यूपी में हारी सीटों पर अमित शाह की सीधी नजर, पूर्वांचल से लेकर वेस्ट यूपी तक सियासी जमीन पर मंथन होगा

Amit Shah's direct eye on the seats lost in UP, there will be churning on the political ground from Purvanchal to West UP
Amit Shah's direct eye on the seats lost in UP, there will be churning on the political ground from Purvanchal to West UP
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लखनऊ : 2023 का आगाज होने के साथ ही भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों को टॉप गियर में डालना शुरू कर दिया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा की ऐतिहासिक जीत की पटकथा लिखने वाले अमित शाह खुद 2019 में हारी सीटों पर जीत की राह तलाशेंगे। 16- 17 जनवरी को शाह यूपी में पूर्वांचल से वेस्ट यूपी तक की सियासी जमीन मथेंगे।

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन ने यूपी में 80 में 64 सीटें जीती थीं, जो 2019 के मुकाबले 9 कम थीं। नतीजों में अंतर की एक बड़ी वजह करीब ढाई दशक बाद यूपी में हुआ सपा-बसपा गठबंधन भी था। 2022 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद ही भाजपा ने यूपी में हारी 16 सीटों के नतीजों को बदलने पर मेहनत शुरू कर दी थी। पिछले साल जून में हुए उपचुनाव में भाजपा ने आजमगढ़ और रामपुर सीट अपने खाते में डाल कर संख्या 66 कर ली। इसमें आजमगढ़ तो भाजपा 2014 में भी नहीं जीती थी। अब बची हुई 14 सीटों पर नतीजे बदलने के लिए पार्टी ठंड में भी पसीना बहा रही है।

कार्यकर्ता और जनसंवाद दोनों अजेंडे में
सूत्रों के अनुसार अमित शाह 16 जनवरी को अम्बेडकर व बलरामपुर में रहेंगे। 2019 में भाजपा अंबेडकरनगर में 96 हजार वोट से हारी थी। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भी अंबेडकरनगर लोकसभा की पांचों विधानसभाएं पार्टी हार गई थी। इसलिए, अंबेडकरनगर में नतीजे बदलना भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है। वहीं, बलरामपुर जिले की श्रावस्ती लोकसभा सीट भाजपा के हाथ से महज 5 हजार वोटों से निकल गई थी। 17 जनवरी को अमित शाह का सहारनपुर और बिजनौर में दौरा प्रस्तावित है। सहारनपुर भाजपा ने 2019 में 22 हजार वोटों से और बिजनौर 70 हजार वोटों से गंवाया था। जिन चारों सीटों पर अमित शाह का दौरा तय किया गया है यह सभी बसपा के पास हैं। शाह यहां कार्यकर्ताओं के साथ बैठक तो करेंगे ही, उनकी जनसभा की भी तैयारी की जा रही है।

बदले समीकरण और जमीन की लेंगे थाह
शाह का हाल में प्रदेश में हुए लोकसभा व विधानसभा उपचुनाव के बाद पहला यूपी दौरा है। उपचुनाव के नतीजों ने सियासी जमीन व समीकरण दोनों ही थोड़े बदले नजर आए हैं। खासकर, वेस्ट यूपी में मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा के परिणाम ने जहां सपा-रालोद के लिए उम्मीद जगाई है, वहीं भाजपा के लिए चिंता की लकीरें खींची हैं। सपा-रालोद गठबंधन के मंच पर आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर की मौजूदगी में दलित वोटरों का भी रूख बदला दिखा और, जयंत चौधरी के पक्ष में जाट वोट भी खिसके। वेस्ट यूपी में भाजपा को 2019 में जीत के लिए इन दोनों का ही साथ जरूरी होगा। सहारनपुर में सपा छोड़कर इमरान मसूद बसपा में आ चुके हैं। 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर इमरान ने 2 लाख से अधिक वोट हासिल किए थे। ऐसे में बसपा में उनकी मौजूदगी दलित-मुस्लिम वोटों की जुगलबंदी मजबूत कर सकती है। अमित शाह कार्यकर्ताओं के साथ संवाद में जमीनी हालात समझने पर फोकस करेंगे, जिससे जीत की राह के कांटे हटाए जा सकें।

हार पर मंथन से निकला था जीत का रास्ता
हारी सीटों से जीत की पटकथा लिखने की भाजपा की रणनीति पहले भी सफल रही है। 2017 के विधानसभा चुनाव व उसके बाद हुए उपचुनाव मिलाकर 80 से अधिक सीटों पर भाजपा को हार मिली थी। पार्टी ने 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले इन सीटों पर अलग से मेहनत की थी, जिससे अगर जीती सीटों की संख्या घटे तो उसकी कमी यहां से पूरी की जा सके। यह प्रयोग सफल भी रहा और भाजपा 23 हारी सीटों को अपना बनाने में सफल रही। 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी पार्टी ने इस रणनीति को आगे बढ़ाया है। हालांकि, पार्टी के रणनीतिकारों का दावा है कि इस पर भाजपा यूपी में मिशन 80 पर काम कर रही है।