री पांच साल में बनाए और तीसरे मुख्यमंत्री को सबसे जूनियर लोगों से चुना गया, उससे उनके बीजेपी में मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं खत्म हो गई थीं।

जाएं तो जाएं कहां हरक सिंह
मूलरूप से पौड़ी जिले के निवासी डॉ. हरक सिंह रावत ने 80 के दशक में छात्र राजनीति से सियासत में कदम रखा था। हालांकि बीच में गढ़वाल विश्वविद्यालय में डिफेंस साइंस के प्रवक्ता भी बने, लेकिन नौकरी रास नहीं आई। वह 1984 में पौड़ी से बीजेपी के टिकट पर पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े, हार गए। वर्ष 1991 में बीजेपी के ही टिकट पर पौड़ी से फिर चुनाव लड़े और जीत दर्ज की। बीजेपी की कल्याण सिंह सरकार में वह पर्यटन राज्य मंत्री बने। वह उस कैबिनेट के सबसे युवा मंत्री थे। वर्ष 1993 में एक बार फिर हरक सिंह रावत बीजेपी के टिकट पर पौड़ी से ही चुनाव लड़े और जीते। तीसरी बार टिकट न मिल पाने पर उन्होंने बीजेपी छोड़ दी। इस दौर में पौड़ी के जिलाधिकारी से अनबन हुई, जिनको हटवाने के लिए उन्होंने तत्कालीन मायावती सरकार से मेल बढ़ाया और बीएसपी का दामन थाम लिया। एक वक्त उनको बीएसपी चीफ मायावती का विश्वासपात्र माना जाने लगा था। लेकिन कुछ समय बीएसपी में रहने के बाद उन्हें लगा कि बीएसपी में रहकर सियासत आसान नहीं होगी, चुनाव जीतने में मुश्किल आ सकती है तो वह कांग्रेस में आ गए। उत्तराखंड बनने पर वर्ष 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से लैंसडौन सीट से विधायक बने। 2007 में लैंसडौन से फिर जीते। 2007 में उन्हें नेता विपक्ष का दर्जा मिला। 2012 की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। 18 मार्च 2016 को हरीश रावत सरकार में मंत्री रहते हुए उन्होंने आठ अन्य विधायकों के साथ कांग्रेस सरकार से बगावत कर दी और बीजेपी में आ गए। 2017 में उन्हें बीजेपी सरकार में मंत्री बनाया गया। उनका कहना है उन्होंने कैबिनेट मंत्री बनने के लिए कांग्रेस नहीं छोड़ी थी। वह मुख्यमंत्री बनने का इरादा रखते थे। उन्होंने धामी सरकार में मंत्री बनने से इनकार कर दिया था। जैसे-तैसे मंत्री पद की शपथ लेने के लिए मना तो लिया गया, फिर भी उनकी नाराजगी दूर नहीं हो पाई है। उनके सामने मुसीबत यह है कि कांग्रेस में उनकी एंट्री का पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत खुला विरोध कर चुके हैं। इस वजह से वह मुश्किल में हैं कि जाएं तो जाएं कहां? हरक सिंह रावत का पौड़ी जिले में काफी प्रभाव है। उनकी पत्नी पौड़ी में जिला पंचायत अध्यक्ष हैं।