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जयपुर। राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच लंबे समय से खींचतान चल रही है। वहीं अब भाजपा की लड़ाई सार्वजनिक हो गई है। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे खुद तो शांत है, लेकिन उनके समर्थक खुलकर मैदान में आ गए। इनकी मोर्चेबंदी से पार्टी का प्रदेश नेतृत्व हैरान है।
समर्थकों ने जिला स्तर पर अपनी टीम बना ली। इनकी अगुवाई पूर्व मंत्री और विधायक कर रहे है। जिला स्तर पर युवाओं और महिलाओं को जोड़ने पर विशेष जोर दिया गया है। कोरोना काल में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में”वसुंधरा रसोई” के माध्यम से जरूरतमंदों को भोजन और दवाईयां वितरित की गई। समर्थकों ने “वसुंधरा रसोई “के माध्यम से आम लोगों तक पूर्व सीएम का चेहरा और नाम पहुंचाने की कोशिश की। इसके साथ ही “वसुंधरा समर्थक मंच” और “वसुंधरा फैंस क्लब” नाम से ग्रुप बनाकर जिला स्तर तक लोगों को जोड़ा जा रहा है।
जिस तरह से भाजपा प्रदेश इकाई वसुंधरा और उनके समर्थकों को साइडलाइन करने में जुटी है। उससे अपना वजूद खोने की चिंता के चलते वसुंधरा समर्थकों ने सक्रियता बढ़ाई है। प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया का कहना है कि अनुशासनहीनता के बारे में केंद्रीय नेतृत्व को बताया जाएगा। जिस तरह से वसुंधरा समर्थक उन्हें भावी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए जाने को लेकर मुहिम चला रहे हैं। उससे परेशान पूनिया का कहना है कि भाजपा में सीएम संसदीय बोर्ड तय करता है। उधर विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया ने कहा,मुझे लगता है कि हमारी पार्टी के कुछ नेता कांग्रेस को साथ लेकर साजिश कर रहे हैं। यह बड़ी साजिश है। यह वक्त नहीं है कि मुख्यमंत्री के उम्मीदवार की मांग की जाए।
दोनों खेमों में सक्रियता बढ़ी
वसुंधरा समर्थकों ने पिछले कुछ दिनों से इंटरनेट मीडिया सहित विभिन्न माध्यमों से आलाकमान तक यह संदेश पहुंचाने का प्रयास किया है कि शीघ्र ही सीएम चेहरा घोषित होना चाहिए। वसुंधरा के बिना चुनाव जीतना मुश्किल है। कुछ समर्थकों ने तो वसुंधरा ही भाजपा और भाजपा ही वसुंधरा तक कह दिया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी, पूर्व मंत्री युनूस खान,पूर्व मंत्री प्रताप सिंह सिंघवी, भवानी सिंह राजावत, राजपाल सिंह शेखावत और प्रहलाद गुंजल के हाथ में वसुंधरा समर्थकों को एकजुट करने की कमान है। वहीं वसुंधरा विरोधी पूनिया, कटारिया और प्रदेश भाजपा के महामंत्री मदन दिलावर का कहना है कि भाजपा व्यक्ति आधारित पार्टीनहीं है। यहां संगठन फैसला करता है।