पृथ्वी की ओजोन परत फटी! धरती की आधी आबादी पर आफत, इन रोगों का पैदा हुआ खतरा

Earth's ozone layer explodes! Disaster on half of the earth's population, the danger of these diseases
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नई दिल्ली। सूर्य से आने वाली घातक पराबैंगनी किरणों के खिलाफ हमारे लिए रक्षा शील्ड का काम करने वाली ओजोन परत में बहुत बड़ा सुराख हो गया है। एक शोध में दावा किया गया है कि ओजोन परत में यह इतना बड़ा सुराख है कि अंटार्टिका के ऊपर पहले से मौजूद भयावह ओजोन छिद्र से भी 7 गुना विशाल है। अगर पृथ्वी के हिस्से पर इसके पड़ने वाले असर की बात करें तो यह इतने बड़े इलाके को कवर कर रहा है, जहां दुनिया की लगभग आधी आबादी रहती है। इसकी वजह से अरबों लोगों पर कई तरह के गंभीर रोगों का खतरा मंडरा सकता है और पूरे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बिगड़ने का जोखिम है। क्योंकि, यह सिर्फ इंसानों को ही नहीं प्रभावित करेगा,धरती के हर जीवित चीजों पर यह कहर ढा सकता है।

ओजोन परत में करीब 270 लाख वर्ग मील जितना विशाल सुराख-शोध
वैज्ञानिकों ने एक शोध के बाद दावा किया है कि पृथ्वी की ओजोन परत में एक नया और विशाल सुराख पाया गया है। इसकी वजह से दुनिया की आधी आबादी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। मिरर की एक रिपोर्ट के मुताबिक एआईपी एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित इस शोध में बताया गया है कि यह ओजोन परत में मिला नया सुराख, अंटार्टिका के ऊपर पाए गए 90 लाख वर्ग मील से भी 7 गुना विशाल है। हालांकि, शोधकर्ता ने ओजन परत की कमी को लेकर अपने मौजूद खोज के आधार पर और ज्यादा रिसर्च की जरूरत बताई है।

उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में दुनिया की लगभग आधी आबादी रहती है
पिछले कुछ वर्षों में ओजोन परत के फिर से दुरुस्त होने की खबरों के बीच ये नई रिसर्च बहुत ही चिंताजनक मानी जा रही है। शोध के मुताबिक धरती के करीब 15 मील ऊपर ओजोन परत में जो सुराख नजर आया है, वह उष्णकटिबंधीय क्षेत्र के ऊपर बताया जा रहा है। वाटरलू यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक और इस शोध पत्र के लेखक क्विंग-बिन लू ने कहा है, ‘उष्ण कटिबंध क्षेत्र धरती की सतह का आधा हिस्सा है और दुनिया की लगभग आधी आबादी का यहां बसेरा है।’

पराबैंगनी किरणों के खिलाफ ढाल का काम करती है
ओजोन परत में यह सुराख माना जा रहा है कि 1980 के दशक से ही मौजूद है, लेकिन इसके होने की पुष्टि हाल ही में होने का दावा किया गया है। लू ने कहा है कि ‘उष्णकटिबंधीय ओजोन सुराख का अस्तित्व एक बहुत बड़ी वैश्विक चिंता का कारण बन सकता है।’ गौरतलब है कि धरती को पराबैंगनी किरणों से सुरक्षित रखने में ओजोन की परत ढाल का काम करती हैं, लेकिन इसमें सुराख होने से ये सीधे हम तक पहुंच सकती हैं। ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने के लिए हमेशा से क्लोरो-फ्लोरो कार्बन को जिम्मेदार माना जाता रहा है।

इससे पहले 2018 में संयुक्त राष्ट्र की ओर से ओजोन परत के नष्ट होने को लेकर एक शोध किया गया था। इसमें बताया गया था कि अंटार्टिका के ओजोन सुराख के धीरे-धीरे भर जाने की उम्मीद है। इसके मुताबिक 2060 तक यहां का ओजोन परत 1980 के स्तर में वापस लौट जाने की संभावना है । इसमें कहा गया था, ‘अंटार्कटिक ओजोन सुराख ठीक हो रहा है, हालांकि, यह हर साल होता रहता है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल की वजह से ध्रुवीय क्षेत्रों में बहुत अधिक गंभीर ओजोन नष्ट होने से बच गया है।’

ओजोन की रक्षा के लिए 1987 से ही उठाए जा रहे हैं सख्त कदम
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के तहत चार-वर्षीय समीक्षा के दौरान 1987 में बहुत अधिक ऊंचाई पर मौजूद ओजोन परत को नुकसान पहुंचा रहे मानव-निर्मित गैसों पर पाबंदी का अच्छा असर दिखा था। इसकी वजह से ओजोन परत के घटने की स्थिति में लंबे समय में कमी देखी गई थी। इसमें समताप मंडल में ओजोन परत फिर से बनने की प्रक्रिया भी देखी गई थी। लेकिन, नए शोध ने एकबार फिर से चार दशक पुरानी चिंता को बढ़ा दिया है।

अगर ताजा शोध का और भी वैज्ञानिक पुष्टि करते हैं तो अरबों इंसानों पर बहुत बड़ा खतरा मंडरा रहा है। इसकी वजह से कैंसर मोतियाबिंद जैसी समस्याएं पैदा होने का जोखिम बढ़ सकता है। क्विंग-बिन लू ने कहा, ‘ओजोन परत में से जमीन पर पराबैंगनी विकिरण का स्तर बढ़ सकता है, जिससे इंसानों में स्किन कैंसर और मोतिबिंद का जोखिम बढ़ सकता है, इसके अलावा मानव का इम्यून सिस्टम कमजोर पड़ेगा, कृषि उत्पादकता घटेगी और संवेदनशील जलीय जीवों और पारिस्थितिक तंत्र को यह नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।’ हालांकि, उन्होंने ये भी कहा है कि ‘मौजूदा खोज उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ओजोन परत में कमी, पराबैंगनी विकिरण में बदलाव, कैंसर के बढ़ते खतरे,स्वास्थ्य और इकोसिस्टम पर इसके नकारात्मक प्रभावों को लेकर आगे और ज्यादा सावधानीपूर्वक अध्ययन करने की आवश्यकता है।’

कुछ वैज्ञानिकों को शोध के नतीजों पर है संदेह
ओजोन परत के नष्ट होने के इस खोज से पूरा वैज्ञानिक समुदाय सहमत नहीं है और उन्होंने दावों पर संदेह जाहिर किया है। लैंकेस्टर यूनिर्सिटी के डॉक्टर पॉल यंग ने कहा है कि ‘ऐसा कोई ‘उष्णकटिबंधीय ओजोन सुराख’ नहीं है, जो लेखक के प्रस्तावित इलेक्ट्रॉनों के जरिए ब्रह्मांडीय किरणों से या दूसरी तरह से प्रभावित होता है।’ दावा किया गया है कि साल 2000 से उष्णकटिबंधीय समताप मंडल के ओजोन स्तर सही में अभी भी कम हो रहा है, लेकिन यह जलवायु परिवर्तन की वजह से वायुमंडलीय गति में बदलाव की वजह से संभावित है।