नई दिल्ली। पति-पत्नी के विवाद से जुड़े एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को बेहद अहम फैसला सुनाया। अपनी पत्नी पर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का आरोप लगाकर हाईकोर्ट पहुचे पति को ही फटकार का सामना करना पड़ा। दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना कि एक पिता द्वारा अपने बच्चों की वैधता/पितृत्व को स्वीकार करने से इनकार करना और पत्नी के खिलाफ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के निराधार आरोप लगाना मानसिक क्रूरता का कार्य है।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इस तरह के आरोप चरित्र, सम्मान और प्रतिष्ठा पर गंभीर हमला हैं। कोर्ट ने कहा, “इस तरह के अप्रमाणित दावे मानसिक पीड़ा, यातना का कारण बनते हैं। ये कारण वैवाहिक कानून में क्रूरता के बराबर होने के लिए अपने आप में पर्याप्त हैं।” इसी के साथ दिल्ली हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत का फैसला बरकरार रखा और पति की अपील को भी खारिज कर दिया। इससे पहले पारिवारिक अदालत ने पति की तलाक की याचिका को खारिज कर दिया था।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, मामला दिल्ली के एक व्यक्ति का है। वह सितंबर 2004 में अपनी पत्नी (प्रतिवादी) से मिला था और अगले साल शादी कर ली। पति ने आरोप लगाया कि जब वह नशे में था तब महिला ने उसके साथ यौन संबंध बनाए और उसके बाद उस पर शादी करने का दबाव डाला और ये भी कहा कि वह गर्भवती है। अपीलकर्ता-पति ने आगे आरोप लगाया कि पत्नी ने आत्महत्या करने की धमकी दी और उसके कई और पुरुषों के साथ अवैध संबंध थे। मामले पर विचार करने के बाद कोर्ट ने पति के आरोपों को खारिज कर दिया।
मामले पर फैसला देते हुए हाईकोर्ट की पीठ ने कहा, “विद्वान पारिवारिक (अदालत के) न्यायाधीश ने ठीक ही कहा है कि विवाहेतर किसी व्यक्ति के साथ अपवित्रता और अशोभनीय आचरण के घृणित आरोप और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप, पति-पत्नी के चरित्र, सम्मान, प्रतिष्ठा के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर हमला है। इस तरह के पति-पत्नी पर लगाए गए विश्वासघात के निराधार आरोप और यहां तक कि बच्चों को भी नहीं बख्शना, अपमान और क्रूरता का सबसे खराब रूप होगा। यह अपीलकर्ता को तलाक मांगने से वंचित करने के लिए पर्याप्त है। यह एक ऐसा मामला है जहां अपीलकर्ता ने स्वयं गलती की है और इसलिए उसे तलाक का लाभ नहीं दिया जा सकता है।”
कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता, अपनी नौकरी छोड़ने के बाद, परिवार की जिम्मेदारी उठाने में विफल रहा और पत्नी को न केवल वित्तीय बोझ उठाना पड़ा, बल्कि बच्चों की देखभाल और घरेलू जिम्मेदारियों के लिए भी संघर्ष करना पड़ा। कोर्ट ने फैसला सुनाया कि पति अपनी पत्नी पर लगाए गए किसी भी आरोप को साबित नहीं कर पाया। कोर्ट ने कहा, “उन्होंने (पति ने) आत्महत्या करने की धमकियों और आपराधिक मामलों में फंसाने के संबंध में अस्पष्ट और सामान्य आरोप लगाए हैं। जैसा कि हम पहले ही कह चुके हैं, यह पत्नी है जो क्रूरता का शिकार हुई है, न कि पति।” इसलिए कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।