Bharat Ratna Chaudhary Charan Singh: ‘किसानों के मसीहा’ कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह अब ‘भारत रत्न’ भी कहलाएंगे. शुक्रवार को केंद्र सरकार ने उन्हें मरणोपरांत देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने की घोषणा की. प्रधानमंत्री बनने से पहले चरण सिंह ने मोरारजी देसाई के नेतृत्व वाली जनता पार्टी की सरकार में गृह मंत्रालय भी संभाला था. गृह मंत्री रहते हुए सिंह ने एक ऐसा फैसला किया था जिसका खामियाजा उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी गंवाकर भुगतना पड़ा. उस फैसले को ‘जनता पार्टी का पहला ब्लंडर’ कहा जाता है. चरण सिंह ने इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी का आदेश दिया था. 3 अक्टूबर 1977 को इंदिरा अरेस्ट कर ली गईं. अगले दिन जब मजिस्ट्रेट के सामने पेशी हुई तो वह हैरान थे कि बिना किसी आधार के गिरफ्तारी कैसे कर ली गई. 16 घंटों की हिरासत के बाद इंदिरा रिहा तो हो गईं, लेकिन उनके मन में बदले की चिंगारी भड़क चुकी थी.
इंदिरा ने अपना बदला दो साल के भीतर ही ले लिया. अगस्त 1979 में इंदिरा की कांग्रेस (I) ने जनता पार्टी की सरकार से समर्थन वापस ले लिया. चरण सिंह को सिर्फ 23 दिन प्रधानमंत्री रहने के बाद इस्तीफा देना पड़ा. वह इकलौते ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने कभी संसद का बहुमत हासिल नहीं किया. पढ़िए चौधरी चरण सिंह और इंदिरा गांधी की अदावत की यह कहानी.
आपातकाल में इंदिरा ने भेजा जेल
स्वतंत्रता आंदोलन में कई बार जेल गए चौधरी चरण सिंह ने आजादी के बाद खुलकर प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मुखालफत की. वह नेहरू के आर्थिक सुधारों और नीतियों के धुर विरोधी थे. इससे कांग्रेस के भीतर चरण सिंह की ताकत जरूर कम हुई मगर वह किसानों की आवाज के रूप में तेजी से उभरे. नेहरू के निधन से कुछ दिन पहले, चरण सिंह ने 1967 में कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और अपनी पार्टी भारतीय क्रांति दल बनाई. राज नारायण और राम मनोहर लोहिया की मदद और समर्थन से वह 1967 में और फिर 1970 में यूपी के सीएम बने.
जून 1975 में प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की. भारतीय लोकतंत्र का गला घोंटते हुए तमाम विरोधी नेताओं को जेल में ठूंसा जाने लगा. आपातकाल के समय जिन नेताओं को गिरफ्तार किया गया था, उनमें चौधरी चरण सिंह भी थे. सिंह और इंदिरा गांधी के रिश्ते शुरू से ही तनावपूर्ण रहे थे. आपातकाल ने उसमें और कड़वाहट घोल दी. इंदिरा को आपातकाल लगाने का खामियाजा भुगतना पड़ा और 1977 के आम चुनाव में जनता पार्टी ने सरकार बनाई. देसाई सरकार में गृह मंत्री रहते हुए सिंह ने कांग्रेस के शासन वाले सभी राज्यों की विधानसभाएं भंग करने का फैसला किया. इंदिरा को यह नागवार गुजरा.
इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान चौधरी चरण सिंह को जेल में डाला
चौधरी चरण सिंह का वो आदेश
मार्च 1977 में सरकार बनने के साथ ही चौधरी ने इंदिरा के खिलाफ मुकदमा शुरू करना चाहते थे. इंदिरा पर अपने पद का दुरुपयोग करते हुए चुनाव प्रचार के लिए सरकारी जीपों के इस्तेमाल का आरोप था. दूसरा केस ONGC और फ्रांसीसी तेल कंपनी CFP के बीच ठेके से जुड़ा था. सिंह अभी इंदिरा के खिलाफ एक्शन की तैयारी कर ही रहे थे कि इंदिरा ने उन्हें चुनौती दी कि गिरफ्तार करके दिखाएं. सिंह ने CBI से कहा कि इंदिरा को अरेस्ट कर लें लेकिन यह ध्यान रहे कि उन्हें हथकड़ियां न पहनाई जाएं, न ही उनके साथ खराब बर्ताव हो.
शुरू में गिरफ्तारी की तारीख 1 अक्टूबर तय की गई थी लेकिन फिर सुझाव आया कि गांधी जयंती के बाद, 3 अक्टूबर को इंदिरा को गिरफ्तार किया जाए. इंडिया टुडे मैगजीन के अनुसार, 3 अक्टूबर की दोपहर 3 बजे गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के निजी सचिव ने सीबीआई निदेशक को फोन किया. FIR का ड्राफ्ट वगैरह तैयार करके सीबीआई शाम करीब पौने 5 बजे इंदिरा के 12, वेलिंग्टन क्रेसेंट स्थित आवास पहुंची. जैसे ही इंदिरा को कस्टडी में लिए जाने की खबर दी गई, संजय गांधी भागे-भागे घर से बाहर निकले.
चरण सिंह उस वक्त FIR की कॉपी देख रहे थे. अचानक उन्होंने अपने एक असिस्टेंट से कहा कि CBI को फोन लगाओ, ये वो मामले नहीं हैं जिनपर हमें कार्रवाई करनी है. तब तक काफी देर हो चुकी थी. इंदिरा के बंगले पर मजमा लग चुका था. गुस्सा सिंह ने कहा कि उन्हें पल-पल की खबर दी जाए. शाम करीब 6.05 बजे इंदिरा बाहर बरामदे में आईं. पूछा- ‘हथकड़ियां कहां हैं? मैं बिना हथकड़ी नहीं जाऊंगी.’ पुलिस ने बताया कि उन्हें हथकड़ी नहीं लगाई जाएंगी. गांधी परिवार के लोग और बाकी स्टाफ पूरी दुनिया को यह खबर करने में लगे थे कि घर पर क्या हो रहा है.
कुछ ही मिनटों में 12, वेलिंग्टन क्रेसेंट के बाहर कांग्रेसियों की भारी भीड़ जमा हो गई. अंदर तमाम वकीलों ने गिरफ्तार करने आए अधिकारी को घेर लिया था. रात करीब 7.30 बजे चौधरी चरण सिंह ने आदेश दिया, ‘पुलिसवालों से कहो कि उसे लेकर चले जाएं.’ बाहर नारेबाजी का दौर जारी था. आखिरकार इंदिरा बाहर आईं और कार के ऊपर खड़ी हो गईं. पीछे बड़ी संख्या में मैटाडोर वैन चल रही थीं जिनमें कांग्रेसी भरे हुए थे. इंदिरा को किंग्सवे कैंप में न्यू पुलिस लाइंस के ऑफिसर्स मेस में ले जाया गया. यहीं उन्होंने रात बिताई.
देर रात कैबिनेट की अनौपचारिक बैठक बुलाई गई. तब तक प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने रक्षा मंत्री जगजीवन राम का सुझाव मान लिया था कि इंदिरा की पुलिस रिमांड नहीं मांगी जाएगी. अगले दिन इंदिरा को एडिशनल चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट, आर. दयाल के सामने पेश किया गया. अदालत के बाहर भीड़ जमा थी. मजिस्ट्रेट ने कहा कि यह मानने का कोई आधार नहीं है कि आरोप सही है. उन्होंने इंदिरा को फौरन रिहा करने का आदेश दिया. इंदिरा वापस घर आ गई थीं.
अपनी गिरफ्तारी को इंदिरा ने राजनीतिक कार्रवाई करार दिया
गृह मंत्री का इस्तीफा और फिर वापसी
इंदिरा ने दावा किया कि उनकी गिरफ्तारी पूरी तरह राजनीतिक थी. सिंह के लिए असहज स्थिति पैदा हो गई. उन्होंने अपना इस्तीफा लिखकर पीएम को भेजा मगर मोरारजी देसाई ने उसे स्वीकार नहीं किया. इंदिरा गांधी के ट्रायल को लेकर देसाई सरकार से उनका मतभेद इतना बढ़ गया था कि 1 जुलाई, 1978 को चौधरी चरण सिंह ने इस्तीफा दे दिया. हालांकि, 24 जनवरी को वह डिप्टी पीएम और वित्त मंत्री के रूप में सरकार में फिर लौट आए.
जनता पार्टी ने आपातकाल के खिलाफ उपजी भावनाओं के दम पर सत्ता हासिल की थी. अगर उन्हें मार्च में ही अरेस्ट किया जाता तो शायद इतना हंगामा नहीं होता. अक्टूबर तक जनता का गुस्सा थोड़ा ठंड पड़ चुका था. इंदिरा की रैलियों में फिर से भीड़ जुटने लगी थी. इधर, जनता पार्टी में फूट पड़ने लगी थी. अपनी किताब The Congress, Indira to Sonia Gandhi में विजय सांघवी लिखते हैं कि मौका देखकर चौधरी चरण सिंह ने इंदिरा गांधी की कांग्रेस (I) पर डोरे डालने शुरू किए. जनता पार्टी के कई नेता सिंह के पाले में आ चुके थे. दबाव बढ़ता देख देसाई ने जुलाई 1979 में इस्तीफा दे दिया था. चौधरी चरण सिंह के लिए प्रधानमंत्री पद का रास्ता खुल गया था.
इंदिरा ने वापस लिया समर्थन
इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने चौधरी चरण सिंह को भरोसा दिया कि कांग्रेस (I) उनकी सरकार का बाहर से समर्थन करेगी. गांधी परिवार की कुछ शर्तें थीं जिनमें आपातकाल से जुड़े सभी आरोप वापस लिया जाना भी शामिल था. 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह ने देश के पांचवे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली. उनकी सरकार ने मां-बेटे के खिलाफ आरोप वापस लेने से मना कर दिया. चौधरी चरण सिंह के लोकसभा में बहुमत साबित करने से ठीक पहले, कांग्रेस (I) ने समर्थन वापस ले लिया. सिर्फ 23 दिन पीएम रहने के बाद, चौधरी चरण सिंह ने 20 अगस्त, 1979 को इस्तीफा दे दिया. इंदिरा का बदला पूरा हो चुका था.
चौधरी चरण सिंह देश के इकलौते प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने कभी संसद का विश्वास नहीं जीता. वह जनवरी 1980 तक केयरटेकर प्रधानमंत्री रहे. उसी साल हुए आम चुनाव में कांग्रेस की सत्ता में जोरदार वापसी हुई और इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. सिंह का 29 मई, 1987 को निधन हुआ. वह आखिरी सांस तक राजनीति में सक्रिय रहे.