अभी-अभी: वैज्ञानिकों ने बताया धरती के नाश का समय, बुरी तरह तड़प-तड़पकर मरेंगे लोग

Now: Scientists told the time of destruction of the earth, people will die in agony
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Sixth Mass Extinction: आज से करोड़ों साल पहले आखिरी प्रलय आई थी. कहा जाता है तभी धरती से डायनासोर खत्म हो गए. उस महाप्रलय के घटनाक्रम को वैज्ञानिकों ने धरती का 5वां सामूहिक विनाश कहा था. फिलहाल यह चर्चा इसलिए क्योंकि वैज्ञानिकों को अब इस बात का डर सता रहा है कि जल्द ही 6वां महाविनाश यानी महाप्रलय आने वाली है. जिसे डूम्स डे (doomsday) यानी कयामत का दिन कहा जाता है. उनकी चिंता इस बात को लेकर भी है कि इस छठे महाविनाश के दौरान कई जीव-जंतुओं की प्रजातियों समेत इंसानों का भी खात्मा हो सकता है. एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के मुताबिक ये कथित छठा महाविनाश हवा और पानी में ऑक्सीजन (Oxygen crisis) की कमी से होगा.

हिंदू धर्मशास्त्रों के मुताबिक जब-जब प्रलय आई है, भगवान ने खुद अवतार लेकर मानव जाति की रक्षा की है. भूतकाल में क्या हुआ सही तरह से कोई नहीं जानता, इसी तरह भविष्य कोई नहीं जानता लेकिन अभीतक हुई खोज और वैज्ञानिक दस्तावेजों के हिसाब से धरती पर अभी तक 5 सामूहिक विनाश धरती हो चुके हैं. यानी इंसानों के पूर्वज 5 बार प्रलय का दंश झेल चुके हैं. दरअसल ये वो वक्त होता है जब एक साथ पूरी की पूरी प्रजाति धरती से गायब हो जाती है.

डूम्स डे यानी महाविनाश के दिन को तबाही, दुनिया का अंत, प्रलय, धरती का अंत, मानवजाति का सफाया और कयामत जैसे कई नामों से जाना जाता है. इस भयावाह सच्चाई के बारे में आपको बताएं तो वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती पर पहली प्रलय (mass extinction) करीब 44 करोड़ तीस लाख साल पहले आई थी. उस घटनाक्रम को एंड-ऑर्डोविसियन कहा गया था. इस दौरान धरती पर जितना पानी था, वो बर्फ में बदलने लगा.

पहली महाप्रलय आने के बाद उस दौर में धरती पर मौजूद सभी जीव जंतु चाहे वो मैगानों में रहे हों या समुद्र में सभी ठंड से मर गए. उस दौर में करीब 86 प्रजातियां खत्म हो गईं. जो बच गईं वो इसलिए बच पाईं क्योंकि उन्होंने नए पर्यावरण और नवीन जलवायु के हिसाब से खुद को ढाल लिया था. आपको बता दें कि करीब 5 साल पहले साल 2017 के करंट बायलॉजी जर्नल में इस पहली महाप्रलय के बारे में बड़े विस्तार से जानकारी दी गई है.

पश्चिमी देशों की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक के मुताबिक धरती पर दूसरी बार प्रलय 36 करोड़ साल पहले आई थी. हालांकि इसकी टाइमिंग का एकदम सही अंदाजा वैज्ञानिकों को भी नहीं है. लेकिन धरती से जीवन के अंत के इस सेकेंड एपिसोड को वैज्ञानिकों ने एंड डेवोनियन नाम दिया. माना जाता है कि तब धरती पर एकसाथ कई ज्वालामुखियों के अचानक एक्टिव होने से ऑक्सीजन का स्तर कम होने लगा था. ये सब इतना भयानक था कि उस समय 75 % से ज्यादा प्रजातियां खत्म हो गईं. कई मछलियां और कोरल भी खत्म हो गए. इस बार कुछ छोटे साइज वाली प्रजातियां जैसे टेट्रापॉड वगैरह बची रह गईं. माना जाता है कि इस महाविनाश के बाद से एंफिबियन, रेप्टाइल और मैमल का बंटवारा शुरू हुआ.

तीसरी प्रलय यानी महाविनाश को वैज्ञानिकों ने एंड पर्मिअन नाम दिया है. जिसे चारकोल गैप भी कहा जाता है. करीब 25 करोड़ साल पहले साइबेरिया में मौजूद ज्वालामुखी जब फटने लगे. तब समुद्र और हवा में जहर और एसिड फैलने लगा. जिससे उस दौर में मौजूद ओजोन की परत फट गई थी. जिसके बाद धरती तक पहुंची अल्ट्रा-वाइलेट किरणों ने तबाही मचाई. तब जंगल के जंगल जलकर भस्म हो गए तो फंगस के अलावा और भी कई प्रजातियां खत्म हो गईं.

चौथी बार धरती पर महाप्रलय यानी मौत का तांडव 21 करोड़ साल पहले मचा, जिसे एंड ट्रिएसिक दौर कहा गया था. बताया जाता है कि इस बार भी यानी लगातार तीसरी महाप्रलय की वजह वो ज्वालामुखी रहे जो धरती के कोने-कोने पर मौजूद थे. इस महाविनाश के दौरान डायनासोर और क्रोकोडाइल के कुछ पूर्वजों ने जैसे-तैसे खुद को बचा लिया था.

पांचवे सामूहिक विनाश को एंड क्रिटेशिअस नाम दिया गया. एस्टेरॉयड के धरती से टकराने को 5वें महाविनाश की वजह बताया जाता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक इसी समय डायनासोर धरती से गायब हो गए. करीब साढ़े 6 करोड़ साल पहले आई प्रलय के इस थ्योरी पर लंबे समय से बहस चल रही है. चूंकि यह सबसे ज्यादा ज्ञात प्रलय थी इसलिए इसी के बारे में सबसे ज्यादा अध्यन, शोध और चर्चा अक्सर आज भी होती रहती है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक उस दौर में एक एस्टेरॉयड धरती से टकराया, लेकिन क्या वो टक्कर इतनी भयानक थी कि तब पूरी दुनिया में मौजूद ऑक्सीजन खत्म हो गई? इसको लेकर कई बातें कही जाती हैं. वहीं दूसरा बड़ा सवाल ये उभरा कि क्या इन्हीं दो वजहों से डायनासोर जैसी मजबूत प्रजाति भी खत्म हो गई? इस शोध के कई नतीजों में ये भी कहा गया कि वातावरण में विषैली गैल कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) तेजी से बढ़ी और ऑक्सीजन का स्तर एकदम नीचे चला गया होगा.

अब बात उस 6ठे महाविनाश की, जिसकी बात वैज्ञानिक कर रहे हैं. तो ये कैसे होगा? क्यों और कब होगा? ऐसे सवालों का जवाब देते हुए 1990 के दशक की शुरुआत में मशहूर जीवाश्म विज्ञानी रिचर्ड लीके ने चेतावनी देते हुए कहा था कि इंसान ही 6वें विनाश के जिम्मेदार होंगे. आपको बताते चलें कि धरती पर इससे पहले आ चुकी पांचों महाविनाश की घटनाएं प्राकृतिक यानी कुदरत की मार थीं. इस बार तो प्रलय का खतरा इसलिए बढ़ गया है क्योंकि मनुष्यों की गतिविधियां धरती पर तेजी से ऑक्सीजन कम कर रही है.

भारत के कई शहरों की गिनती दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में होती है. अभी कुछ दिनों पहले आई एक रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में इंसानों ने एतिहासिक रूप से CO2 और अन्य जहरीली गैसों के उत्सर्जन के पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं. ग्लेशियर तेजी पिघल रहे हैं. धरती का तापमान भी तेजी से बढ़ रहा है. प्रलय के बिना भी धरती से लगातार कई स्पीशीज खत्म होती रहती हैं. धरती पर स्पीशीज के गायब होने की रफ्तार लगभग 100 गुना तेज हो चुकी है. यानी इंसानों की गतिविधियों की वजह से 100 गुनी स्पीड से जीव-जंतुओं का विनाश हो रहा है.

प्रोसिडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (PNAS) में काम कर रहे वैज्ञानिकों ने आगामी यानी छठवें सामूहिक विनाश को होलोसीन नाम दिया है. दुनियाभर में भूकंप आने की घटनाएं बढ़ी हैं. बताया जा रहा है कि इस छठे महाविनाश के दौरान पानी इतना गर्म हो जाएगा कि पानी में मौजूद ऑक्सीजन का स्तर घटने लगेगा. इस वजह से इंसान, समुद्री जीव-जंतु सभी मरने लगेंगे. अब तक ये पता नहीं लग सका कि अगली प्रलय कब आएगी लेकिन साइंस के कई शोधपत्रों में इससे जुड़े दावे किए गए हैं. साइंस एडवांसेज में मेसाचुसेट्स प्रौद्योगिक संस्थान के प्लानेटरी साइंसेज विभाग ने अपने शोध के आधार पर कहा कि साल 2100 के करीब ऐसा हो सकता है क्योंकि जितनी तेजी से धरती गर्म हो रही है तो महाविनाश उसके तय समय से पहले भी हो सकता है.