कृषि कानून वापसी के पीछे चुनाव की मुश्किल डगर? बीजेपी को यूपी से मिल रहे थे ऐसे संकेत

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लखनऊ। बीते दिनों भारतीय जनता पार्टी के दो बड़े फैसलों ने यह साफ कर दिया है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पिछली जीत को दोहराना इस बार पार्टी के लिए उतना आसान नहीं है। पार्टी का नारा ‘एक बार फिर 300 पार’ है और बीजेपी उम्मीद कर रही है कि वह साल 2017 की तरह ही कम-से-कम 403 में से 300 सीटों पर जीत दर्ज करे। इन दो बड़े निर्णयों में पहला ब्रज-पश्चिम क्षेत्र की चुनावी जिम्मेदारी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को सौंपना है और दूसरा शुक्रवार को तीन कृषि कानून वापस लेने का ऐलान।

बीजेपी के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह को साल 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव के साथ ही साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में मिली जीत की पठकथा लिखने वाला माना जाता है। बीजेपी ने ब्रज-पश्चिम जोन को छह डिविजनों में बांटा है और हर डिविजन में तीन जिले हैं। पार्टी ने साल 2017 के चुनावों में 135 में से 115 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी और 2019 लोकसभा चुनाव में 27 में से 24 सीटों पर। पूरे प्रदेश में बीजेपी ने 2017 में 403 में से 312 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की थी तो वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में अपने सहयोगी दलों के साथ 80 लोकसभा सीटों में से 62 पर जीती थी।

हालांकि, 2022 विधानसभा चुनाव से कुछ पहले ही बीजेपी के तारे उन इलाकों में कमजोर पड़ते दिखे, जहां किसान आंदोलन का असर है। बीजेपी नेताओं को इन इलाकों में लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ा, कुछ को तो कई गांव में घुसने तक से रोका गया।

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हालांकि, पार्टी कानपुर, गोरखपुर, अवध और काशी जैसे क्षेत्रों में मजबूत दिख रही है, जहां कुछ दिनों में ही पार्टी चीफ जेपी नड्डा और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बूथ अध्यक्ष कॉनक्लेव करने जा रहे हैं। यह स्पष्ट था कि बीजेपी राज्य के पश्चिमी हिस्से में कहीं और नुकसान की भरपाई नहीं कर सकती थी।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा, ‘अगर हम पश्चिम में हारते हैं तो हम उत्तर प्रदेश में हारते हैं। यूपी और दिल्ली के बीच रास्ता सिर्फ पश्चिम से होकर जाता है।’ पार्टी के कई नेताओं ने वरिष्ठ जाट नेता और मेघालय गवर्नर सत्यपाल मलिक के बयानों पर भी ध्यान दिलाया, जो लगातार खुलकर कृषि कानूनों के खिलाफ बोल रहे हैं।

बीजेपी के एक नेता ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया, ‘इलाके के एक वरिष्ठ जाट नेता के तौर पर, मलिक को अपने समुदाय की भावनाओं के बारे में पता है। वरना वह कभी भी संवैधानिक पद पर रहते हुए अनुशासन का उल्लंघन नहीं करते।’ किसान आंदोलन ने ही क्षेत्र में विपक्षी पार्टियों के अंदर एक बार फिर से जान फूंक दी। खासतौर पर राष्ट्रीय लोक दल, जिसके अध्यक्ष जयंत चौधरी हैं और जो 2019 लोकसभा चुनाव में हारे थे।

ये सब बीजेपी की चिंता बढ़ाने का काम कर रहा था, जिसने साल 2014 का चुनावी कैंपेन ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश से शुरू किया था। राज्य के 21 पश्चिमी जिलों में कृषि लोगों की आजीविका का साधन है। इस क्षेत्र के प्रमुख राजनेता कृषक समुदाय से आए और राम जन्मभूमि आंदोलन के शुरू होने तक कृषि मुद्दे ही चुनावी राजनीति पर हावी रहे।

अब कृषि कानूनों को वापस लेने से विपक्षी पार्टियों के पास से 2022 चुनाव का एक बड़ा मुद्दा छिन गया है। हालांकि, अभी भी अमित शाह के लिए उन किसानों को मनाना एक बड़ा टास्क है जिन्होंने साल भर से आंदोलन किया।