जिस माता कैकेयी के कारण सीता जी वन-वन भटकीं, मुंहदिखाई में दिया था सोने का महल

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Kanak Bhawan Ayodhya: प्रभु श्रीराम ने जब भगवान शिव का धनुष तोड़कर सीता जी का स्‍वयंवर जीता तो राजा जनक ने अपनी बेटी के साथ उनका धूमधाम से विवाह रचाया. विवाह के बाद प्रभु राम और माता सीता को अयोध्‍या वापस लौटना था. इससे पहले वे कुछ दिन अपने ससुराल जनकपुरी में ही ठहरे. तब उन्‍हें एक दिन रात्रि में विचार आया कि जनकनंदिनी वैदेही अब हमारी अयोध्या जाएंगी. तब उनके लिए वहां अति सुंदर भवन होना चाहिए.

रानी कैकेयी को स्‍वप्‍न में दिखा कनक भवन

पौराणिक कथाओं के अनुसार जिस क्षण भगवान राम के मन में माता सीता के लिए सुंदर भवन की बात आई, उसी क्षण अयोध्या में महारानी कैकेयी को स्वप्न में साकेत धाम वाला दिव्य कनक भवन दिखाई पड़ा. अगले दिन महारानी कैकेयी ने महाराजा दशरथ से स्वप्न में दिखे कनक भवन की प्रतिकृति अयोध्या में बनवाने की इच्छा व्यक्त की. उनकी इच्‍छा को देखते हुए शिल्पी विश्वकर्मा अयोध्‍या आए और उन्‍होंने राजा दशरथ के आग्रह पर अयोध्या में अति सुंदर कनक भवन बनाया.

सीता जी को मुंहदिखाई में दिया कनक भवन

जब प्रभु राम अपनी नवविवाहिता पत्‍नी सीता जी के साथ अयोध्‍या आए तो उनका जोर-शोर से स्‍वागत हुआ. सभी रानियों ने जनकदुलारी सीता जी को मुंहदिखाई में एक से बढ़कर एक तोहफे दिए लेकिन सबसे खास तोहफा दिया रानी कैकेयी ने. रानी कैकेयी ने रत्‍नों से जड़ा हुआ सोने का महल कनक भवन अपनी बहू सीता को मुंह-दिखाई में दिया. विवाह के बाद राम-सीता इसी भवन में रहे. यह महल बेहद सुंदर थे. कनक भवन सीता-राम का अन्त:पुर है.

रानी कैकेयी ने ही मांगा था वनवास

रानी कैकेयी राजा दशरथ की वही पत्‍नी थीं जिन्‍होंने अपनी दासी मंथरा की बातों में आकर राजा दशरथ से रानी कौशल्‍या के पुत्र राम के लिए 14 वर्ष का वनवास और अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्‍या की राजगद्दी मांगी थी. इसके बाद प्रभु राम अपने पिता का वचन निभाने के लिए 14 साल तक वन-वन भटके.