पति की मौत के 12 दिन बाद पता चला… जानिए अब कोर्ट ने एबॉर्शन का आदेश वापस क्यों लिया?

Found out 12 days after husband's death... Know now why the court withdrew the abortion order?
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Delhi High Court On Abortion: यह दर्दनाक दास्तां एक महिला की है, जो फिलहाल अवसाद से ग्रस्त है. दरअसल, शादी के कुछ महीने बाद ही उसके पति की मौत हो गई. उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. वह अपने मायके आ गई. फिर एक दिन उसे प्रेग्नेंट होने की जानकारी हुई. उसने एबॉर्शन कराने का फैसला किया लेकिन कानून आड़े आ गया. मामला कोर्ट पहुंचा. अब दिल्ली हाई कोर्ट ने उस महिला को 29 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति देने वाला अपना पहले का आदेश वापस ले लिया है. पिछले साल अक्टूबर में उसके पति की मौत हुई थी.

अजन्मे बच्चे का अधिकार
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा, ‘आदेश वापस लिया जाता है.’ न्यायमूर्ति ने यह फैसला तब दिया है जब केंद्र सरकार ने इस आधार पर गर्भपात की अनुमति देने वाले चार जनवरी के आदेश को वापस लेने का अनुरोध किया था कि बच्चे के जीवित रहने की उचित संभावना है. सरकार ने कहा कि अदालत को अजन्मे बच्चे के जीवन के अधिकार की रक्षा पर विचार करना चाहिए. केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि मौजूदा मामले में गर्भपात तब तक नहीं हो सकता जब तक कि डॉक्टर भ्रूण हत्या न कर दें, जिसमें नाकाम रहने पर जटिलताओं के साथ समय पूर्व प्रसव होगा. एम्स में महिला की जांच की गई है. एम्स ने भी सलाह दी है कि मां और बच्चे के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए इस गर्भावस्था को दो-तीन सप्ताह और जारी रखा जाए.

एम्स ने क्या कहा

एम्स ने कहा कि गर्भावस्था का चिकित्सीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के अनुसार प्रमुख असामान्याताओं वाले भ्रूण के लिए 24 सप्ताह से अधिक समय बाद गर्भपात का प्रावधान है और इस मामले में भ्रूण हत्या न तो उचित है और न ही नैतिक है क्योंकि भ्रूण बिल्कुल सामान्य है.

पहले कोर्ट का फैसला क्या था

दिल्ली हाई कोर्ट ने चार जनवरी को अवसाद ग्रस्त इस विधवा को 29 सप्ताह का गर्भ गिराने की अनुमति दे दी थी. तब कोर्ट ने कहा था कि गर्भावस्था जारी रखना उसके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा था कि प्रजनन के विकल्प के अधिकार में प्रजनन न करने का अधिकार भी शामिल है.

मानसिक स्थिति खराब हो सकती है

हाई कोर्ट ने कहा कि महिला की वैवाहिक स्थिति में बदलाव आया है. उसके पति की मृत्यु 19 अक्टूबर 2023 को हो गई थी और उसे अपने गर्भवती होने की जानकारी 31 अक्टूबर 2023 को हुई. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा था कि महिला को गर्भ गिराने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि इसे जारी रखने से उसकी मानसिक स्थिति खराब हो सकती है क्योंकि उसमें आत्महत्या की प्रवृत्ति दिखाई दी है. महिला का विवाह फरवरी 2023 में हुआ था और अक्टूबर में उसने अपने पति को खो दिया, इसके बाद वह अपने मायके आ गई और वहां उसे पता चला कि उसे 20 सप्ताह का गर्भ है. महिला ने दिसंबर माह में यह निर्णय लिया कि वह गर्भावस्था जारी नहीं रखेगी क्योंकि वह अपने पति की मौत से गहरे सदमे में है. उसके बाद उसने डॉक्टरों से संपर्क किया. गर्भावस्था की अवधि 24 सप्ताह से अधिक हो जाने के कारण उसे गर्भपात की अनुमति नहीं दी गई.

इसके बाद, महिला ने अदालत का रुख किया और चिकित्सकीय गर्भपात की अनुमति दिए जाने का अनुरोध किया. महिला की मानसिक स्थिति का पता लगाने के लिए एक चिकित्सकीय बोर्ड का गठन किया गया. एम्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि महिला अवसादग्रस्त पाई गई है.