दल बदलने वालों को जनता ने सिखाया सबक, बोली बेवकूफ ना समझे

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लखनऊ। योगी सरकार में पूरे वक्त कैबिनेट मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य बड़े आत्मविश्वास के साथ भाजपा छोड़ कर सपा में शामिल हुए थे और भाजपा को नेस्ताबूत करने का ऐलान किया था। भाजपा तो फिर सत्ता में लौट आई लेकिन खुद को नेवला बताने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य की करारी हार हुई। उनका सीट बदलना भी काम नहीं आया। उनके साथ आए भाजपा छोड़कर साइकिल पर सवार हुए धर्मसिंह सैनी भी शिकस्त खा गए। यह दोनों योगी सरकार मंत्री थे और चुनाव का ऐलान होते ही भाजपाई से सपाई हो गए लेकिन जनता को यह रास नहीं आया। अब यह पूर्व विधायक हो गए हैं।

भाजपा से 14 विधायक पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में गए थे। इसमें से अधिकांश हार गए। प्रसपा से भाजपा में गए हरिओम यादव भी हार गए। विनय शंकर तिवारी इस बार बसपा छोड़कर सपा के टिकट से चिल्लूपार से चुनाव लड़े थे और हार गए। अवतार सिंह भड़ाना ने भी चुनावों से पहले भाजपा को छोड़ सपा-आरएलडी गठबंधन का दामन थाम लिया था और जेवर से चुनाव लड़ा लेकिन भाजपा के हाथों शिकस्त खा गए। बलिया के सुरेंद्र सिंह बैरिया से टिकट न मिलने पर वीआईपी पार्टी से हार गए।

कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हुईं सुप्रिया ऐरन बरेली कैंट से हार गईं। भाजपा से सपा में आई सुभावती शुक्ला गोरखपुर शहर से भी चुनाव हार गईं। पाला बदलने वाले बांदा की तिंदवारी से विधायक सपा प्रत्याशी बृजेश प्रजापति भी हार गए हैं। ढलौना में विधायक असलम अली हार गए। सैदपुर से सपा से भाजपा में आए सुभाष पासी हार गए। कांग्रेस से भाजपा में आए विधायक नरेश सैनी हार गए। सपा से कांग्रेस में आए विधायक हाजी इकराम कुरैशी मुरादाबाद ग्रामीण से हार गए। निर्दलीय से बसपा के टिकट पर अमन मणि चुनाव हार गए।

यहीं नहीं दारा सिंह चौहान भी साइकिल पर सवार हुए लेकिन वह घोसी से जीत गए। वह योगी सरकार में मंत्री थे। ऐन वक्त पर सपाई हो गए और घोसी से जीत हासिल की। कांग्रेस से भाजपा में आईं अदिति सिंह जीत गईं। लालजी वर्मा अंबेडकरनगर की कटेहरी सीट से फिर चुनाव जीत गए। रामअचल राजभर भी जीत गए। बसपा से सपा में आए राकेश पांडेय भी जीत गए। मुकेश वर्मा भी चुनाव जीते हैं। सपा से भाजपा में आए नितिन अग्रवाल भी चुनाव जीत गए।