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भोपाल: 2023 मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले हुए निकाय चुनाव में जीत ने भारतीय जनता पार्टी के हौसले बुलंद कर दिए हैं। वहीं, राज्य में 2020 के सियासी झटके के बाद कांग्रेस के लिए भी चुनाव पूरी तरह खराब नहीं रहे हैं। कहा जाने लगा है कि अगर इसका असर आगामी विधानसभा चुनाव पर होता है, तो कांग्रेस के लिए उम्मीदें बढ़ सकती हैं। विस्तार से समझते हैं।
पहले आंकड़ों में जानें
बीते साल जुलाई में एमपी निकाय चुनाव के नतीजे जारी हुए थे। आंकड़े बताते हैं कि 16 निगमों में से 11, 76 नगरपालिकाओं में से 50 और 215 परिषदों में से 150 पर भाजपा दोबारा नियंत्रण हासिल करने के लिए तैयार थी। जबकि, कांग्रेस के खाते में 5 निगम आए थे। दरअसल, कांग्रेस के लिए यह जीत इसलिए भी अहम हो जाती है, क्योंकि 2014 के चुनाव में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था। बीते चुनाव को पार्टी के प्रदेश प्रमुख और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने साल 1999 के बाद सबसे अच्छा प्रदर्शन करार दिया था।
भाजपा को जीत के बाद भी झटका कैसे?
16 मेयर्स के साथ मैदान में उतरी भाजपा ने करीब आधे गंवा दिए थे। इतना ही नहीं पार्टी ग्वालियर, जबलपुर और रीवा जैसे क्षेत्रों में भी हारी। भाजपा मुरैना, जबलपुर, ग्वालियर, कटनी, रीवा, सिंगरौली और छिंदवाड़ा में मेयर की सीटें हार गई थी। जबकि, देवास, रतलाम, इंदौर, उज्जैन, खंडवा, बुरहानपुर, भोपाल, सतना और सागर में जीत हासिल की थी। इनमें चंबल क्षेत्र और ग्वालियर की हार को बड़ा माना गया, क्योंकि ये केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, सांसद नरोत्तम मिश्रा और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ हैं। इधर, पार्टी ने उज्जैन में 542 और बुरहानपुर में केवल 736 मतों से ही जीत हासिल की। कटनी में भाजपा अपनी ही बागी नेता प्रीति सूरी के हाथों हारी।
क्या रही थी हार की वजह?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने ग्वालियर की हार को चिंता करने वाला बताया था। इसके अलावा उम्मीदवारों के चयन को भी जिम्मेदार माना गया। कहा जा रहा था कि सिंधिया और तोमर के बीच मतभेदों के चलते उम्मीदवार के ऐलान में भी देरी हुई।
अलग-अलग राग
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कांग्रेस की जीत को ‘अधूरी जीत’ करार दिया था। उन्होंने कहा था, ‘मेयर उनके हो सकते हैं, लेकिन अधिकांश पार्षद हमारे साथ हैं।’ इधर, कांग्रेस ने पार्षदों की संख्या की तुलना 2015 चुनाव से की थी। कांग्रेस के मीडिया प्रभारी रहे केके मिश्रा ने कहा था, ‘2015 की तुलना में इस बार संख्या डेढ़ गुना ज्यादा है। भाजपा ने प्रशासन और कलेक्टरों का इस्तेमाल किया है। बुरहानपुर और उज्जैन के 1 हजार से कम अंतर को देखते हुए, हमारे पास यह मानने की वजह है कि हमने 7 मेयर सीटें जीती हैं।’