20 घंटे तक पैदल चले जवान, 4 घंटे हुई गोलीबारी… बस्तर में 29 नक्सलियों को मारने के लिए हुई कड़ी मशक्कत

Soldiers walked for 20 hours, there was firing for 4 hours... It took a lot of hard work to kill 29 Naxalites in Bastar.
Soldiers walked for 20 hours, there was firing for 4 hours... It took a lot of hard work to kill 29 Naxalites in Bastar.
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रायपुर: छत्तीसगढ़ के कांकेर में सुरक्षाबलों को अब तक की सबसे बड़ी सफलता मिली है। 20 घंटे पैदल चलकर जवान अपने टारगेट तक पहुंचे थे। जवानों ने बहुत ही सतर्कता के साथ अपने लक्ष्य को घेर लिया। रात भर पैदल चलने के बाद जवान पहाड़ी तक पहुंचे थे। उन्हें अपना टारगेट सामने दिख रहा था और अब ट्रिगर पर उंगली रखने का समय आ गया था। जवानों के सामने 30-40 माओवादियों का एक ग्रुप दिख रहा था। पहाड़ी पर पहुंचे जवानों ने उन्हें दोपहर के भोजन के बाद साफ-सफाई करते हुए देखा।

आराम के मूड में थे नक्सली
माओवादियों के दुश्मन इंस्पेक्टर लक्ष्मण केवट ने कहा कि वे आराम के मूड में थे। केवट ने 44 लोगों को मार गिराया है और उनके नाम पर छह वीरता पदक हैं। वे इस ऑपरेशन के लीडर भी हैं। वह माओवादियों के लिए काल हैं।

चार घंटे तक हुई गोलीबारी
इसके बाद चार घंटे तक भीषण गोलीबारी हुई, जब कांकेर के बिनगुंडा क्षेत्र की पहाड़ियों पर सूरज चमक रहा था और फिर वह डूब गया। जब बंदूकें शांत हुईं, तो जंगल के फर्श पर सूखे पत्तों के बीच 29 माओवादी मृत पड़े थे। उनमें से तीन वरिष्ठ कमांडर थे। पंद्रह (51%) महिलाएं थीं। बस्तर में किसी भी मुठभेड़ में माओवादियों की यह सबसे बड़ी संख्या है। पुलिस अभी तक सभी मृत माओवादियों की पहचान नहीं कर पाई है। उनका कहना है कि इतने सारे शवों का पोस्टमार्टम करने में समय लगेगा।

जवानों ने कैसे की यह कार्रवाई
वहीं, माओवादियों के गढ़ माने जाने वाले इस इलाके में सुरक्षा बलों ने इतनी बड़ी और घातक कार्रवाई कैसे की? बिनगुंडा कांकेर के छोटेबेठिया क्षेत्र में है, जो अबूझमाड़ से सटा हुआ है और महाराष्ट्र की सीमा के करीब है। इस तरह के तिराहे माओवादी गलियारे के रूप में जाने जाते हैं, जिन्हें सुरक्षा बलों की पहुंच से बाहर माना जाता है और इसलिए वरिष्ठ कमांडरों की आवाजाही के लिए सुरक्षित माना जाता है। यहीं पर शीर्ष माओवादी नेता रणनीति बनाने के लिए बैठकें करते हैं।

ग्रामीणों के साथ माओवादी कमांडर की थी मीटिंग
पुलिस को पता चला कि माओवादी डिवीजनल कमेटी के सदस्य शंकर राव और ललिता 5 अप्रैल से बिनगुंडा में स्थानीय कार्यकर्ताओं और ग्रामीणों के साथ बैठकें कर रहे थे। गृह मंत्रालय ने माओवादी शिविर के सटीक ग्रिड निर्देशांक भेजे। ऑपरेशन कांकेर के लिए मंच तैयार हो गया था। माओवादियों को ऐसा लगता था कि पुलिस ने अपनी चौकसी कम कर दी है। उन्हें क्षेत्र की पारंपरिक सुरक्षा पर भरोसा था। साथ ही लग रहा था कि पुलिस का ध्यान कहीं और है। चार महीने पहले भाजपा की सरकार बनने के बाद से अब तक 79 माओवादियों का सफाया किया जा चुका है, लेकिन अब तक सबसे ज़्यादा कार्रवाई बीजापुर और सुकमा में हुई है।

निश्चिंत थे माओवादी
पुलिस अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि 19 अप्रैल को लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में माओवादियों को लगा कि सुरक्षा बलों का ध्यान दक्षिण बस्तर पर है। कांकेर में 26 अप्रैल को मतदान होना है, जिससे शायद उन्हें लगा कि उनके पास सांस लेने का समय है। इसके अलावा, सुरक्षा बल आमतौर पर सुबह होते ही माओवादी शिविरों पर हमला करते हैं। मंगलवार की सुबह शांतिपूर्ण तरीके से बीतने के कारण माओवादियों को लगा कि वे आज के लिए सुरक्षित हैं। उन्हें दोपहर के हमले की उम्मीद नहीं थी।

हमारी मौजूदगी का हो गया था एहसास
मुठभेड़ में शामिल एक अधिकारी ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि किसी तरह उन्हें हमारी मौजूदगी का आभास हो गया और अचानक से हलचल शुरू हो गई। कैडर एक-दूसरे के साथ सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल कर रहे थे और तुरंत ही हम पर गोली चलाने के लिए पोजीशन ले ली। दोनों तरफ से बंदूकें चल रही थीं। वे हमसे करीब 300 मीटर की दूरी पर थे। हम पेड़ों और चट्टानों के पीछे मजबूत स्थिति में थे।

दोपहर तीन बजे चली थी पहली गोली
पहली गोली दोपहर 3 बजे के आसपास चली और शाम 7 बजे तक पहाड़ियों पर सन्नाटा नहीं छा गया। सूर्यास्त के बाद भी गोलियां और चीखें अंधेरे को चीरती रहीं। माओवादी इतनी जबरदस्त ताकत का सामना नहीं कर सके, हालांकि उनके पास स्वचालित हथियार थे।

टॉर्च की रोशनी में शुरू की तलाशी
जब बीएसएफ और डीआरजी के जवानों ने टार्च की रोशनी में पहाड़ी की तलाशी शुरू की, तो उन्हें हर कुछ मीटर पर लाशें मिलीं। हर कुछ मिनट में मरने वालों की संख्या बढ़ती गई 10, 13, 18, 23 और फिर 29। अगर 30 माओवादी थे, तो मारे जाने वालों की संख्या लगभग 100% थी।

कमांडरों के शव की पहचान पहले
पुलिस ने बताया कि ललिता, शंकर और दूसरे कमांडर विनोद गावड़े के शवों की पहचान सबसे पहले की गई। उन्होंने पहले भी कई बार शंकर को गिरफ्तार करने की कोशिश की थी लेकिन वह हमेशा भागने में कामयाब रहा। वहीं, टाइम्स ऑफ इंडिया ने पुलिस अधिकारियों से सोशल मीडिया और कई न्यूज़ वेबसाइट पर एनकाउंटर के फुटेज के तौर पर चल रहे वीडियो के बारे में पूछा। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि यह बिनागुंडा ऑपरेशन का है।

कांकेर के जंगल में अभी हरियाली नहीं
कांकेर के एसपी कल्याण एलेसेला ने कहा कि वीडियो में दिखाया गया परिदृश्य ‘बिल्कुल अलग’ है। उन्होंने कहा कि कांकेर के जंगल में अभी हरियाली नहीं है। ऐसे वीडियो किसी बड़ी मुठभेड़ के बाद सामने आते हैं, उनमें से ज़्यादातर भ्रामक या फ़र्जी होते हैं।

एसपी ने कहा कि मेरी टीम मजबूत और बेहद प्रेरित थी, लेकिन जब दो जवानों और फिर तीसरे के घायल होने की सूचना मिली, तो तनाव बढ़ गया। लेकिन हमारे जवानों ने जल्द ही माओवादियों पर काबू पा लिया। आमतौर पर, पहली गोली चलने के बाद शीर्ष कैडर सबसे पहले भाग निकलते हैं। समूह में दंडकारण्य स्पेशल जोन कमेटी के सदस्य कमलेश और रामदेव की मौजूदगी के बारे में जानकारी थी। वे शायद जल्दी से भाग निकले।

पेड़ों पर थे गोलियों के निशान
बुधवार को सूर्योदय के समय मुठभेड़ स्थल पर भीषण मुठभेड़ के निशान दिखाई दे रहे थे। युद्ध क्षेत्र के प्रत्येक पेड़ पर गोलियों के निशान थे, कुछ टूटे हुए थे और जंगल का फर्श गोलियों के खोखों और सूखे खून से अटा पड़ा था।