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Saat Fere in Marriage: अग्नि पृथ्वी पर सूर्य की प्रतिनिधि है. सूर्य जगत की आत्मा तथा विष्णु का रूप है. अतः अग्नि के समक्ष फेरे लेने का अर्थ है-परमपिता के समक्ष फेरे लेना. अग्नि ही वह माध्यम है, जिसके द्वारा यज्ञीय आहुतियां प्रदान करके देवताओं को पुष्ट किया जाता है. इस प्रकार अग्नि के रूप में समस्त देवताओं को साक्षी मानकर पवित्र बंधन में बंधने का विधान धर्म शास्त्रों में किया गया है. वैदिक नियमानुसार, विवाह के समक्ष चार फेरों का विधान है. इनमें से पहले तीन फेरों में वधु आगे चलती है जबकि चौथे फेरे में वर आगे होता है. ये चार फेरे चार पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के प्रतीक हैं. इस प्रकार तीन फेरों तीन फेरों द्वारा तीन पुरुषार्थों में वधू (पत्नी) की प्रधानता है, जबकि चौथे फेरे द्वारा मोक्ष मार्ग पर चलते समय पत्नी को वर का अनुसरण करना पड़ता है.
मंगलसूत्र
विवाह के अवसर पर वधू के गले में वर मंगलसूत्र पहनाता है. अनेक दक्षिण राज्यों में तो मंगलसूत्र पहनाए बिना विवाह की रस्म अधूरी मानी जाती है. वहां सप्तपदी से भी अधिक मंगलसूत्र का महत्व है. मंगलसूत्र में काले रंग के मोती की लड़ियां, मोर एवं लॉकेट की उपस्थिति अनिवार्य मानी गई है. इसके पीछे यह मान्यता है कि लॉकेट अमंगल की संभावनाओं से स्त्री के सुहाग की रक्षा करता है. जबकि मोर पति के प्रति श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक है. काले रंग के मोती बुरी नजर से बचाते हैं तथा शारीरिक ऊर्जा का क्षय होने से रोकते हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि मंगली दोष की निवृत्ति के लिए इसे धारण करने का विधान प्रचलित हुआ होगा.
सिंदूर
विवाह के समय वर द्वारा वधू की मांग में सिंदूर भरने का संस्कार ‘सुमंगली’ क्रिया कहलाती है. इसके बाद विवाहित स्त्री अपने पति की दीर्घ आयु की कामना करते हुए आजीवन मांग में सिंदूर भरना सुहागिन होने का प्रतीक है. सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होने के कारण चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़ती. यह मर्म स्थान को बाहरी बुरे प्रभावों से भी बचाता है. बुरे दोष के निवारण के लिए भी शास्त्र स्त्री को मांग में सिंदूर भरने का परामर्श देते हैं.