बंद होने वाली है वीजा-मास्टरकार्ड की दुकान… आखिर UPI से क्यों डरा हुआ है सुपरपावर अमेरिका?

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यूपीआई (UPI) का पूरी दुनिया में डंका बज रहा है। फ्रांस ने भी अपने यहां इसकी अनुमति दे दी है। फ्रांस ऐसा करना वाला यूरोप का पहला देश है। इसके साथ ही यूपीआई के लिए यूरोपियन यूनियन के दरवाजे खुल गए हैं। सरकार यूपीआई को पूरी दुनिया में फैलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। जापान समेत दुनिया के कई देशों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई है। चीन और अमेरिका जैसे देश इससे बुरी तरह डरे हुए हैं। जानिए कैसे हुई थी इसकी शुरुआत और कैसे हुआ यह लोकप्रिय…

​कैसे हुई शुरुआत
आरबीआई ने 2008 में नेशनल पेमेंट काउंसिल ऑफ इंडिया यानी एनपीसीआई बनाया था। इसने 2010 में मोबाइल सिम को बेस बनाकर आईएमपीएस विकसित किया था। इसकी मदद से मोबाइल से तुरंत दो लाख रुपये से नीचे का ट्रांजैक्शन किया जा सकता है। लेकिन इसमें कई तरह की लिमिटेशंस थी। मसलन इससे दुकानदार को पेमेंट नहीं किया जा सकता था। साथ ही इसमें बेनिफिशियरी भी जोड़ने का झंझट था। एनपीसीआई ने इन्हीं दिक्कतों को दूर करने करने लिए यूपीआई को विकसित किया। इसे आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और दिलीप आस्बे के दिमाग की उपज माना जाता है। आस्बे अभी एनपीसीआई के एमडी और सीईओ हैं।

​कैसे बढ़ी लोकप्रियता

यूपीआई के जरिए आप किसी को भी किसी भी समय आसानी से पेमेंट कर सकते हैं। यूपीआई को 2016 में लॉन्च किया गया था। इसने देश में डिजिटल पेमेंट में क्रांति कर दी। आज भारत डिजिटल पेमेंट के मामले में दुनिया में नंबर एक हो गया है। रिटेल डिजिटल पेमेंट्स में यूपीआई की हिस्सेदारी 90 परसेंट पहुंच गई। यूपीआई पूरी तरह से देश में विकसित एक डिजिटल पेमेंट इंटरफेस है। यह इतना सरल और सुरक्षित है कि अमेरिका का सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व भी इसकी तारीफ कर चुका है। यूपीआई के लोकप्रिय होने की सबसे बड़ी वजह है इसका सिंपल होना। यह चौबीसों घंटे चलता है और इससे फटाफट पेमेंट हो जाता है। साथ ही इसमें कोई पैसे नहीं लगते हैं। इसमें इंटर ऑपरेटिबिलिटी की भी सुविधा है। यानी अगर आप पास पेटीएम है और दुकानदार के पास गूगल पे तो कोई दिक्कत नहीं है। आप यूपीआई के जरिए आसानी से पेमेंट कर सकते हैं।

​किस्मत का साथ

भारत में गूगल पे, अमेजन पे, पेटीएम, भीम, भारतपे, फोनपे जैसे सारे डिजिटल पेमेंट ऐप यूपीआई इंटरफेस पर ही बेस्ड हैं। इसे 11 अप्रैल 2016 में लॉन्च किया गया था। उसी साल अगस्त में फोनपे ने इसे अपनाया। सितंबर 2016 में जियो के आने से इंटरनेट की रीच बढ़ गई। नवंबर 2016 में नोटबंदी ने यूपीआई को उड़ने के लिए पंख दे दिए। सितंबर 2017 में तेज को यूपीआई के इस्तेमाल की अनुमति मिली जिसे अब गूगल पे के नाम से जाना जाता है। नवंबर 2017 में पेटीएम को भी यूपीआई के इस्तेमाल की अनुमति मिल गई। पीछे तो इसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। भारत सरकार अपने यूपीआई पेमेंट सिस्टम को 30 देशों से भी अधिक देशों में ले जाने की तैयारी कर रही है। एनपीसीआई ने यूपीआई को पूरी दुनिया में फैलाने के लिए एक अलग कंपनी बनाई है। इसका नाम है एनपीसीआई इंटरनेशनल पेमेंट लिमिटेड।

​कई देशों ने दिखाई दिलचस्पी

नेपाल ने हाल ही में यूपीआई को अपनाया है। सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात और भूटान भी यूपीआई को अपना चुके हैं। मलेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस, वियतनाम, कंबोडिया, हॉन्ग कॉन्ग, ताइवान, साउथ कोरिया और जापान जैसे देशों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई है। भारत अपने इस पेमेंट सिस्टम को दुनियाभर में फैलाना चाहता है। इससे विदेश में रहने वाले भारतीयों को वापस पैसे भेजने में सुविधा होगी। साथ ही विदेश जाने वाले लोगों को पैसे खर्च में कोई दिक्कत नहीं होगी। अगर विदेशों में लोग यूपीआई का इस्तेमाल करने से भारत का आर्थिक दबदबा भी बढ़ेगा। यही वजह है कि सरकार और आरबीआई ने यूपीआई को इंटरनेशनल नंबरों से भी ऑपरेट करने की सुविधा दी है।

​अमेरिका को क्यों है परेशानी
​दिग्गज टेक कंपनी गूगल (Google) ने भी अमेरिका में यूपीआई को अपनाने या वैसी ही टेक्नोलॉजी विकसित करने की मांग की है। अमेरिका हमेशा से फाइनेंशियल जगत का अगुआ रहा है। उसकी करेंसी डॉलर का पूरी दुनिया में दबदबा है। उसके पास स्विफ्ट जैसा इंटरनेशनल पेमेंट सिस्टम है। फाइनेंस के अलावा टेक और आईटी में भी अमेरिका की तूती बोलती है। यही वजह है कि यूपीआई से अमेरिका परेशान है। फ्रांस के सहमत होने के साथ ही भारत को यूरोपियन यूनियन में एंट्री मिल जाएगी। इससे अमेरिका पर भी दबाव बढ़ जाएगा। देर-सबेर उसे भी यूपीआई को अनुमति देनी पड़ेगी। यानी अगली आप फ्रांस गए तो आपको अपनी करेंसी कनवर्ट कराने की जरूरत नहीं पड़ेगी। न ही आपको फोरेक्स कार्ड ले जाने की जरूरत पड़ेगी। आप सीधे यूपीआई से पेमेंट कर सकते हैं।

​वीजा-मास्टरकार्ड की हालत खराब
आप कार्ड से जो पेमेंट करते हैं उस पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट यानी एमडीआर लगता है। यह एक से तीन परसेंट तक होता है और वीजा, मास्टरकार्ड और अमेरिकन एक्सप्रेस जैसी कंपनियों के खाते में जाता है। यूपीआई में एमडीआर जीरो है। यानी इससे इन कंपनियों का कोई फायदा नहीं है। दुकानदार भी अब ग्राहकों को कार्ड के बजाय यूपीआई से पेमेंट करने को कह रहे हैं। इस कारण वीजा, मास्टरकार्ड और अमेरिकन एक्सप्रेस की कमाई कम हो रही है। इसलिए ये कंपनियां यूपीआई से बुरा तरह डरी हुई हैं। जिस तरह दुनियाभर के देश यूपीआई को अपना रहे हैं, उससे आने वाले दिनों में इन कंपनियों की दुकान बंद हो सकती है। अब तो क्रेडिट कार्ड से भी यूपीआई के जरिए पेमेंट की सुविधा हो गई है।