कैंडिडेट बने बगैर वरुण गांधी ने क्यों खरीदे पर्चे, बीजेपी को 98-99 वाला मैसेज तो नहीं?

Why did Varun Gandhi buy pamphlets without becoming a candidate? Is this the message of 98-99 to BJP?
Why did Varun Gandhi buy pamphlets without becoming a candidate? Is this the message of 98-99 to BJP?
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Lok sabha chunav: भाजपा के लोकसभा कैंडिडेट्स की अगली लिस्ट आने से पहले पीलीभीत सीट काफी चर्चा में है. कहा जा रहा है कि भाजपा वरुण गांधी और उनकी मां मेनका गांधी में से किसी एक को टिकट दे सकती है. ऐसे में वरुण गांधी के टिकट कटने की अटकलें लगाई जा रही हैं. कुछ घंटे पहले सपा से टिकट मिलने की भी चर्चाएं जोर पकड़ने लगी थीं लेकिन 24 घंटे में एक साथ दो बड़े घटनाक्रमों से पीलीभीत सीट पर सस्पेंस गहरा गया है. साथ ही पीलीभीत में लोकसभा चुनाव दिलचस्प भी होता जा रहा है.

1. पीलीभीत से सपा ने अपना कैंडिडेट घोषित कर दिया है. जी हां, पूर्व मंत्री भगवत सरन गंगवार को सपा का टिकट मिला है. इससे वो अटकलें समाप्त हो गई हैं जिसमें कहा जा रहा था कि भाजपा के मौजूदा सांसद वरुण गांधी सपा के खेमे में जा सकते हैं.

2. पहले चरण के चुनाव की नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के साथ ही ठीक 24 घंटे पहले वरुण गांधी के प्रतिनिधि ने नामांकन पर्चा खरीद लिया. ऐसे में साफ है कि वरुण चुनाव लड़ेंगे और सीट पीलीभीत ही होगी. उनके निजी सचिव ने चार सेट में पर्चे खरीदे हैं.

कॉन्फिडेंट हैं वरुण गांधी

जिस तरह की चर्चाएं पहले से हैं. उससे दो ही संभावनाएं बचती हैं. पहला, वरुण गांधी को बीजेपी का टिकट मिलना कन्फर्म हो गया हो, तभी उनके प्रतिनिधि पहले ही दिन नामांकन पत्र लेने पहुंच गए. वैसे आधिकारिक रूप से अभी पीलीभीत से भाजपा ने कैंडिडेट घोषित नहीं किया है. दूसरा, वरुण गांधी अपनी तैयारी रखना चाहते हैं कि अगर भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वह अलग राह पर जा सकें. दरअसल, सपा का कैंडिडेट घोषित होने के बाद साफ है कि अब बीजेपी की अगली लिस्ट में अगर पीलीभीत से वरुण गांधी का नाम नहीं हुआ तो उनके पास निर्दलीय लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा.

भाजपा को मैसेज कैसा?

सियासी हलकों में यह भी चर्चा है कि वरुण गांधी ने पहले ही दिन पर्चा खरीदकर एक तरफ चुनाव को लेकर अपना कॉन्फिडेंस दिखाया है तो दूसरी तरफ भाजपा हाईकमान को मैसेज भी देने की कोशिश की है. जी हां, मेनका गांधी 1998 और 1999 में इसी सीट से निर्दलीय जीती थीं. 2004 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीता था. 2009 और 2019 में वरुण गांधी इस सीट से जीते. पीलीभीत लोकसभा 1989 से ही मेनका और वरुण गांधी की पारंपरिक सीट बन है. जब वह सुल्तानपुर से चुनाव लड़ने गईं तो वरुण यहां से जीतने लगे. हालांकि उनके अलावा एक बार 1991 में पीलीभीत से दूसरे भाजपा कैंडिडेट भी जीते थे.

कई बार अपनी ही सरकार को घेर चुके वरुण गांधी पार्टी के लिए असहज स्थिति पैदा करते रहे हैं लेकिन तब भाजपा ने कोई सख्त कदम नहीं उठाया. अब भाजपा विवादित नेताओं को टिकट न देने की राह पर चल रही है तो सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह वरुण गांधी से भी दूरी बनाएगी? कहा जा रहा है कि भाजपा यूपी सरकार के किसी कैबिनेट मंत्री को पीलीभीत से टिकट दे सकती है. जितिन प्रसाद का नाम कई दिनों से सुर्खियों में है.

बताया गया है कि कई भाजपा नेताओं ने पीलीभीत से वरुण गांधी को टिकट न देने की बात कही है. अगर ऐसा कुछ होता है तो वरुण गांधी पीलीभीत से निर्दलीय लड़ सकते हैं. इसके लिए वह तैयार भी दिख रहे हैं.