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पटना: बिहार में भाजपा को लगा झटका लेकिन जनाधार और मजबूत करने का दिख रहा है उसे अवसर नयी दिल्ली, नौ अगस्त (भाषा) बिहार की सत्ता गंवाने से भले ही 2024 लोकसभा चुनाव के दृष्टिकोण से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समीकरण बिगड़ता दिख रहा हो, लेकिन पार्टी के नेताओं के एक वर्ग का मानना है कि यह उसके लिए इस राज्य में क्षेत्रीय दलों के प्रभुत्व को समाप्त करने का एक अवसर है, जैसा कि उत्तर प्रदेश में उसने कर दिखाया है। जनता दल (यूनाईटेड) के नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा से नाता तोड़कर राष्ट्रीय जनता दल के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हो गए। नौ वर्ष में यह दूसरा मौक़ा है जब उन्होंने भाजपा का हाथ झटका है।
हाल के कुछ महीनों में भाजपा और जद(यू) के बीच संबंधों में कई मुद्दों को लेकर कड़वाहट आ गई थी और इसके बाद कुमार ने यह कदम उठाया। बिहार भाजपा के नेताओं का एक वर्ग जद (यू) के साथ गठबंधन जारी रखने के पक्ष में नहीं था लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का मानना रहा है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में उसकी (जदयू) मौजूदगी से उसकी 2024 की राह आसान हो जाएगी क्योंकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 40 में से 39 सीटों पर राजग ने कब्जा जमाया था। जद(यू) के एक विधायक ने कहा कि कुमार ने पार्टी सांसदों और विधायकों की बैठक में कहा कि उनके पास सोमवार को दिल्ली से एक फोन आया था लेकिन कुमार ने उनसे कहा था कि गठबंधन के बारे में कोई फैसला पार्टी नेताओं की बैठक में लिया जाएगा। कुमार ने उस नेता का नाम नहीं लिया लेकिन माना जा रहा है कि वह भाजपा के कोई केंद्रीय नेता थे।
बहारहाल, अगले चुनावों में राज्य में भाजपा का मुकाबला महागठबंधन से होना तय है। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में जद(यू) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के महागठबंधन ने भाजपा को पूरी तरह धूल चटा दी थी। ‘‘सेंटर फॉर स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसायटीज” के प्रोफेसर संजय कुमार ने भाजपा से जद(यू) के अलग होने पर कहा, ‘‘यह स्पष्ट संकेत है कि सहयोगी दल भाजपा के साथ सहज नहीं हैं और एक-एक कर उससे अलग होते जा रहे हैं।” उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन साथ ही इससे भाजपा को एक अवसर भी मिलता है कि जिस राज्य की क्षेत्रीय पार्टी ने उसका साथ छोड़ा है, वहां वह अपनी स्थिति मजबूत कर सके।” उन्होंने कहा, ‘‘इस घटनाक्रम से भाजपा को राज्य में अपने विस्तार का मौका मिल जाएगा। लेकिन मैं यह नहीं बता सकता कि 2024 में वह कितने सफल होंगे।” भाजपा के कई नेताओं ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पिछड़े और दलित मतदाताओं के बीच पिछले कुछ सालों में कई राज्यों में खासी पकड़ बनाई है और वह अकेले दम पर अपने प्रदर्शन का दोहरा सकती है।
उन्होंने कहा कि अति पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं में जद(यू) का जनाधार माना जाता है लेकिन 2019 के लोकसभा और 2020 के विधानसभा चुनावों में दलितों के साथ ही उन्होंने भी बड़ी संख्या में भाजपा को वोट दिया था। पार्टी के एक नेता ने कहा, ‘‘भाजपा राष्ट्रीय स्तर पर आज सबसे अधिक मजबूत है और यह सही अवसर है कि वह बिहार में क्षेत्रीय दलों के प्रभुत्व को समाप्त करे। ठीक उसी तरह जैसे उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के प्रभुत्व को समाप्त किया गया।” राज्य विधानसभा में इस समय विधायकों की संख्या 242 है जबकि बहुमत के लिए 122 विधायकों की आवश्यकता है।
राजद के पास सबसे अधिक 79 विधायक हैं, उसके बाद भाजपा के पास 77 और जद(यू) के पास 44 विधायक हैं। जद(यू) को पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के चार विधायकों और एक निर्दलीय का भी समर्थन प्राप्त है। कांग्रेस के पास 19 विधायक हैं जबकि भाकपा (माले) के 12 और भाकपा तथा माकपा के पास दो-दो विधायक हैं। इसके अलावा एक विधायक असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) का है।