पटना: कभी ब्राह्मण और बनिया की पार्टी कही जाने वाली भाजपा में सवर्णों का अमूल्य योगदान रहा है। बिहार में इस समुदाय का पार्टी को भरपूर लाभ भी मिला है। लेकिन राज्य का सामाजिक समीकरण यह बताता है कि सवर्णों के साथ पिछड़ा वर्ग को जोड़े बिना भाजपा अपने बूते सत्ता में नहीं आ सकती है। यही कारण है कि पार्टी समय-समय पर पिछड़ा वर्ग के नेताओं को आगे करती रही है। लेकिन इसका खयाल रखते हुए कि सवर्ण समुदाय के नेता और मतदाताओं के बीच कोई गलत संदेश न जाए।
ताजा उदाहरण हाल ही गठित विधान परिषद की विभिन्न समितियों के सभापति और सदस्य के साथ विधानसभा में विरोधी दल के मुख्य सचेतक का पद है। वहीं, पार्टी ने परिषद के नौ सभापति के पद में चार पद सवर्ण समुदाय को दिए हैं। जबकि, पांच पदों पर पिछड़ा, अति पिछड़ा और एससी समुदाय को प्रतिनिधित्व देकर संतुलन साधने का प्रयास किया है।
प्रतिनिधित्व देने में कहां हो गई चूक
दरअसल, नेतृत्व ने एक-एक कदम आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव को ध्यान रखकर बढ़ाया है। हालांकि दोनों सदन की बात करें तो विपक्ष को मिलने वाली दूसरे दर्जे के पद प्रतिनिधित्व देने में चूक हुई है। विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय सिन्हा भूमिहार हैं। ऐसे में दूसरे नंबर का पद यानी मुख्य सचेतक का पद पिछड़ी, अति पिछड़ी या अनुसूचित जाति को मिलना चाहिए था, लेकिन पार्टी ने राजपूत समुदाय के जनक सिंह को बना दिया। वहीं, विधान परिषद में भी प्रतिनिधित्व देने में अनदेखी हुई है। इस सदन में भी विरोधी दल के नेता सम्राट चौधरी पिछड़ी जाति यानी कुशवाहा समाज से हैं। ऐसे में किसी अगड़ी जाति मुख्य सचेतक का पद मिलना चाहिए था लेकिन पार्टी पिछड़ी जाति के ही डा. दिलीप जायसवाल को मुख्य सचेतक बना दिया है। जबकि उच्चसदन में मुख्य सचेतक का पद अगड़ी जाति को देकर बेहतर संतुलन साध सकती थी।
समितियों में ऐसे साधा संतुलन
विधान परिषद की नौ समितियों के सभापति पद को लेकर पार्टी ने जो सिफारिश की है उसमें सवर्ण समुदाय की बात करें तो इसमें ब्राह्मण से मंगल पांडेय, भूमिहार समाज से अनिल शर्मा, कायस्थ से संजय मयूख और राजपूत से अवधेश सिंह को चार अलग-अलग समितियों का सभापति बनाया है। वहीं, पिछड़ा समाज से अशोक अग्रवाल व नवल किशोर यादव, अति पिछड़ा समुदाय से राजेंद्र गुप्ता व प्रमोद चंद्रवंशी और अनुसूचित जाति से पूर्व मंत्री जनक राम को समितियों में पार्टी ने प्रतिनिधित्व दिया है।