लखनऊ। उत्तर प्रदेश के कृषि विभाग की पड़ताल में 18 ऐसे जिले सामने आए हैं, जहां फसलों की उपज लगातार घटती जा रही है। इनमें सबसे ज्यादा चार जिले तो बुंदेलखंड के ही हैं। पड़ताल में यह बात भी निकल कर आई है कि इन जिलों में पैदावार घटने के पीछे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी और किसानों को अच्छी गुणवत्ता के बीजों की उपलब्धता न होना है।
कृषि मंत्री से लेकर पूरा कृषि महकमा और कृषि वैज्ञानिक सब चिंतित हैं। इस चिंता को लेकर ही कृषि उत्पादन आयुक्त मनोज कुमार सिंह ने इस साल जनवरी में एक शासनादेश जारी कर कम उत्पादकता की वजह तलाशने को कमेटी बनाई थी। कमेटी में फसलवार कृषि वैज्ञानिकों को जिम्मेदारी दी गई। इन वैज्ञानिकों द्वारा दी गई रिपोर्ट यह बताती है कि कम पैदावार वाले जिलों के खेतों की मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की भारी कमी है। अच्छी गुणवत्ता का जितनी मात्रा में बीज मिलना चाहिए उतना मिल नहीं पाता।
इस रिपोर्ट के अनुसार सोनभद्र में एक हेक्टेयर में गेहूं की पैदावार 27.09 कुंतल तो बागपत में गेहूं की उपज इसके दो गुना यानि प्रति हेक्टेयर 45.51 कुंतल है । औरय्या में एक हेक्टेयर में 51.06 कुंतल धान तो श्रावस्ती में उसी एक हेक्टेयर रकबे में महज 29.21 कुंतल है।
इसी तरह दलहन की उपज सबसे ज्यादा रामपुर में एक हेक्टेयर में 23.22 कुंतल तो रायबरेली में एक ही हेक्टेयर में महज 5.56 कुंतल। हापुड़ में तिलहनी फसलों का उत्पादन एक हेक्टेयर में 22.16 कुंतल तो बांदा में सिर्फ 3.44 कुंतल है।
कमेटी ने सलाह दी है कि गेहूं की बोवाई सीड ड्रिल से करवाई जाए ताकि फसल मजबूत खड़ी रहे तेज हवा व बारिश में गिरे नहीं। धान की फसल में 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक का स्प्रे करवाया जाए। दलहनी फसलों में रायजोरियम कल्चर अनिवार्य किया जाए। हरी खाद ढैंचा व सनई का इस्तेमाल बढ़ाया जाए। बीज प्रतिस्थापन की दर बढ़ाई जाए यानि जिस वैरायटी का बीज अभी किसानों को उपलब्ध करवाया जाए, उससे भी अच्छी गुणवत्ता का बीज उन्हें मुहैया करवाए जाने की जरूरत है। इन्हीं मुद्दों को लेकर गुरुवार को कृषि निदेशालय में कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही की अध्यक्षता में चिंतन बैठक भी हुई।