बेहद डरावनी है पोस्टमार्टम रूम के अंदर की ये कहानी, जानिए इस शख्स की जुबानी

This story inside the post-mortem room is very scary, know this person's words
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अकसर हमने सुना है कि जब भी किसी व्यक्ति की अस्वाभाविक रूप से मौत हो जाती है तो उसकी बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाता है। पोस्टमार्टम में लाश का चीरफाड़ कर मौत की असली वजह का पता लगाया जाता है। हम में से अधिकतर लोगों को यही लगता है कि पोस्टमार्टम डॉक्टर के द्वारा ही किया जाता है जबकि ऐसा नहीं है। आज हम आपको पोस्टमार्टम रूम के अंदर की कुछ ऐसी सच्चाई के बारे में बताने जा रहे हैं जिसके बारे में सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे।

हम आपको उस शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं जो पिछले कई सालों से पोस्टमार्टम रूम में काम कर रहा है। इस व्यक्ति का नाम बाबूभाई सीतापारा वाघेला है जो अहमदाबाद के रहने वाले हैं। बाबूभाई अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं कि उन्होंने ऐसे लाशों को देखा है जिसे यदि कोई सामान्य आदमी देख लें तो वही बेहोश होकर गिर जाएगा। बाबूभाई अपनी एक डायरी बनाई हैं जिसमें उन्होंने अपनी जिंदगी की कुछ खास पोस्टमार्टम का वर्णन किया है। इस डायरी में उन्होंने अपनी साथियों के अनुभव के बारे में भी लिखा है।

बाबूभाई अपने इस प्रोफेशन के पहले केस के बारे में बताते हुए कहते हैं कि “राजकोट के पास पेडक नामक इलाके के सूखे कुंए में एक व्यक्ति की लाश पड़ी हुई थी। लाश लगभग 8 दिन पुरानी थी और इसमें कीड़े लग चुके थे। यह मेरा पहला मामला था। पोस्टमार्टम की तो बात दूर, लाश देखने के बाद मैं कई दिनों तक ठीक से खाना तक नहीं खा सका था।

मैं जैसे ही खाना खाने बैठता, मेरी आंखों के सामने वह तस्वीर आ जाती थी। पुलिस यह लाश एंबुलेंस द्वारा स्ट्रेचर पर रखकर लाई थी, जिसे सीधे ही पोस्टमार्टम रूम में भेज दिया गया था। जब मैंने लाश के ऊपर से चादर हटाया तो देखा कि उसके चारों तरफ इल्लियां रेंग रही थीं। इससे भी ज्यादा मेरे लिए डरावनी बात यह थी कि यह सिर कटी लाश थी।

सच कहूं तो पहली बार पोस्टमार्टम करने में मेरे हाथ-पांव थर-थर कांप रहे थे। मेरी जिंदगी का यह एक ऐसा वाकया है, जिसे मैं कभी भुला नहीं सकता।” इसी तरह एक अन्य वाक्ये का जिक्र करते हुए बाबूभाई कहते हैं कि कुछ साल पहले कच्छ से अहमदाबाद जा रही एक लग्जरी बस की एक मिनी बस से दुर्घटना हो गई थी।

यह एक्सीडेंट इतना भयानक था कि मिनी बस में बैठे सभी 18 यात्रियों की मौके पर ही मौत हो गई थी। सभी शवों को मोरबी से सिविल अस्पताल लाया गया। इतने शवों को पोस्टमार्टम रूम में रखना संभव नहीं था। इसलिए पोस्टमार्टम यार्ड में रखकर ही किया गया था। एक के बाद एक 18 शवों के पोस्टमार्टम के बाद का नजारा इतना भयानक था कि इसे शब्दों में बखान करना संभव ही नहीं।

अपनी बात को आगे जारी रखते हुए कहते हैं कि इसमें सबसे बुरी स्थिति तब आती है जब बच्चों का पोस्टमार्टम करना होता है।मासूम देहों पर छुरी-हथौड़े चलाने की स्थिति हमारे लिए सबसे ज्यादा कष्टदायक होता है।

बता दें कि सामान्यत पोस्टमार्टम रूम में प्रत्येक स्वीपर को आठ घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती हैं। हालांकि कई बार उन्हें कई घंटों भी काम करना पड़ता है। एक रिटायर्ड कर्मचारी के अनुसार, किसी भी स्वीपर के लिए सबसे भयानक स्थिति तब होती है, जब 80 फीसदी जली हुई लाश का पोस्टमार्टम करना होता है। इन वीभत्स शवों का पोस्टमार्टम करने से पहले हम लोग शराब पी लेते हैं।

बाबूभाई बताते हैं कि पानी में फूली हुई लाश पर नाइफ चलाते ही शरीर किसी पटाखे की तरह फूटता है। यदि शव कई दिनों तक पानी में पड़ा रहा हो तो उसकी स्थिति ऐसी हो जाती है कि आप यह भी नहीं पता लगा सकते कि वह लाश किसी महिला की है या पुरुष का।

इसकी पहचान करने के लिए सबसे पहले प्राइवेट अंगों का पोस्टमार्टम करना होता है। आपको बता दें कि बाबूभाई के पिता और दादा भी अपने जमाने में यही काम करते थे। वाकई में पोस्टमार्टम रूम की यह सच्चाई रातों की नींद को उड़ा देने के लिए काफी है।