पटना: विपक्षी एकता (Opposition Unity) की मुहिम को जब से नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने देश हित से जोड़कर खुद के प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया, बिहार में सियासी घमासान तेज हो गया है। खास तौर से बीजेपी ने नीतीश कुमार को एनडीए में लाने के बजाय प्लान ‘बी’ पर काम करना शुरू कर दिया। जिसमें जेडीयू के शीर्ष नेताओं के साथ-साथ एक-एक कर उसके साथ गठबंधन में शामिल साथियों को अपने पाले में लाने की तैयारी शुरू कर दी। एक तरह से जेडीयू के प्लान ‘U’ यानी Unity को टारगेट किया। इस संदर्भ में बीजेपी को एक बड़ी सफलता जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) को साधने से दिख रही।
मांझी को साधने का मतलब
मांझी जाति पूरे बिहार में छुटपुट रूप से फैली हुई है। विशेष रूप मगध और सीमांचल क्षेत्र में इनका वोट बैंक प्रभावित करता आया है। दूसरा फैक्टर है कि अगर बीजेपी जीतनराम मांझी को अपने पाले में ले आते हैं तो विपक्षी एकता मुहिम पर साइक्लोजिकल दबाव बढ़ जाएगा। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने अपने कार्यकाल में कुछ विशेष योजनाओं के जरिए खास वर्ग पर प्रभाव कायम भी किया। अब चूंकि बीजेपी को खासकर बिहार में उत्तर प्रदेश की तरह छोटी छोटी जातियों के सहारे बूंद-बूंद से तालाब भरना है। इस लिहाज से बीजेपी के रणनीतिकारों के लिए यह बड़ी सफलता मानी जाएगी अगर जीतनराम मांझी एनडीए का एक धड़ा बनते है।
शाह से मिले जीतनराम मांझी
हालांकि, यहां दिलचस्प तो यह है कि यह काम तब हो रहा जब एक तरफ नीतीश कुमार 7 महीन के बाद विपक्षी एकता को लेकर दिल्ली यात्रा पर हैं। कांग्रेस को विपक्षी एकता के सूत्र में पिरोने का आधार तलाश रहे हैं। महागठबंधन में शामिल जीतन राम मांझी भी गुरुवार को दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने पहुंचे। इसके कई राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे।
एक मुलाकात से क्यों चढ़ा सियासी पारा
सियासी हलके में इस बात की चर्चा है कि अचानक से जीतन राम मांझी को अमित शाह से मिलकर ज्ञापन देने की कैसे और क्यों सूझी। खास कर तब जब सीएम नीतीश कुमार ने खुद ही कहा कि बीजेपी मांझी जी पर डोरे डाल रही है। कहा तो यह भी जा रहा कि महापुरुषों को भारत रत्न देने की मांग करना तो एक बहाना है। जिस तरह से मांझी की अमित शाह से मुलाकात हुई, उसमें नए समीकरण के तानेबाने भी बुने जा सकते हैं।
बीजेपी की सियासी चाल का दबाव झेल रही जेडीयू
बीजेपी की सियासी चाल का कुछ असर जेडीयू पर देखने को मिल रहा। पार्टी ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को खोया। इसमें कोई शक नहीं एक प्रशानिक अधिकारी के रूप में और अच्छे संगठनकर्ता के रूप में आरसीपी ने जेडीयू को तराशा। इनका जाना बीजेपी को आगामी चुनाव में बड़ा सुकून देने वाला है। ऐसा इसलिए कि वे पार्टी और नीतीश कुमार के राजदार भी रहे हैं।
पहले आरसीपी फिर उपेंद्र कुशवाहा हुए जेडीयू से अलग
इसके बाद जेडीयू से नाता तोड़कर बीजेपी के करीब जाने वाले उपेंद्र कुशवाहा भी महागठबंधन के मनोबल को कम कर गए। बीजेपी ने एक तरफ सम्राट चौधरी को अध्यक्ष बना कर और उपेंद्र कुशवाहा को जदयू से अलग कर पिछड़ी जाति के दूसरे नंबर के वोटर को बीजेपी की तरफ करने का प्लान फाइनल कर लिया। आज कुशवाहा समाज के भीतर सम्राट चौधरी को भावी सीएम के रूप में देखा जाने लगा है।
नीतीश को घेरने का ये है बीजेपी का पूरा प्लान?
बहरहाल, बीजेपी अपने होमियोपैथी इलाज से महागठबंधन को तार-तार करने में जुटी है। देखना है कि अब बीजेपी का अगला निशाना कौन है। वैसे पार्टी की नजर मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी पर भी है। ऐसे में देखना होगा कि महागठबंधन में शामिल दल कैसे बीजेपी के बढ़ते पांव को रोकते हैं? वैसे अभी लोकसभा चुनाव में अभी देर है, पर खेला तो शुरू हो गया है।