20 गर्भवती महिलाएं…अस्पताल में आतंकी और एक बहादुर नर्स, 26/11 हमले की अनसुनी दास्तां

20 pregnant women, a terrorist in the hospital and a brave nurse, the unheard story of 26/11 attacks
20 pregnant women, a terrorist in the hospital and a brave nurse, the unheard story of 26/11 attacks
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नई दिल्ली। मुंबई के 26/11 आतंकी हमले को 11 साल बीत चुके हैं. लेकिन उस वारदात की एक-एक घटना आज भी लोगों को अंदर तक झकझोर देती है. ऐसी एक घटना कामा एंड अल्बलेस अस्पताल से जुड़ी हुई है जहां पर आंतकियों ने वार किया था और एक बहादुर नर्स ने संकटमोचक बन 20 गर्भवती महिलाओं की जान बचाई थी. हम बात कर रहे हैं नर्स अंजलि विजय कुलथे की जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को इतने सालों बाद अपनी आपबीती सुनाई और पाकिस्तान को भी एक्जपोज करने का काम किया.

जब अस्पताल में घुसे आतंकी…

अंजलि विजय कुलथे ने बताया कि जिस दिन मुंबई में ये आंतकी हमला हुआ था, उनकी रात की ड्यूटी लगी हुई थी. उनकी आठ बजे के करीब ड्यूटी शुरू हुई थी और उन्हें एक घंटे बाद बताया गया कि CSD स्टेशन पर फायरिंग हो रही है. वो फायरिंग ही चेतवानी ये बताने के लिए कि कामा एंड अल्बलेस अस्पताल में कुछ भयंकर होने वाला है. तब अधिकारियों ने अंजलि को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि अस्पताल द्वारा आपातकाल वाली तैयारी कर ली जाए. उस चेतावनी के डेढ़ घंटे बाद उस खतरे ने अस्पताल में दस्तक दे दी जिसका डर अंजलि को सता रहा था. उस बारे में अंजलि ने बताया कि करीब साढ़े दस बजे मुझे गोलियों की आवाज सुनाई दी. मैंने जब खिड़की से बाहर देखा, तो आतंकी अस्पताल में घुसने की कोशिश कर रहे थे. वो दीवार फांद अंदर आना चाहते थे. आतंकियों ने हमारी तरफ दो बार फायर भी किया. एक गोली से तो अस्पताल की लाइट चली गई, लेकिन दूसरी गोली हमारी सहायक के हाथ में लगी. मैंने तुरंत ही अपनी साथी को कैजुएलटी में शिफ्ट किया. उसका बहुत खून निकल चुका था. उसे वहां छोड़ने के बाद मुझे अपने वॉर्ड में जाना था.

महिला को लेबर पेन…गोलियों की तड़तड़ाहट

अब आतंकी अस्पताल में घुस चुके थे. अंजलि ने अपने सीनियर अधिकारियों को इस बात की जानकारी दे दी थी. लेकिन किसी से मदद मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी. अंजलि को खुद हिम्मत भी दिखानी थी और उन गर्भवती महिलाओं की जान भी बचानी थी. स्थिति को समझते हुए अंजलि तुरंत अपने वॉर्ड की तरफ भागी थीं. उस पल को याद करते हुए उन्होंने बताया कि मैं जब अपने वॉर्ड की तरफ भाग रही थी, मैंने देखा मेन गेट पर जो गार्ड थे, उन्हें आतंकियों ने गोली मार दी थी. वो देख मैं बहुत डर गई और सीधे अपने वॉर्ड की तरफ गई. मैंने मेन गेट बंद कर दिया और सभी 20 गर्भवती महिलाओं को अपने वॉर्ड में शिफ्ट किया. वहां पर एक पैंट्री भी थी, उन सभी महिलाओं को वहां छिपा दिया. वो सुरक्षित जगह थी. मैंने लाइट भी बंद कर दी जिससे आतंकियों को इनके यहां होने की भनक ना लगे. लेकिन मेरी एक मरीज जो हाइपर टेंशन की शिकार थीं, उन्हें लेबर पेन शुरू हो गया. ये गंभीर स्थिति थी, दोनों बच्चे और मां की जान को खतरा था. मैंने तुरंत डॉक्टर को फोन किया, लेकिन क्योंकि अस्पताल में उस समय भी गोलियां चल रही थी, ग्रेनेड फेंके जा रहे थे, उन्होंने आने से मना कर दिया. फिर मैंने ही मरीज को हिम्मत रखने के लिए कहा और उन्हें लेबर रूम में शिफ्ट किया.

कसाब से वो आखिरी मुलाकात…

पूरी दुनिया को अंजलि ने बताया कि उस पूरी रात वे अपने मरीजों के साथ वॉर्ड में ही छिपी रहीं. फिर अगले दिन सुबह साढ़े सात बजे जब पुलिस अस्पताल में आई, तब मेन गेट खोला गया और सभी का रेस्क्यू हुआ. अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सामने अंजलि ने कसाब के साथ अपनी मुलाकात को भी याद किया. उन्होंने सभी देशों के सामने जोर देकर कहा कि कसाब को अपने किए पर कोई पछतावा नहीं था. उसकी आंखों में कोई खौफ या शर्म नहीं थी.