चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश में माहौल बदल गया है। बीजेपी के अंदर असहमति बढ़ने के बावजूद यहां अब त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बन रहे हैं। इस इलाके में राजनीतिक पार्टियां हर मुमकिन दांव आजमा रही हैं और इस बार के चुनावी नतीजे इस क्षेत्र में राजनीतिक विमर्श बदल सकते हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश की 8 लोकसभा सीटों पर पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को होगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के चुनावों में जाति, धर्म और गठबंधन का बारीक खेल देखने को मिल रहा है। बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए गठबंधन, समाजवादी पार्टी की अगुवाई इंडिया गठबंधन और बहुजन समाज पार्टी-तीनों इकाइयां यहां जोरदार तरीके से चुनाव लड़ रही हैं। राजनीतिक विश्लेषक मनोज भद्रा ने बताया, ‘2014 के चुनावों से ऐसा देखने को मिल रहा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जो ट्रेंड रहता है, वह राज्य के अन्य हिस्सों में भी वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करता है।’
राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर सुरेंद्र चौधरी का कहना है कि बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 80 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य तय किया है, जिससे चुनावी गतिविधियां काफी दिलचस्प हो गई है। उन्होंने मनीकंट्रोल से बातचीत में कहा, ‘ऐसे में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भी आधार बचाने के लिए एंड़ी-चोटी का जोर लगाय दिया है, जिससे मुकाबला कड़ा हो गया है।’
चुनावी सरगर्मी तेज होने के साथ ही, अहम सीटों को लेकर चर्चा तेज हो गई है। केंद्रीय मंत्री संजीव बाल्यान को मुजफ्फरनगर में अपने तीसरे कार्यकाल के लिए कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है। इसी तरह, सहारनपुर में पूर्व सांसद राघव लखनपाल, कांग्रेस के इमरान मसूद और बीएसपी के माजिद अली के बीच कांटे का मुकाबला है। बिजनौर में राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इस सीट से चौधरी के उम्मीदवार चंदन चौहान कड़े मुकाबले में फंसे हैं। कैराना में बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार के बीच कड़ा मुकाबला है।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के बीच गठबंधन की इस बार परीक्षा होनी है। लोकसभा चुनाव शुरू होने से कुछ दिन पहले बीजेपी को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से चिंताजनक संकेत मिल रहे हैं। यह ऐसा क्षेत्र है, जहां बीजेपी को लंबे समय से एकमुश्त हिंदू वोट मिलता रहा है। इस इलाके में माहौल तेजी से बदल रहा है और कई जातियां खुलेआम बीजेपी का बहिष्कार करने का आह्वान कर रही हैं। खबरों की मानें तो राजपूत, त्यागी, सैनी और अन्य जातियां पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रही हैं और इसको लेकर उन्होंने खुलकर असंतोष भी जाहिर किया है।
राजपूत समुदाय के लोगों ने 7 अप्रैल को सहारनपुर में महापंचायत बुलाई, जिससे बीजेपी में असहमति के सुर उभरने लगे हैं। गाजियबाद से जनरल (रिटायर्ड) वी. के. सिंह के बदले अतुल कुमार गर्ग को टिकट किए जाने से भी राजपूत समुदाय में गुस्सा है। बीजेपी संगठन में अहम जिम्मेदारी संभाल रहे मनीष दीक्षित ने भी इन चुनौतियों की बात स्वीकार की है। उन्होंने कहा, ‘ लोगों का एक तबका हमसे नाराज है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि बीजेपी रक्षात्मक मुद्रा में है।’
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जहां अपनी पारंपरिक सीटों को बचाने के लिए प्रतिबद्ध नजर आ रही हैं, वहीं समाजवादी पार्टी के भीतर भी आंतरिक चुनौतियां मौजूद हैं। खास तौर पर रामपुर और मुदाराबाद में ऐसा देखने को मिल रहा है। बहुजन समाज पार्टी का प्रभाव दलित समुदाय के बीच है और यह अपने विरोधियों के लिए बड़ी चुनौती पेश कर रही है।