दो बच्चों की दर्दनाक मौत से दहल उठा मुजफ्फरनगर, भीग गई हर आंख

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मुजफ्फरनगर। मौत के मातम के बीच जिंदगी की दो उम्मीदें टूट गईं। लाचार मां-बाप को क्या पता था कि जिगर के जिन टुकड़ों को इंजीनियर और डॉक्टर बनाने का सपना देखा, उन्हीं को अपनी आंखों के सामने दफन होते देखेंगे। कितनी खुशी के साथ दोनों सुबह यूनिफार्म में तैयार होकर स्कूल के लिए निकले थे। मगर, किसे पता था कि शाम को दोनों के जनाजे घर लौटेंगे। शाम 4 बजे दोनों बच्चों के जनाजे गांव पहुंचे, तो परिवार सहित आसपास के लोग भी सिहर उठे। मां शबनम और पिता मो. नौशाद बेसुध हो गए।

चरथावल थाना क्षेत्र के गांव दधेड़ू निवासी मो. नौशाद सऊदी अरब में नौकरी करते थे। मगर, दो बच्चों की बेहतर परवरिश की चिंता ने उन्हें देश लौटने को मजबूर कर दिया। नौशाद और शबनम अपने बेटे समीर को इंजीनियर और बेटी महा को डॉक्टर बनाना चाहते थे। लिहाजा शहर के नामी स्कूल में दोनों को दाखिला दिलाया था। करीब 20 किमी दूर गांव से बच्चों को लेने के लिए स्कूल से बस आती थी।

दोनों बच्चों के जनाजे घर पहुंचने से पहले मां शबनम को उसके दोनों बच्चों की मौत की जानकारी नहीं दी गई। देते भी कैसे, किसी की हिम्मत ही नहीं हो रही थी। शबनम को सिर्फ एक्सीडेंट के बारे में बताया गया था। मगर, न जाने क्यों मां को बच्चों पर गुजर रही मुश्किल का अहसास सा था। ये ऐसे हालात थे कि शबनम के सामने मौत का डरावना चेहरा था और होंठो पर जिगर के टुकड़ों के लिए मौत के मुंह से सलामत लौट आने की दुआ। दिल में घर के चिराग के बुझ जाने का तो डर था, लेकिन उम्मीद की किरण फिर भी आंखों में थी कि दोनों लौटेंगे। मगर, अचानक दोनों शव लिए एंबुलेंस घर के दरवाजे पर रुकी, तो मां का दिल बैठ गया।

दूसरी शिफ्ट में स्कूल जाती थी महा, मौत ले गई सलीम के साथ

बेटी महा कक्षा-4 में पढ़ती थी। वह दूसरी शिफ्ट में स्कूल जाती थी। उसका समय भाई समीर से अलग था। मगर, गुरुवार को शायद महा की मौत भी सलीम के साथ ही लिखी थी। इसलिए कुछ ऐसा हुआ कि वह भी बड़े भाई सलीम के साथ ही स्कूल बस में सवार हो गई।

गांव के तीन स्कूली बच्चों ने कर ली थी छुट्‌टी

हादसे में गांव दधेड़ु के दो बच्चों की मौत से आसपास भी मातम पसरा है। गांव से जीडी गोयनका में 5 बच्चे स्कूल पढ़ने के लिए जाते थे। दो भाई-बहन के अलावा इन्हीं के रिश्तेदार तीन बच्चे और थे, जो उसी स्कूल में पढ़ते थे। मगर, सुबह के समय कोहरा और ठंड के कारण उन बच्चों के घरवालों ने उन्हें स्कूल नहीं भेजा।