अखिलेश बोले शिवपाल के सामने सरेंडर? डिंपल के चुनाव में चाचा को मानते थे सपा नेता, बैठक में प्रसपा अध्यक्ष कहकर बुलाते थे विधायक

Akhilesh said surrender in front of Shivpal? SP leader used to consider uncle in Dimple's election, MLA used to call him as Praspa president in the meeting
Akhilesh said surrender in front of Shivpal? SP leader used to consider uncle in Dimple's election, MLA used to call him as Praspa president in the meeting
इस खबर को शेयर करें

मैनपुरी। मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने मंगलवार को स्टार प्रचारकों की लिस्ट जारी कर दी। इसमें अखिलेश यादव ने चाचा शिवपाल यादव को भी शामिल किया है। शिवपाल को रामपुर और आजमगढ़ उपचुनावों के दौरान प्रचार से दूर रखा गया था। यहां तक कि सपा की बैठकों में भी शिवपाल को नहीं बुलाया जाता था। डिंपल के नामांकन में भी शिवपाल नजर नहीं आए थे। अब दोबारा शिवपाल को प्रचारक बनाने के पीछे अखिलेश की रणनीति कम चाचा के आगे सरेंडर करने की ज्यादा चर्चा है। इस चर्चा के पीछे कारण भी कई हैं।

अखिलेश यादव खुलेआम शिवपाल को प्रमासपा का नेता बताते रहे हैं। विधानसभा चुनाव के बाद सपा की हार की समीक्षा के लिए हुई मीटिंग में भी शिवपाल को नहीं बुलाया गया था। तब अखिलेश ने कहा था कि यह सपा विधायकों की मीटिंग थी। शिवपाल प्रमासपा के नेता हैं। गठबंधन की बैठक होगी तो उन्हें बुलाया जाएगा। जबकि शिवपाल सपा के टिकट पर ही विधायक चुने गए हैं।

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर हुई गठबंधन की बैठक में भी शिवपाल को नजरअंदाज किया गया। इससे नाराज होकर शिवपाल योगी के बुलावे पर एनडीए के आयोजन में भी पहुंच गए थे। अब जबकि डिंपल के चुनाव की बारी आई तो अखिलेश ने शिवपाल को सपा का नेता बताते हुए स्टार प्रचारकों में शामिल कर लिया है।

मैनपुरी का चुनाव सपा के लिए उतना आसान नहीं माना जा रहा है। शिवपाल को स्टार प्रचारक बनाने से ठीक पहले भाजपा ने सपा से ही दो बार सांसद और एक बार विधायक रहे रघुराज शाक्य को अपना प्रत्याशी बनाकर अखिलेश की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। रघुराज शाक्य न केवल शिवपाल यादव बल्कि मुलायम सिंह यादव के करीबी माने जाते रहे हैं।

मुलायम ही रघुराज को 1999 में सरकारी नौकरी से इस्तीफा दिलाकर राजनीति में लाए थे। इटावा के रहने वाले रघुराज 1999 और 2004 में सपा से दो बार सांसद और 2012 में सपा से इटावा सदर से विधायक रहे। उनकी शाक्य मतदाताओं में काफी लोकप्रियता है। भाजपा ने इसी का फायदा उठाते हुए अखिलेश को घेरा है। मैनपुरी उपचुनाव का ऊंट किस करवट बैठेगा इसका फैसला आठ दिसंबर को होगा, पर मुलायम की विरासत वाली सीट पर उनकी पुत्रवधु डिंपल यादव के सामने भगवा खेमे ने शाक्य प्रत्याशी पर दांव खेलकर चुनाव को रोचक बना दिया है।

रघुराज शाक्य कितनी बड़ी चुनौती

2012 में रघुराज शाक्य विधायक बने थे। 2017 के चुनाव में सपा ने रघुराज शाक्य को टिकट नहीं दिया तो वह नाराज हुए लेकिन सपा में ही रहे। 2022 का विधानसभा का टिकट सदर से उनको मिलने की पूरी संभावना थी, पर ऐन वक्त पर पूर्व सांसद राम सिंह शाक्य के बेटे सर्वेश शाक्य को टिकट दे दिया गया। इससे नाराज होकर उन्होंने भगवा चोला ओढ़ लिया। सपा छोड़ने के बाद भाजपा में शामिल होने पर विधानसभा चुनाव में खूब मेहनत की और इटावा सदर विधानसभा की सीट भाजपा प्रत्याशी सरिता भदौरिया ने जीती। इससे भी पार्टी में रघुराज का कद बढ़ गया।