उत्तराखंड में सीएम का चेहरा घोषित करने से क्यों बच रही हैं कांग्रेस और बीजेपी?

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नई दिल्ली। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच शह-मात का खेल जारी है, पर दोनों ही पार्टियां सीएम चेहरे पर अपने-अपने पत्ते नहीं खोल रही हैं. सूबे में दो सीएम बदलने के बाद पुष्कर सिंह धामी को सत्ता की कमान सौंपने के बाद बीजेपी अपने इस युवा चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है. वहीं, सत्ता में वापसी को बेताब कांग्रेस भी सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस और बीजेपी सीएम फेस के साथ क्यों चुनावी मैदान में उतरने बच रही हैं?

कांग्रेस के उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव ने सोमवार को एक बार फिर दोहराया कि 2022 का विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाएगा. चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा घोषित नहीं किया जाएगा और चुनाव के विधायकों की सलाह से मुख्यमंत्री का चयन किया जाएगा. साथ ही उन्होंने कहा कि बीजेपी के पास एक ही चेहरा है, जबकि कांग्रेस के पास कई चेहरे हैं. सभी चेहरे सामने हैं. हमारे पास बड़ों का आशीर्वाद है तो युवाओं का साथ भी है. हालांकि, कांग्रेस नेता हरीश रावत काफी समय से सीएम चेहरे की डिमांड कर रहे थे, लेकिन अब चुप्पी साधे हुए हैं.

उत्‍तराखंड की सियासत में देखें तो यहां अब तक हुए चार विधानसभा चुनाव हुए और अब पांचवां चुनाव है. पिछले दो दशक में महज एक मौका ऐसा आया, जब मुख्‍यमंत्री का चेहरा घोषित करने का किसी पार्टी को फायदा मिला और उसने सत्‍ता पाई. यह 2007 में हुआ विधानसभा चुनाव था, जब भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के चेहरे पर दांव खेलकर सत्‍ता में वापसी की थी. इसके अलावा बाकी तीन विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने वाली पार्टी ने ऐसे चेहरों को मुख्‍यमंत्री बनाया, जिनके नाम की दूर दूर तक कहीं चर्चा तक नहीं थी.

सीएम फेस से कांग्रेस क्यों बच रही?
कांग्रेस उत्तराखंड में बिना सीएम फेस के उतरने के पीछे पार्टी की सोची समझी रणनीति है. पूर्व सीएम हरीश रावत सूबे में कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता हैं, जो सत्ता में वापसी के लिए हरसंभव कोशिश में जुटे हैं. ऐसे में कांग्रेस हरीश रावत के पार्टी में रहते हुए किसी दूसरे चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ने का जोखिम भरा कदम नहीं उठा सकती है. वहीं, हरीश रावत को सीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर चुनावी मैदान में उतरती है तो पार्टी में अंदरूनी कलह उभरकर सामने आ सकती है. कांग्रेस में गुटबाजी लंबे समय से चली आ रही है.

हरीश रावत और सीएलपी लीडर प्रीतम सिंह के बीच सियासी वर्चस्व की जंग जगजाहिर है. इसके अलावा कांग्रेस में जिस तरह यशपाल आर्य व अन्य नेताओं की वापसी हुई है, उससे भविष्य में पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री पद को लेकर दावेदारी बढ़ रही है. फिलहाल कांग्रेस ने चुनाव मैदान में बगैर किसी कलह के सामूहिक नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है ताकि पार्टी में गुटबाजी हावी न हो सके.

बीजेपी सीएम चेहरे से क्यों बच रही
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी एक के बाद एक दो सीएम बदल चुकी है और अब सत्ता की कमान युवा नेता पुष्कर सिंह धामी के कंधों पर है. इसके बावजूद बीजेपी 2022 के विधानसभा चुनाव में धामी के चेहरे पर चुनाव लड़ने का साहस नहीं जुटा पा रही है. धामी दूसरी बार विधायक बन है जबकि पार्टी में कई वरिष्ठ नेता है. ऐसे में पार्टी उन्हें 2022 का सीएम फेस घोषित करेगी तो वरिष्ठ नेताओं के नाराज होने का खतरा है.

वहीं, कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने वाले हरक सिंह रावत से लेकर सतपाल महाराज और विजय बहगुणा जैसे नेता धामी को लेकर खुश नहीं है. रावत और सतपाल कई बार बयान भी दे चुके हैं. ऐसे में बीजेपी युवा चेहरे के बात कर रही है, लेकिन धामी पर दांव खेलने से बच रही है. इसके अलावा बीजेपी उत्तराखंड के क्षेत्रीय और जातीय संतुलन को भी बनाए रखने के लिए बिना किसी चेहरे के बजाय पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है.

सीएम चेहरे का दांव सफल नहीं रहा
उत्तराखंड में 2002 में पहला चुनाव हुआ था जबकि 2000 को राज्य के रूप मे गठन किया गया, जिसमें पहले मुख्‍यमंत्री बीजेपी नेता नित्‍यानंद स्‍वामी बने. स्‍वामी अपना एक साल का कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाए और उनकी जगह भगत सिंह कोश्‍यारी मुख्‍यमंत्री बने थे. ऐसे में बीजेपी कोश्‍यारी के चेहरे के साथ 2002 के चुनावी मैदान में उतरी जबकि कांग्रेस बिना किसी चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ी. 2002 चुनाव में कांग्रेस 70 में से 36 सीटों पर जीत दर्ज कर बहुमत का आंकड़ा छू लिया. कांग्रेस ने मुख्‍यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हरीश रावत को दरकिनार कर नारायण दत्‍त तिवारी को सत्ता की कमान सौंप दी.

खंडूरी सफल पर बाकी फेल
उत्तराखंड के 2007 विधानसभा चुनाव में बीजेपी भुवन चंद्र खंडूरी के चेहरे को आगे कर मैदान में उतरी थी. इससे बीजेपी को सत्‍ता में वापसी हुई और खंडूरी सीएम बने. वहीं, बीजेपी ने 2009 में रमेश पोखरियाल निशंक को सीएम बनाया, पर 2012 के चुनाव से ठीक पहले निशंक को हटाकर खंडूरी पर दोबारा से भरोसा जताया. इस तरह 2012 के चुनाव में खंडूरी पर दांव खेलना सफल नहीं रहा. बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई.

कांग्रेस ने इस चुनाव में किसी भी चेहरे को आगे कर चुनाव नहीं लड़ी थी, जिसका फायदा मिला. सत्ता में आने पर कांग्रेस ने विजय बहगुणा को सीएम बनाया पर 2014 के चुनाव से पहले उन्हें हटाकर हरीश रावत को कुर्सी सौंप दी. ऐसे में कांग्रेस 2017 के चुनाव में हरीश रावत के अगुवाई में चुनाव लड़ी, जिसका पार्टी को खामियाजा भुगतना पड़ा जबकि बीजेपी ने किसी भी चेहरे को आगे कर चुनाव नही लड़ी थी. इसका फायदा मिला और 2022 के चुनाव में चेहरे को लेकर दोनों ही पार्टियां अपने प