2023 के कैलेंडर से बिछेगी 2024 की सियासी बिसात, ये नतीजे देंगे बड़े संदेश

The political board of 2024 will be laid from the calendar of 2023, these results will give a big message
The political board of 2024 will be laid from the calendar of 2023, these results will give a big message
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नई दिल्ली: साल 2022 अलविदा हो चुका है और नए साल की दस्तक के साथ हम 2023 में प्रवेश कर गए हैं. भारत के सियासी परिदृश्य के लिहाज से 2023 को चुनावी साल के तौर पर देखा जा रहा है. इस साल दक्षिण भारत से लेकर पूर्वोत्तर और उत्तर भारत के हिंदी पट्टी वाले राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि साल 2023 के चुनावी नतीजे और राजनीतिक गतिविधियों से सिर्फ 2024 की सियासी बिसात ही नहीं बिछेगी बल्कि लोकसभा चुनाव की दशा और दिशा भी तय हो जाएगी?

साल 2023 में 9 राज्यों में चुनाव
साल 2023 के शुरू से लेकर अंत तक 9 राज्यों में चुनाव होने हैं. साल के शुरू में चार राज्यों में चुनाव हैं जबकि साल के आखिर में पांच राज्यों में चुनाव हैं. दक्षिण भारत के कर्नाटक और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होंगे तो पूर्वात्तर के मेघालय, त्रिपुरा, नागालैंड और मिजोरम में चुनाव होने हैं जबकि हिंदी पट्टी के तीन बड़े राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव होने हैं.

कर्नाटक, मध्य प्रदेश और त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार है जबकि नागालैंड, मेघालय और मिजोरम की सत्ता पर क्षेत्रीय दल काबिज है, लेकिन बीजेपी सहयोगी दल के तौर पर है. वहीं, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है तो तेलंगाना में केसीआर की पार्टी बीआरएस काबिज है. इन राज्यों के चुनाव देश की सियासत के लिहाज से बेहद अहम हैं, क्योंकि इसके बाद ठीक लोकसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में ज्यादातर राज्यों में बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है तो क्षेत्रीय दलों भी अग्निपरीक्षा है.

जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव की संभावना
जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन इस साल होंगे कि नहीं यह तस्वीर साफ नहीं है. हालांकि, जम्मू-कश्मीर के सीटों का परिसीमन हो चुका है और चुनाव कराने के लिए केंद्र की मोदी सरकार कह चुकी है कि जल्द ही चुनाव कराएं जाएंगे. जम्मू-कश्मीर के मौसम को देखते हुए अप्रैल-मई में कर्नाटक के साथ विधानसभा चुनाव कराए जाने के आसार हैं. ऐसा होता है तो फिर साल 2023 में कुल 10 राज्यों में चुनाव होंगे.

साल 2023 में 9 राज्यों के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के चुनाव होते हैं तो फिर कुल 10 राज्यों में चुनाव होंगे. इन 10 राज्यों में लोकसभा की 83 सीटें आती हैं, जो कुल 543 संसदीय सीटों की 17 फीसदी सीटें होती हैं. ऐसे में 2023 के चुनावी नतीजों का डायरेक्ट या इनडायरेक्ट असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा. इसीलिए साल 2023 को देश की सियासत के लिए काफी अहम माना जा रहा है.

बीजेपी और कांग्रेस की सीधी लड़ाई
2023 में देश के जिन राज्यों में चुनाव है, उनमें से ज्यादातर और अहम राज्यों में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी मुकाबला होगा. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी चुनावी जंग होगी. इन चार राज्यों में से कांग्रेस और बीजेपी के पास दो-दो राज्य हैं. ऐसे में कांग्रेस अपने दोनों राज्यों की सत्ता को बचाए रखते हुए बीजेपी से कर्नाटक और मध्य प्रदेश की सत्ता हासिल करने की कोशिश में रहेगी. लेकिन राजस्थान का सियासी रिवाज हर 5 साल पर सत्ता परिवर्तन का रहा है. ऐसे में कांग्रेस के लिए काफी जद्दोजहद करनी होगी.

वहीं, बीजेपी को 2018 में इन चारों राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा था, कर्नाटक में वह बहुमत नहीं साबित कर पाई थी. 2019 के बाद मध्य प्रदेश और कर्नाटक में ऑपरेशन लोटस के जरिए कांग्रेस विधायकों के बगावत ने बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिला. ऐसे में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती दक्षिण भारत के अपने इकलौते दुर्ग को बचाए रखने की है, क्योंकि रेड्डी बंधु ने अपनी अलग पार्टी बना ली है और बीएस येदियुरप्पा भी सीएम की कुर्सी बसवराज बोम्मई को सौंप चुके हैं. ऐसे में बीजेपी की कोशिश रहेगी कि अपने इन दोनों किलों को बचाकर कांग्रेस के हाथों से मध्य प्रदेश और राजस्थान को छीनने की होगी.

दक्षिण-पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय दलों का टेस्ट
साल 2023 में कांग्रेस-बीजेपी ही नहीं बल्कि क्षेत्रीय दलों को भी आजमाइश से गुजरना होगा. दक्षिण भारत के कर्नाटक में जेडीएस को भी अपने सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए जद्दोजहद करनी होगी जबकि तेलंगाना में बीआरएस के लिए इस बार बीजेपी से कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. बीजेपी केसीआर के खिलाफ आक्रमक मोर्चा खोल रखा है तो कांग्रेस भी पूरे दमखम के साथ है. इसके अलावा पूर्वोत्तर के त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड और मिजोरम में भी क्षेत्रीय दलों से ही दो-दो हाथ करने होंगे. त्रिपुरा में लेफ्ट को अपनी वापसी के लिए बीजेपी से ही नहीं बल्कि टीएमसी से भी टकराना होगा. ऐसे ही मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में कांग्रेस के अगुवाई वाले क्षेत्रीय दलों के गठबंधन और बीजेपी के गठबंधन से मुकाबला है. ऐसे में अगर क्षेत्रीय दलों ने अपना प्रदर्शन बेहतर किया तो छोटे दलों की अहमियत बढ़ेगी.

विपक्षी एकता की बिछेगी बिसात
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकजुटता की कवायद 2023 में ही होनी है. इतना ही नहीं 2024 में पीएम मोदी के सामने विपक्ष का चेहरा कौन होगा, इसे लेकर भी कोशिशें तेज होंगी. 2023 में होने वाले चुनाव में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती है तो पीएम मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को टक्कर देने वाले एक मजबूत विपक्षी ताकत तौर पर उभर कर सामने आएगी. वहीं, कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर नहीं हुआ और अपने दो राज्यों से किसी को गंवाती है तो उस पर क्षेत्रीय दलों का दबाव बढ़ेगा, क्योंकि केजरीवाल से लेकर ममता बनर्जी, केसीआर, नीतीश कुमार तक अपनी-अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं.

बिहार में सियासी बदलाव के बाद से नीतीश कुमार लगातार विपक्षी एकता का नारा बुलंद किए हुए हैं. इसके अलावा ममता बनर्जी, केसीआर, शरद पवार जैसे नेता अपने-अपने स्तर पर लगातार विपक्षी एकजुटता की कवायद में जुटे हैं. ऐसे ही देश की सियासत में तेजी से आम आदमी पार्टी अपनी जगह बनाती जा रही है. दिल्ली के बाद पंजाब में उसकी सरकार है और गुजरात और गोवा में उसके विधायक हैं. दिल्ली एमसीडी में भी काबिज हो गई है और अपना मेयर बनाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में साल 2023 में विपक्षी दलों की गोलबंदी तेजी से होने की उम्मीद है, क्योंकि लोकसभा चुनाव के लिए महज एक साल से भी कम वक्त बचेगा.