Delhi Airport Fog News: प्लेन लेट हुआ तो एक यात्री पायलट को मुक्का मारने दौड़ पड़ा… अगले दिन मुंबई एयरपोर्ट पर गुस्से में लोग जमीन पर बैठकर खाने लगे. सोशल मीडिया पर हवाई सफर में देरी और परेशानी की काफी चर्चा हो रही है. क्या इन सबका जिम्मेदार कोहरा है? इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट (IGIA) भारत में फिलहाल सबसे बड़ा एविएशन हब है. दिल्ली में सर्दी के मौसम में जब कोहरा घना छाता है, देशभर के एयरपोर्टों पर असर या कहें कि उथल-पुथल देखी जाती है. इस समय देरी, डायवर्जन और कम दृश्यता से कई शहर जूझ रहे हैं. हालांकि मौजूदा सीजन में परेशान हो रहे यात्रियों के गुस्से की एकमात्र वजह मौसम नहीं है. मौसम तो वही कर रहा है जो वह हर साल करता है.
करें तो क्या करें
गहराई से समझें तो इसके लिए जिम्मेदार कोई और भी हैं. जी हां, किसी भी चुनौती या परेशानी से निपटने के लिए सक्रिय तैयारी की जाती है. अगर पता है कि दिसंबर-जनवरी में ऐसा हर साल होगा तब तो सतर्कता अनिवार्य हो जाती है लेकिन ऐसा होता दिखता नहीं है. जब वह पायलट कई घंटे से बैठे यात्रियों को उड़ान में देरी की घोषणा कर रहा था तो एक यात्री आपा खो बैठा. वह गलत था लेकिन उसी प्लेन में बैठी रूसी ऐक्ट्रेस ने वीडियो जारी कर पायलट की गलती सबके सामने बताई. उन्होंने कहा कि वह उलटे यात्रियों को ही देरी के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे. एक दिन पहले एविएशन एक्सपर्ट माइकल जैन ने सुझाव दिया कि कोहरे के लिए एयरलाइंस दोषी नहीं है लेकिन वह सही जानकारी देकर लोगों की परेशानी कम जरूर कर सकती है.
हां. यह सब एयरलाइंस, हवाई अड्डे के ऑपरेटरों और विमानन अधिकारियों की मौसमी तैयारी न करने के कारण हो रहा है. इस हफ्ते मंत्रालय ने कुछ उपायों की बात कही है जिसका स्वागत किया जाना चाहिए लेकिन यह तब हो रहा है जब कोहरे का ज्यादातर मौसम बीत चुका है. ऐसे में तीन प्रमुख बिंदुओं पर बात करना जरूरी है.
1. तकनीक: यात्री इस बात को समझते होंगे कि बिल्कुल दिखाई न देने यानी जीरो विजिबिलिटी पर प्लेन उड़ नहीं सकते हैं. लेकिन CAT III तकनीक की बदौलत कुछ दृश्यता के साथ ट्रैफिक सामान्य बनाया जा सकता है. इंदिरा गांधी एयरपोर्ट के पास एक दशक से भी अधिक समय से दो सीएटी III से लैस रनवे हैं. TOI की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस सर्दी के मौसम में एक ही चालू था, दूसरे पर मरम्मत चल रही है जो घने कोहरे की स्थिति में काफी महत्वपूर्ण होता है.
हालत यह है कि ऑपरेशनल एक रनवे भी 24 घंटे पहले तक चालू नहीं था क्योंकि पास के एक्सप्रेसवे प्रोजेक्ट के चलते सिग्नल की दिक्कत के कारण इसे सीएटी I में डाउनग्रेड कर दिया गया था. इस तरह से देखें तो कुछ दिन एयरपोर्ट के पास केवल 25% कैट III क्षमता रही.
2. पायलट: कोहरा होता है तो मीडिया में रोज खबरें आती हैं लेकिन पायलट संकट कम लोगों को पता होता है. जी हां, कुछ दिन पहले के घटनाक्रम पर नजर डालें तो जमीनी हालात पता चलेगी. 24-25 और 27-28 दिसंबर के दौरान IGIA की 58 से से 50 उड़ानों को कथित तौर पर सिर्फ इसलिए डायवर्ट किया गया क्योंकि उनके पायलट कम दृश्यता में उड़ान भरने के लिए प्रशिक्षित नहीं थे. डीजीसीए अपनी तरफ से एयर इंडिया और स्पाइसजेट को नोटिस भेज चुका है. चिंता की बात यह है कि एक दशक तक सीखने-समझने के बावजूद तमाम हितधारक कैट III की दक्षता को लेकर ढिलाई बरत रहे हैं.
यह सब तब है जब घरेलू यात्री ट्रैफिक बढ़ रहा है, दिसंबर में सबसे ज्यादा मासिक आंकड़ा देखा गया. ऐसे में उत्तर भारत के कई शहरों में यह तकनीक पहुंचाने की जरूरत स्पष्ट समझ में आती है.
3. यात्री: ट्रेनों में अब ऐसा हो गया है कि आपके बोर्डिंग स्टेशन पर पहुंचने वाली ट्रेन पीछे से लेट है तो आपके पास मैसेज आता है. यात्री उसी हिसाब से प्लेटफॉर्म पर आते हैं. इससे उनकी परेशानी थोड़ी कम हो जाती है. ऐसे में सवाल यह है कि टिकट बुकिंग एप के साथ फ्लाइट अपडेटिंग सिस्टम क्यों नहीं है? सोमवार को डीजीसीए ने यात्रियों को रियल टाइम जानकारी देने के संबंध में एयरलाइंस को एसओपी जारी की. वास्तव में जो होना चाहिए वह कोई रहस्य या रॉकेट साइंस नहीं है. देखने से यही लगता है कि यात्रियों की सुविधा को लेकर असंवेदनशील रवैया अपनाया जा रहा है. अगले मौसम में इस तरह की परेशानी न हो, इसके लिए सबसे पहले माइंडसेट को बदलने की जरूरत है.