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असम के दरंग जिले के 3 नंबर धौलपुर गांव में ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी सुता के किनारे एक अस्थायी ठिकाने से रुक-रुक कर छोटे बच्चों और महिलाओं के रोने की आवाज़ आ रही थी.
कुछ दिनों पहले इस गांव के लोगों की जिंदगी सामान्य थी, लेकिन 23 सितंबर को असम सरकार के आदेश पर ‘अवैध अतिक्रमण’ के ख़िलाफ़ पुलिस कार्रवाई और ग्रामीणों के साथ हिंसक झड़प ने पूरे गांव को उजाड़ कर रख दिया.
दरंग जिला प्रशासन के मुताबिक़, गुरुवार को हुई एक हिंसक झड़प में दो लोगों की मौत हो गई, जबकि नौ पुलिसकर्मी और सात ग्रामीण घायल हो गए. घायल सभी ग्रामीणों का इलाज गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में किया जा रहा है.
हालांकि 3 नंबर धौलपुर गांव में प्रवेश करने पर हिंसक झड़प से होने वाला नुकसान प्रशासन के दावों से कहीं ज्यादा दिखाई पड़ता है.
सिपाझार शहर से करीब 14 किलोमीटर अंदर की ओर आने पर ‘नो नदी’ का खार घाट मिलता है. इस घाट से नदी पार करने के लिए देशी नाव ही एकमात्र सहारा है.
नदी के उस पार 3 नंबर धौलपुर गांव है. वहां अंदर की ओर जाने पर समूचे गांव में लोगों के तोड़े हुए और जलाए गए मकान दिखने शुरू हो जाते हैं. क़रीब चार किलोमीटर दूर सुता नदी तक यह नजारा एक जैसा ही दिख रहा था.
कहीं लोगों की जली हुई बाइक और साइकिल दिख रही थी, तो कहीं टूटे मकान के बाहर बर्तन और फर्नीचर बिखरे हुए थे. अपने उजड़े आशियानों के बाहर कुछ महिलाएं अपना बचा-खुचा सामान तलाश रही थीं.
मृतक के परिवार वालों का दुख
सुता नदी के किनारे गांव के कुछ लोगों ने अपने छोटे बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं के साथ एल्युमिनियम की चादर से बने अस्थाई छत के नीचे डेरा डाल रखा है. इन्हीं में से एक घर के बाहर किसी के रोने की आवाज़ सुनाई पड़ रही थी. असल में ये मोइनुल हक़ का परिवार है, जिनकी गुरुवार को पुलिस की गोली से मौत हो गई थी.
28 साल के मोइनुल हक़ को गोली मारने और पुलिस के साथ मौजूद एक कैमरामैन के उन्हें पीटने और उन पर कूदने का एक वीडियो वायरल हुआ था. उसके बाद ज़िला प्रशासन की ओर से नियुक्त उस कैमरामैन को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया.
मोइनुल की बूढ़ी मां मोइमोना बेगम का रो-रो कर बुरा हाल है. वो मिलने आने वालों से सिर्फ़ एक बात कहती हैं कि मुझे मेरा बेटा लाकर दो.
वो रोती हुई कहती है, “मुझे अपना बेटा चाहिए. उन लोगों ने मेरे बेटे के पेट में गोली मारने के बााद उसे लात से भी मारा. लोग उसके सीने पर कूद रहे थे. एक मां अपने बेटे का ये हाल कैसे देख सकती है. मैंने वो वीडियो नहीं देखा, लेकिन मुझे गांव के लोग आकर बताते रहते हैं. उसे मारने के बाद वो लोग उसे घसीटते हुए ले गए.”
मोइनुल के तीन छोटे बच्चों को दिखाते हुई 66 साल की मोइमोना कहती हैं, “मोइनुल दिहाड़ी मजदूरी कर हम सबका पेट पालता था. उसके तीन छोटे बच्चे है. अब उनका ख्याल कौन रखेगा? हमारा परिवार अब कैसे जिंदा रहेगा? जब से मोइनुल गया है किसी ने खाना नहीं खाया है. उन लोगों ने हमारा घर तोड़ दिया और मेरे बेटे को भी मार दिया. हम इसी देश के नागरिक है. यही हमारी जमीन और घर था. मेरा और किसी जगह घर नहीं है. सब कुछ यहीं है. मेरा जन्म इसी देश में हुआ है. हम सभी का नाम एनआरसी में आया है. फिर हमारे साथ ऐसा क्यों किया जा रहा है?”
वहीं मोइनुल की पत्नी ममता बेगम रुक-रुक कर बेसुध हो जाती हैं. उन्होंने भी वो वीडियो नहीं देखा. धीमी आवाज़ में वो कहती हैं, “हमारा घर तोड़ दिया गया. उसके बाद मोइनुल खेत संभालने गया था. और फिर थोड़ी देर बाद ही ये घटना हुई. मेरे पति को बहुत बेरहमी से मारा गया. उनकी मौत का नज़ारा लोग अब मोबाइल में देख रहे हैं. हमारे तीन छोटे-छोटे बच्चे हैं. अब हम आगे क्या करेंगे? घर भी तोड़ दिया है. हम अब बच्चों को लेकर कहां जाएंगे.”
मोइनुल के वायरल होने वाले इस वीडियो के चलते गांव के लोगों में काफी डर फैल गया है. इस गांव के ही 18 साल के छात्र क़ुर्बान अली इस वक़्त 12वीं में पढ़ रहे हैं. वो इस वायरल वीडियो के बारे में बताते है, “मैंने जब से ये वीडियो देखा है, तब से काफी उदास और परेशान हूं. कोई इंसान एक मरे हुए व्यक्ति पर इस तरह कैसे कूद सकता है? ये कितना क्रूर है.”
हिंसा के बाद एक दिन के लिए रुका अभियान
पिछले गुरुवार को हुई हिंसक झड़प के बाद, जिला प्रशासन ने शुक्रवार को एक दिन के लिए बेदखली अभियान रोक दिया था. इसलिए कई लोग अपने बचे हुए समानों को लेकर सुता नदी के उस पार जा रहे थे. गांव के ही कुछ नागरिकों का कहना था कि सुता नदी के उस पार की जमीन को सरकार अभी खाली नहीं करा रही.
असल में सुता नदी के उस पार का इलाका ब्रह्मपुत्र के बिलकुल नजदीक है, जहां हर साल भयंकर बाढ़ आती है. क़ुर्बान अली का परिवार भी घर टूटने के बाद रहने के लिए सुता नदी के उस पार चला गया है. लेकिन वो कहते है कि वहां भी लोग महज़ कुछ ही महीने रह पाएंगे, क्योंकि बाढ़ के आते ही वो जगह छोड़नी पड़ेगी.
प्रशासन के वैकल्पिक इंतज़ाम का अभाव
3 नंबर धौलपुर गांव में चलाए गए बेदखली अभियान के बाद जिन लोगों के घर तोड़े गए, उनके लिए जिला प्रशासन द्वारा रहने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था वहां दूर-दूर तक नजर नहीं आती. गांव में तीन-चार जगह पीने के पानी के ट्यूबवेल जरूर लगे हुए दिखे. लेकिन बच्चों और बुजुर्गों के लिए न खाने-पीने की कोई व्यवस्था थी और न ही वहां किसी तरह की कोई आवश्यक सेवा का बंदोबस्त था.
गांव के कुछ लोगों का आरोप है कि जिला प्रशासन ने बेदखली अभियान के दौरान तीन मस्जिदों और एक मदरसे को भी तोड़ दिया, जिसके चलते कइयों को बाहर ही जुम्मे की नमाज अदा करनी पड़ी.
दो नंबर धौलपुर गांव के रहने वाले अमर अली अपने टूटे हुए घर के ठीक सामने एक मस्जिद के मलबे को दिखाते हुए कहते हैं, “ये सुन्नी मस्जिद है. गांव के लोग यहीं नमाज अदा करते थे, लेकिन इसे तोड़ दिया गया. आगे एक प्राथमिक सरकारी स्कूल के पास वाली मस्जिद भी तोड़ दी गई है. लेकिन स्कूल को छुआ तक नहीं गया. उन लोगों ने गांव में तीन मस्जिद और एक मदरसा तोड़ा है. मेरे पिता पहले इसी मस्जिद में पांच वक़्त की नमाज पढ़ते थे, लेकिन अब घर भी टूट गया और मस्जिद भी. इसलिए हमने आज बाहर ही जुम्मे की नमाज अदा की.”
असम में बीजेपी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मुख्यमंत्री बनाए गए हिमंत बिस्व सरमा को अभी महज चार ही महीने हुए हैं. लेकिन प्रदेश में जिस तरह ‘अवैध अतिक्रमण’ के ख़िलाफ़ अभियान चलाया जा रहा है, उससे सैकड़ों लोगों का जीवन परेशानियों से घिर गया है.
पिछले चार महीनों में असम सरकार ने ‘अवैध अतिक्रमण’ के नाम पर जिन हजारों लोगों के ख़िलाफ़ बेदखली अभियान चलाया है, वो सारे बंगाली मूल के मुसलमान हैं.
पिछले 20 सितंबर को दरंग जिले के सिपाझार थाना क्षेत्र में 1 नंबर और 2 नंबर धौलपुर गांव में एक अभियान चलाकर लगभग 4,500 बीघा भूमि को मुक्त कराया गया. इसके चलते कम से कम 800 परिवार बेघर हो गए. लेकिन 23 सितंबर को प्रशासन के साथ स्थानीय लोगों की हुई इस हिंसक झड़प से राज्य सरकार पर कई तरह के आरोप लग रहे हैं.
विपक्षी पार्टियां और मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन सरकार की इस कार्रवाई की आलोचना करते हुए इसे गुवाहाटी हाईकोर्ट के आदेश का उल्लंघन बता रहे हैं.
कांग्रेस ने पुलिस फायरिंग को बर्बर बताया
असम प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भूपेन बोरा ने अतिक्रमणकारियों पर पुलिस की फायरिंग को बर्बरता वाली कार्रवाई बताया है.
शुक्रवार को 3 नंबर धौलपुर गांव में कांग्रेसी सांसद और विधायक दल के साथ मौजूद बोरा ने स्थानीय लोगों से कहा, “असम के निर्दोष लोगों की हत्या करने कि लिए हम इस सरकार को लाइसेंस नहीं दे सकते. असम के मुख्यमंत्री बार-बार पुलिस को भड़का कर भय और डर का जो माहौल पैदा कर रहे हैं, हम उसका लगातार विरोध करेंगे.”
बोरा ने आगे कहा, ”सरकार से हमारी मांग है कि गुवाहाटी हाईकोर्ट के एक मौजूदा जज इस घटना की जांच करें. हम चाहते हैं कि सरकार इस घटना के लिए दरंग जिले के उपायुक्त और पुलिस अधीक्षक को तत्काल निलंबित करें. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुसार, सरकारी ज़मीन से बेदख़ल होने वालों को दूसरी जगह बसाया जाए. और जब तक सरकार कोई दूसरी व्यवस्था नहीं कर लेती, तब तक यह अभियान हम चलाने नहीं देंगे.”
मुख्यमंत्री ने कहा: अभियान जारी रहेगा
हालांकि इस बेदखली अभियान को लेकर विपक्षी दलों के तीखे प्रहार के जवाब में मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने स्थानीय मीडिया के सामने कहा, “सरकारी जमीन पर क़ब्ज़ा करने के मामले में हम ढील नहीं दे सकते. शिव मंदिर की जमीन पर कोई क़ब्ज़ा करता है क्या? कल कोई कामाख्या मंदिर पर कब्जा करेगा, तो मैं कुछ नहीं करूंगा, ये मानने वाली बात नहीं है.”
मुख्यमंत्री ने बताया, “सरकारी जमीन पर हम किसी को क़ब्ज़ा करने नहीं देंगे. जो गरीब हैं और जिनके पास रहने की जमीन नहीं है, उन्हें सरकार की भूमि नीति के तहत छह बीघा जमीन मिलेगी. ये बात मैं पिछले दो महीने से कह रहा हूं. एसपी और डीसी को निलंबित करने का कोई सवाल ही नहीं है. वो लोग मेरे कहने पर ही बेदखली अभियान चला रहे हैं.”
हिमंत बिस्व सरमा के अनुसार, “दस हजार लोगों ने लाठियों और भाले के साथ हमारे पुलिस बल पर हमला किया. कैमरामैन ने जो किया मैं उसकी निंदा करता हूं. लेकिन केवल तीन मिनट का वीडियो दिखाने से नहीं चलेगा. उसके आगे और बाद का वीडियो भी दिखाना होगा. सरकार का बेदखली अभियान रोकने का कोई सवाल ही नहीं है.”
लोगों का दावा: पुलिस रहने की जगह नहीं दे रही
पुलिस के साथ हुई हिंसक झड़प के दिन वहां मौजूद 1 नंबर गांव के मोहम्मद तायेत अली कहते हैं, “गुरुवार को गांव के लोग शांतिपूर्ण ढंग से अपना आंदोलन कर रहे थे. जब पुलिस के लोग घर तोड़ने आए, तो लोगों ने उनसे कहा कि पहले हमें रहने की जगह बता दें फिर घर तोड़ें. इस बात पर थोड़ी कहासुनी हुई. लेकिन अचानक क्या हुआ, ये तो नहीं बता सकता, पर मैंने गोली चलने की आवाज़ सुनी. मैं जब इस ओर आया तो देखा एक घायल आदमी जमीन पर पड़ा था.”
मोहम्मद तायेत आगे कहते हैं, “ये सरकार की ही जमीन है. लेकिन यहां लोग 60-70 साल से बसे हैं. सरकार ने इतने दिनों तक कुछ नहीं किया, पर यदि अब सरकार को इस जमीन की जरूरत है, तो हम दे देंगे. हम असम के ही रहने वाले हैं. अगर हम असम के या फिर भारत के बाहर के नागरिक हैं तो सरकार जांच करा ले.”
वो आगे कहते हैं, “यदि हमारे नागरिकता से जुड़े कागजात में कोई कमी है, तो हमें यहां से बाहर निकाल दे. और यदि हम यहीं के रहने वाले हैं तो हमें रहने के लिए एक जमीन दी जाए. हम इंसान है. हम पर इस तरह के अत्याचार क्यों किए जा रहे हैं? हमारे लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से अपना आंदोलन किया था, लेकिन हम पर गोली चला दी गई.”
मोइनुल की पत्नी ममता बेगम और उनकी बेटी
वहीं ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन के सलाहकार आइनुद्दीन अहमद ने कहा, “प्रशासन के इस बेदखली अभियान में हमारे लोग पूरा सहयोग कर रहे थे. जिला प्रशासन ने भी ये आश्वासन दिया था कि जिन लोगों के घर तोड़े जा रहे हैं, उन्हें रहने के लिए दूसरी जमीन दी जाएगी. गुरुवार को जब प्रशासन के लोग जेसीबी लेकर आए तो लोगों ने उनसे केवल इतना कहा कि पहले कोई जमीन बता दें तो हम वहां चले जाएंगे.”
वो कहते हैं, “उस दौरान गांव के करीब चार-पांच हजार लोग प्रशासन की कार्रवाई का विरोध कर रहे थे. लेकिन घर तोड़ने आए पुलिस प्रशासन के लोगों ने गांव वालों की एक नहीं सुनी. इस दौरान ही ये घटना हो गई.”
गुरुवार को बेदखली अभियान के दौरान हुई हिंसक झड़प में मोइनुल के अलावा 13 साल के शेख फरीद की भी मौत हुई. कक्षा 7वीं में पढ़ने वाला फरीद उस दिन दोपहर को आधार कार्ड बनवाने के लिए डाकघर गया था. लेकिन उसके थोड़ी देर बाद ही घरवालों को सूचना मिली कि उनके बेटे की मौत हो गई.
फरीद के पिता खलीक अली कहते हैं, “फरीद आधार कार्ड बनवाने के लिए निकला था. उसके बाद क्या हुआ हमें अब तक सही जानकारी नहीं मालूम. गांव के एक व्यक्ति ने मुझे फरीद की खून से सनी एक तस्वीर दिखाई.”
दरंग ज़िला प्रशासन ने इन दोनों लोगों की मौत की पुष्टि तो की लेकिन घटना के बारे में ज्यादा नहीं बताया.
दरांग की उपायुक्त प्रभाती थाउसेन
प्रशासन का दावा 4,500 बीघा जमीन खाली हुई
दरंग जिला की उपायुक्त प्रभाती थाउसेन ने बीबीसी से कहा, “20 सितंबर को हमने एक अभियान चलाकर लगभग 4,500 बीघा सरकारी भूमि खाली कराई थी. उस दौरान गांव के लोगों ने भी पूरा सहयोग किया था. तब हमने गांव में पीने के पानी के लिए ट्यूबवेल लगवाने के साथ शौचालय की भी व्यवस्था की थी. इसके अलावा, वहां दो मेडिकल कैंप भी स्थापित किए थे. जाहिर सी बात है कि उस बेदखली अभियान में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आई थी.”
जिला उपायुक्त ने आगे बताया, “लेकिन जब गुरुवार को प्रशासन ने बेदखली का अपना अभियान शुरू किया तो हजारों लोग वहां जमा होकर विरोध करने लगे और पथराव करना शुरू कर दिया. उसके बाद ये घटना घटी. फिलहाल गृह विभाग ने इस मामले की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए हैं. जबकि पूरी घटना का सच्चाई का पता लगाने के लिए हमने मजिस्ट्रेट जांच बैठाई है.”
उन्होंने कहा कि सरकार ‘अवैध अतिक्रमण’ हटाने की कार्रवाई आगे भी जारी रखेगी. असम में इस साल मई में दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में आने से पहले बीजेपी ने वादा किया था कि यदि उनकी सरकार बनी तो सरकारी भूमि को ‘अतिक्रमणकारियों’ से मुक्त कराया जाएगा. खाली होने वाली जमीन को राज्य के भूमिहीन लोगों को आवंटित करने का भी वादा किया गया था.
खाली कराई गई जमीन पर ‘प्रोजेक्ट गोरुखुटी’ चलेगा
मुख्यमंत्री बिस्व सरमा की निजी पहल पर ख़ासकर चर इलाकों (नदी तटीय जमीन) की सरकारी जमीन पर ‘प्रोजेक्ट गोरुखुटी’ को शुरू किया गया है. इस कार्यक्रम का मकसद राज्य के शिक्षित बेरोजगार युवाओं को आजीविका के रूप में कृषि कार्य में काम पर लगाया जा रहा है.
दरंग जिले में जो सरकारी जमीन खाली कराई गई है, वहां इस प्रोजेक्ट का काम शुरू कर दिया गया है.
दरंग ज़िला प्रशासन का दावा है कि ज़िले में क़रीब 77 हज़ार बीघा ज़मीन पर अवैध क़ब्जा है लेकिन ये ज़मीन दो नदियों को बीच में होने के कारण बाढ़ के दौरान घटती बढ़ती रहती है.
पीड़ितों का दावा: वो सब भारतीय नागरिक हैं
प्रभावित गांव में हमने जितने भी लोगों से बात की उन सब ने ये दावा किया कि वो भारतीय नागरिक हैं और एनआरसी में भी उन्हें भारतीय नागरिक माना गया है.
दरंग ज़िले के धौलपुर गांव के रहने वाले 63 साल के अहमद अली कहते हैं, “पहले हमारा पूरा परिवार सिपाझार तहसील के किराकारा गांव में रहता था, लेकिन बाढ़ और भू-कटाव से हमारी ज़मीन नदी में चली गई. हमने धौलपुर में तीन कट्ठा ज़मीन ख़रीद कर घर बनाया और सालों से यहां रह रहे हैं. मैं 1983 से यहां वोट डालता आ रहा हूं. मेरे पास सारे काग़ज़ात हैं और एनआरसी में भी हमें भारतीय नागरिक माना गया है.”
दरंग ज़िला उपायुक्त से जब इस क्षेत्र में बसे लोगों की नागरिकता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अभी ये मुद्दा सरकारी जमीन पर ‘अवैध अतिक्रमण’ हटाने से जुड़ा है.
इस बीच ज़िला प्रशासन ने शुक्रवार की शाम को मोइनुल का शव उनके घर वालों को सौंप दिया है और रात क़रीब 1 बजे नमाज़ ए-जनाज़ा किया गया. लेकिन बेघर हुआ मोइनुल का परिवार अब भी इस चिंता में है कि वो अब आगे कहां रहेगा.