उत्तराखंड में 15 साल पुराने डीजल वाहनों को मिलेगी नई जिंदगी, ये है सरकार का प्लान

15 years old diesel vehicles will get new life in Uttarakhand, this is the government's plan
15 years old diesel vehicles will get new life in Uttarakhand, this is the government's plan
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देहरादून: रेट्रोफिट सॉल्यूशन तकनीक 15 साल से अधिक पुराने डीजल वाहनों को नई जिंदगी देगी। तकनीक के इस्तेमाल से बीएस-6 की तरह वाहन कम प्रदूषण उत्सर्जित करेंगे। यह तकनीक यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज के मेकेनिकल क्लस्टर ने तैयार की है। परिवहन विभाग की ओर से वाहनों से निकलने वाले वायु प्रदूषण को रोकने के लिए आयोजित कार्यशाला में इस प्रोजेक्ट को पेश किया गया। यूनिवर्सिटी की इंजन लेबोरेटरी के अनुसार इस तकनीक में डीजल वाहनों से उत्सर्जित प्रदूषण को घटाकर न्यूनतम स्तर पर लाया जाता है। परिवहन मंत्री की मौजूदगी में इस प्रोजेक्ट को सराहा गया।

इस तकनीक से उम्र पूरी कर चुके डीजल वाहनों को नई जिंदगी मिल सकती है और उन्हें फिर से सड़कों पर दौड़ने लायक बनाया जा सकता है। प्रो. डॉ. अजय कुमार ने बताया कि पुराने वाहनों में डीजल जलने के बाद उससे निकलने वाली जहरीली गैस वायुमंडल में जाकर प्रदूषण फैलाती है। इसे साफ करने के लिए इस तकनीक में विशेष फिल्टरों का प्रयोग किया जाता है।

इस तरह काम करती है तकनीक

इस तकनीक में डीजल ऑक्सीडेशन कैटलिस्ट का प्रयोग किया जाता है, जो एक प्रकार का फिल्टर है। यह कार्बन मोनो ऑक्साइड को कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल देता है। धुएं में निकले सूक्ष्म कण डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर (डीपीएफ) में फंस जाते हैं। इन कणों को जलाने के लिए माइक्रोवेव्स ओवन का प्रयोग किया जाता है। इससे निकलने वाली किरणें सूक्ष्म कणों को जला देतीं हैं। इसके बाद इन्हें बाहर निकाल दिया जाता है और फिल्टर साफ हो जाता है। इसमें सिलेक्टिव केटेलिटिक रिडक्शन (एससीआर) फिल्टर का भी प्रयोग होता है। इसमें लिक्विड अमोनिया के प्रयोग से जहरीली नाइट्रोजन ऑक्साइड को पानी में बदल दिया जाता है। इससे वायु प्रदूषण करने वाले प्रमुख तत्वों को उत्सर्जित होने से रोक दिया जाता है।

खत्म हो जाते हैं 91 प्रतिशत सूक्ष्म कण
यूनिवर्सिटी की इंजन लेबोरेटरी के अनुसार इस तकनीक से डीजल वाहनों के धुएं में शामिल 60 प्रतिशत तक बिना जले कार्बन को जला दिया जाता है। वहीं, 29 प्रतिशत कार्बन मोनो ऑक्साइड को कार्बन डाई ऑक्साइड में बदल दिया जाता है। तकनीक से 91 प्रतिशत तक सूक्ष्म कण जलाकर खत्म कर दिए जाते हैं। 2020 में इस तकनीक को बनाया गया। इसे पेटेंट कराने के लिए आवेदन किया है। कई चरणों में टेस्टिंग के बाद प्रक्रिया अंतिम चरण में है। इस तकनीक के जरिए वाहनों से निकलने वाले वायु प्रदूषण को बीएस-6 वाहनों की तरह न्यूनतम स्तर पर लाने में सफलता मिली है। – डॉ. अजय कुमार, प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज