क्या है हीट वेव, मौसम विभाग ने क्यों कहा भीषण गर्मी के लिए तैयार रहिए?

What is heat wave, why did the Meteorological Department say be ready for the scorching heat?
What is heat wave, why did the Meteorological Department say be ready for the scorching heat?
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नई दिल्ली: पिछले हफ्ते भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने चेतावनी दी कि उत्तर-पश्चिम, पश्चिम और मध्य भारत में तापमान 3-5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहेगा. इससे पहले आईएमडी ने कच्छ और कोंकण में गर्म हवाओं की चेतावनी दी थी. हालांकि समुद्री हवाओं के चलने के बाद ऐसा हुआ नहीं. वहीं राजधानी दिल्ली में पिछले दिनों तापमान 33.6 डिग्री सेल्सियस के साथ 1969 के बाद फरवरी का तीसरा सबसे गर्म दिन दर्ज किया गया. दिल्ली में 26 फरवरी 2006 को अधिकतम तापमान 34.1 डिग्री सेल्सियस और 17 फरवरी 1993 को अधिकतम तापमान 33.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था. भारत मौसम विज्ञान विभाग ने 18 फरवरी को मुंबई के सांताक्रूज मौसम केंद्र में अधिकतम तापमान 37.9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया. जो सामान्य से सात डिग्री ज्यादा था. दक्षिण मुंबई में अधिकतम तापमान 35.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो सामान्य से छह डिग्री ज्यादा है. इसी के साथ मौसम विभाग ने परामर्श जारी किया कि ये बढ़ा हुआ तापमान गेहूं और दूसरी फसलों पर खराब असर डालेगा. साल 2022 की ही तरह इस बार फरवरी में ही गर्मी और गर्म हवाओं का अहसास होने लगा है.

गर्मियों के मौसम में हीट वेव वैसी स्थिति है जब तापमान सामान्य से ज्यादा हो जाता है. ये बढ़ा हुआ तापमान दो दिनों से ज्यादा रहता है. हीट वेव नमी और बिना नमी वाली दोनों जगहों पर असर करता है. साथ ही ये एक बड़े क्षेत्र पर असर करता है और तेज गर्मी होती है . तेज गर्मी की वजह से पौधे झुलसने लगते हैं. जैसे इस बार रिपोर्ट ये बता रही है कि बढ़ते तापमान से गेहूं के उत्पादन पर अभी से ही खतरा मंडराने लगा है नतीजन इनकी कीमतों में भी इजाफा होगा.

आमतौर पर हीट वेव का ये दौर अप्रैल खत्म होने के साथ शुरू होकर मई के महीने में अपने शबाब पर होता है. लेकिन 2022 से ही हीट वेव की मार मई महीने में न होकर फरवरी के आखिर से ही शुरू गई थी. भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक, हीट वेव तब मानी जाती है जब मैदानी इलाकों का अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक और पहाड़ी क्षेत्रों का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है. इस बार आईएमडी ने इसकी चेतावनी दे डाली है. एल नीनो हवाएं ऊष्ण कटिबंधीय प्रशांत के भूमध्यीय क्षेत्र के समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय परिस्थितियों में आए बदलाव की जिम्मेदार होती हैं. इस बार भारतीय उपमहाद्वीप में गर्मी की लहरें यानी एल नीनो लहरें ज्यादा तेज होने की उम्मीद है. भारत में 2022 में वसंत महीने के (मार्च-अप्रैल) पहले से ही गर्मी बढ़ने के संकेत मिलने लगे थे.

2022 में 11 मार्च से ही हीट वेव का दौर शुरू हो गया था. मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि मार्च और अप्रैल में तेज गर्म हवाएं चलना सामान्य बात नहीं है. इसकी सबसे बड़ी वजह कार्बन उत्सर्जन है. अगर कार्बन उत्सर्जन को घटाया नहीं गया तो जलवायु परिवर्तन की वजह से ये हीट वेव मौसम चक्र का हिस्सा बन जाएंगी जो और भी खतरा पैदा करेंगी. पिछले तीन साल एल नीना वर्ष रहे हैं, 2023 भी ऐसा ही एक उदाहरण बनने वाला है. इसका शिकार उत्तर भारत सबसे ज्यादा होगा.

शहरों में क्यों बढ़ रही है गर्मी

वेबसाइट एल डोराडो की तरफ से जारी आंकड़ों के मुताबिक मध्य भारत पृथ्वी के सबसे गर्म क्षेत्रों मे से एक बन गया है. मध्य भारत के कुछ शहरों को दुनिया के 15 सबसे गर्म शहरों में शामिल किया गया है. ये आंकड़ें 2019 के हैं. 3, 4 सालों से ये भी कहा जा रहा है कि लगातार बढ़ रही गर्मी ग्लोबल वार्मिंग की वजह से है.

तो क्या सिर्फ ग्लोबल वॉर्मिंग है बढ़ती गर्मी की वजह

शहर काफी बदल रहे हैं. शहरों की हरियाली में दिनों-दिन कमी आ रही है. इमारतों की कतारें दिखने लगी है. घरों में एसी का इस्तेमाल बढ़ रहा है. चारों तरफ पक्की सड़कों का जाल फैलता रहा है, और यही वजह है कि तापमान भी उसी रफ्तार में बढ़ रहा है. ऐसे शहरों को ‘अर्बन हीट आइलैंड’ या फिर ‘हीट आइलैंड’ कहा जाने लगा है. अगर हवा की गति कम है तो शहरों को अर्बन हीट आइलैंड बनते आसानी से देखा जा सकता है.बता दें कि गर्म हवा यानी हीट वेव का प्रभाव पिछले दशकों से बढ़ा है. इससे उत्तरी गोलार्द्ध में साल 1980 के मुकाबले 25 प्रतिशत ज्यादा क्षेत्रों पर उल्टा प्रभाव देखने को मिला .

नेचर जियोसाइंस में 20 फरवरी, 2023 को प्रकाशित एक रिसर्च में कहा कि अलग-अलग वजहें गर्मी की लहरों के लिए जिम्मेदार होती हैं. जो कुछ इस तरह हैं. भारत में वसंत के मौसम में चलने वाली हवाएं आमतौर पर पश्चिम-उत्तर-पश्चिम से चलती हैं. यह दिशा कई वजहों से भारत के लिए अच्छी नहीं है. इन दिशाओं से हवा चलने की वजह से मध्य पूर्व और भूमध्य रेखा के करीब के अक्षांश तेजी से गर्म हो रहा है. जो भारत में बहने वाली गर्म हवा का जरिया बनते जा रहे हैं. इसी तरह, उत्तर-पश्चिम से बहने वाली हवा अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पहाड़ों पर बहती है. जो भारत में बहने वाली गर्म हवाओं को और गर्म कर रही हैं. महासागरों के ऊपर बहने वाली हवा ठंडी हवा भी गर्म हो रही है . इसकी वजह जमीन का महासागरों के मुकाबले में तेजी से गर्म होना है . अरब सागर बाकी महासागर क्षेत्रों के मुकाबले तेजी से गर्म हो रहा है.

हवा का रुख बदला है और गर्म हवाओं की मार बढ़ी

अक्सर ये भी खबरें सुनने को मिलती हैं कि इस बार तापमान ने पिछले 100 सालों का रिकॉर्ड तोड़ दिया. इससे ये जाहिर है कि तापमान 100 साल पहले भी इतना ही बढ़ा होगा. कहने का मतलब ये है कि बढ़ती गर्म हवाओं को सिर्फ ग्लोबल वॉर्मिग से जोड़ कर देखना सही नहीं है. अगर हवा राजस्थान की तरफ से आ रही है तो जाहिर सी बात है कि हवा गर्म होगी. अगर तूफान की दिशा बदल जाती है तो शहरों का तापमान भी बदल जाता है. जैसे की 2019 में फणी तूफान की वजह से उत्तर और मध्य भारत के शहरों का तापमान बदला था. कई जगहों पर इसकी वजह से बारिश भी हुई थी. मुंबई और पुणे शहर की बात करें तो इन शहरों की वजह से ही लंबी-लंबी इमारतें खड़ी हो गई हैं. पहले समुद्री हवाएं बिना रोक-टोक के मुंबई से पुणे पहुंच जाती थीं, लेकिन अब इन इमारतों की वजह से हवाओं की दिशा बदल गई है.

हीट वेव का असर

तेज गर्मी की वजह से पूरे देश में बिजली की खपत में तेजी आई है, और भारत में ज्यादातर बिजली थर्मल पॉवर प्लांट्स में बनती है. थर्मल पॉवर प्लांट्स से बिजली बनाने के लिए कोयले का इस्तेमाल किया जाता है. अचानक कोयले की बढ़ी डिमांड का असर बिजली पर पड़ता है और पॉवर कट जैसी दिक्कतें पेश आती है. पॉवर कट की वजह से मेट्रो अस्पतालों जैसी अहम सेवाओं पर भी असर पड़ने का खतरा बनता है. सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, गर्मी से बीमारी का खतरा सबसे ज्यादा शिशुओं से लेकर चार साल तक के बच्चे, 65 साल से ज्यादा उम्र के लोग, या वो लोग होते हैं जो ज्यादा दवाओं का इस्तेमाल करते हैं. बिना एयर कंडीशनर वाले घरों में बेताहाशा गर्मी होती है, जिससे अचानक मौत का खतरा बढ़ता है. भारत में 2000 से 2004 तक 65 साल से ज्यादा आयु के लोगों में सालाना 20,000 लोगों की मौत गर्मी की वजह से हुई, और ये आंकड़े 2017 और 2021 के बीच लगभग 31,000 तक बढ़ गए. इस साल गेंहू की पैदावार पर हीट वेब का प्रतिकूल असर देखने को मिलेगा. गेहूं दूसरे फसलों के मुकाबले बहुत संवेदनशील है. इसी मौसम में गेहूं के फूल उगते हैं और परिपक्व होते हैं. इसलिए इस फसल को खासा नुकसान होने का खतरा है. दूसरी तरफ खड़ी फसलों और बागवानी पर भी इसका असर पडे़गा . केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि तापमान में वृद्धि से पैदा हुई स्थिति और गेहूं पर इसके प्रतिकूल प्रभाव के खतरे को देखते हुए एक समिति का गठन किया गया है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने गेहूं की एक नई किस्म भी विकसित की है जो मौसम के पैटर्न में बदलाव और बढ़ती गर्मी के स्तर से उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर सके.