कोरोना से संक्रमित हैं या फ्लू से? अब नई तकनीक के सहारे लक्षण से ही चल जाएगा पता

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फ्लू (Flu) से इंसानों का नाता सैंकड़ों साल पुराना है. वैसे वैज्ञानिकों का मानना है धरती पर वायरस, इंसान से पहले से मौजूद है. हालांकि ज्ञात इतिहास में 1918-19 में फैली महामारी इन्फ्लूएंजा से ही फ्लू की जानकारी सामने आती है. या यूं कहा जा सकता है कि उस दौरान हमने इस बीमारी को पहचाना और नाम दिया. वहीं धरती पर इंसानों के अस्तित्व और विकास को समझें तो यह गौर करने वाली बात है कि भारत में हजारों सालों से योग की परंपरा रही है. वेदों में भी योग का जिक्र आता है. र योग पूरी तरह से सांसों के उतार-चढ़ाव और लेने-छोड़ने पर निर्भर है. कुल मिलाकर प्राणायाम ही योग का आधार है. वहीं फ्लू जैसी बीमारी जो ज्ञात इतिहास में 100 साल से हमारे साथ है और अलग अलग रूप में बार बार महामारी के रूप में आती है. उससे संबंधित वायरस हमारी सांसो और फेफड़ों को सबसे पहले नुकसान पहुंचता है. अगर इन दोनों बातों को एक साथ जोड़ कर देखा जाए तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है शायद यही वजह रही है कि भारत में प्राणायाम को इतनी महत्ता दी जाती है.

प्राणायम संक्रमण से सुरक्षा प्रदान कर सकता है लेकिन बीमारी होने के बाद तो उसका इलाज ही जरूरी होता है. इलाज के लिए जरूरी होता है सही बीमारी की जानकारी मिलना. चूंकि कोरोना आने के बाद तक फ्लू कई बार रूप बदल कर आ चुका है. वायरस ने हजारों बार खुद को म्यूटेंट किया है. लेकिन खास बात यह है कि फ्लू हो या कोरोना प्राथमिक स्तर पर लक्षण समान ही होते हैं. यही वजह थी की कोरोना काल की शुरुआत में इसे साधारण फ्लू की तरह ही लिया गया. यहां तक कि कई लोग कोरोना होने के बाद भी इसलिए जांच के लिए नहीं गये क्योंकि वह मान कर बैठे थे कि उन्हें फ्लू ही हुआ है. कोरोना महमारी को दो साल गुजर चुके हैं लेकिन यह यक्ष प्रश्न अभी तक बना हुआ है कि मरीज कोरोना से पीड़ित है या उसे फ्लू हुआ है. उस पर अगर कहीं फ्लू का मौसम चल रहा है तो यह मुश्किल और बढ़ जाती है.

कोरोना बनाम फ्लू
रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) के मुताबिक यह दोनों ही सांस से जुड़ी बीमारी है. इसलिए इसे लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है. लेकिन फ्लू के लिए जहां इन्फ्लूएंजा वायरस जिम्मेदार होता है. वहीं कोविड-19, SARS-CoV-2 के संक्रमण की वजह से होता है. कोरोना फ्लू की तुलना में तेजी से फैलता है. ऐसे में सही इलाज के लिए सही बीमारी का पता लगाने को लेकर हाल ही में वैज्ञानिकों ने सफलता हासिल की है. चूंकि दोनों के लक्षण समान होते हैं जिसे देखते हुए जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेज ने विशेषज्ञों ने एक विशेष तरह का एल्गोरिदम तैयार किया है जिससे फ्लू के मौसम में कोविड की जानकारी लग सकेगी. इस एल्गोरिदम के माध्यम से उस विशेष लक्षण का पता लगाया जा सकेगा जो कोविड होने की ज्यादा संभावना दर्शाता है. इसमें जांच से पहले ही मौसम को आधार बनाकर मरीज को क्या हुआ है, इसका अनुमान लगाया जा सकता है. यहां मौसम को आधार बनाने से मतलब है कि वह मौसम कौन-सी बीमारी का है.

लक्षण के आधार पर होगी पहचान
इससे कोविड के मरीजों के बारे में पता लगाने में अहम मदद मिल सकेगी. शोधकर्ताओं का कहना है कि जब जांच की उपलब्धता सीमित हो या परिणाम मिलने में देर हो ऐसे में वह डॉक्टर जो सामुदायिक स्तर पर काम करते हैं वह प्रयोगशाला के परिणामों की तुलना में समुदाय में मौजूद लक्षणों को आधार बनाकर इलाज कर सकते हैं.

अब भारत में बूस्टर डोज लगवाने के लिए भुगतान करना होगा साथ ही सरकार ने मुफ्त जांच को सीमित कर दिया है. वहीं विदेशों में तो 1 अप्रैल से सरकार ने मुफ्त जांच को पूरी तरह से बंद करने का फैसला ले भी लिया है. ऐसे में कई लोग जांच से कतराएंगे और यह स्थिति फिर से महामारी को न्यौता दे सकती है. लेकिन इस एल्गोरिदम से जानकारी मिलने के बाद सामुदायिक स्तर पर लक्षणों की जांच करके डॉक्टर एहतियात के तौर पर मरीज को घर में रहने की सलाह दे सकता है.

एल्गोरिदम से मिलेगी मदद
नया अध्ययन बताता है कि सामुदायिक आधारित स्वास्थ्य प्रदाताओं को कोविड की जानकारी के लिए लक्षण और संकेतों का अनुसरण करना चाहिए, मसलन अगर फ्लू का मौसम नहीं है तो बुखार कोविड के बारे में पता करने के लिए ज्यादा मजबूत लक्षण हैं. अध्ययन यह भी बताता है कि वहीं अगर फ्लू के मौसम में बुखार होने का मतलब कतई नहीं है कि कोविड है. यह एल्गोरिदम अलग-अलग उम्र और लिंग के लिए अलग तरह से काम करती है.

हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि यह एल्गोरिदम काफी जटिल है. इसलिए किसी भी चिकित्सक से इसे आधार बनाकर आंकलन की उम्मीद करना गलत होगा. इसलिए अब शोधकर्ता आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस युक्त एक वेब आधारित कैलकुलेटर बनाने वाले हैं जो यह काम आसानी से कर पाएगा.