नई दिल्ली. बिहार का एक युवक पटना हाईकोर्ट के समक्ष एक फरियाद लेकर पहुंचा. उसने जज साहब से मांग की कि उसकी पत्नी को उसे लौटा दिया जाए. वो और उसकी पत्नी एक साथ रहना चाहते हैं. हाईकोर्ट ने नाबालिग पत्नी की कस्टडी उसे सौंपने से इनकार कर दिया और कहा कि जब तक वो बालिग नहीं हो जाती गर्ल केयर सेंटर में ही रहेगी. युवक को पत्नी की कस्टडी तो नहीं मिली लेकिन न्यायमूर्ति पीबी बजंथरी और न्यायमूर्ति रमेश चंद मालवीय की बेंच ने उसे एक बड़ी जिम्मेदारी जरूर सौंप दी. कोर्ट ने युवक को यह निर्देश दिया कि वो नवजात बच्चे के नाम पर एक बैंक खाता खोले और उसमें नियमित रूप से “काफी रकम” जमा करे.
कोर्ट ने कहा, ‘वर्तमान मामले में नाबालिग ने विशेष रूप से अपने पिता के साथ जाने से इनकार कर दिया है, इसलिए राजकीय बालिका देखभाल गृह में उसका रहना, उसकी भलाई और उसके बच्चे के लिए हानिकारक नहीं कहा जा सकता है. उसे तब तक रिहा करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता, जब तक कि वह स्वस्थ न हो जाए. पति को उसकी कस्टडी वयस्क होने के बाद दी जाए.”
सरकार ने खोल दी पति की पोल!
अदालत 23 वर्षीय पति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें राजकीय बालिका देखभाल गृह से पत्नी की रिहाई के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी. उसने दावा किया कि वह बालिग है और उसने अपनी मर्जी से उससे शादी की है. कोर्ट को यह भी बताया गया कि लड़की के पिता ने याचिकाकर्ता पति के खिलाफ मामला दर्ज कराया था, जिसमें उसे जमानत मिल गई है. दलीलों का खंडन करते हुए, राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि लड़की नाबालिग पाई गई और यह बाल विवाह का मामला है, जो कानून के तहत निषिद्ध है.
पिता के साथ नहीं रहना चाहती लड़की
पिछले महीने जब नाबालिग को कोर्ट में पेश किया गया तो उसने स्वीकार किया कि उसने अपनी मर्जी से शादी की है और खुद के बालिग होने का दावा किया है. उसने यह भी कहा कि वह अपने पति के साथ रहना चाहती है और अपने पिता के साथ जाने से इनकार कर दिया.