बस से एक-एक करके उतारे 9 लोग, सबको मार दी गोली, जहां-तहां फैंकी लाशें

9 people were taken off the bus one by one, everyone was shot, bodies were thrown everywhere
9 people were taken off the bus one by one, everyone was shot, bodies were thrown everywhere
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इस्लामाबाद। पाकिस्तान में बलूच, पख्तून और मुहाजिरों की पहचान के आंदोलन लंबे समय से चलते रहे हैं। पख्तून तो मानते रहे हैं कि उनकी पहचान 5000 साल पुरानी है और वे इस्लाम एवं पाकिस्तान से भी पुरानी सभ्यता वाले हैं। यही वजह है कि अफगानिस्तान से लेकर खैबर पख्तूनख्वा तक को वे एक यूनिट मानते हैं और पाकिस्तान की सीमा को भी खारिज करते रहे हैं। बीते 6 महीने से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच चमन बॉर्डर पर हजारों पख्तूनों का आंदोलन इसकी बानगी है। वहीं बलूचों का मानना है उन्हें पाकिस्तान में शामिल कराके गलत किया गया और उनके संसाधनों का दोहन तो हो रहा है, लेकिन सत्ता में भागीदारी उनकी ना के समान है।

बांग्ला भाषा और पहचान के नाम पर पाकिस्तान 1971 में एक विभाजन झेल चुका है। इसके बाद भी वहां अलगाववाद थम नहीं रहा तो उसकी वजह यह है कि पंजाब सूबे का प्रभुत्व सबसे अधिक बना हुआ है। सेना से लेकर सत्ता तक में पंजाबियों का वर्चस्व है। ऐसे में कई जगहों पर पंजाबी विरोध हिंसक रूप लेता जा रहा है। शनिवार को ही बलूचिस्तान में 11 लोगों को मौत के घाट उतार दिया, जो मूलत: पाकिस्तानी पंजाब के थे। बलूच उग्रवादियों ने अलग-अलग हमलों में 11 लोगों की हत्या की जिम्मेदारी ली है।

पंजाब प्रांत के रहने वाले नौ युवकों को शनिवार को बलूचिस्तान प्रांत के नोशकी इलाके में बंदूकधारियों ने एक बस से जबरन उतार दिया और उनकी पंजाबी जातीयता की पुष्टि करने के बाद उन्हें अगवा कर लिया। इसके बाद में बंदूकधारियों ने उनकी हत्या कर दी और उनके शवों को पास के एक पुल के नीचे फेंक दिया। एक अलग घटना में उसी राजमार्ग पर दो लोगों की मौत हो गई, जब बंदूकधारियों ने उनकी कार पर गोलीबारी की। ‘डॉन’ अखबार की खबर के अनुसार प्रतिबंधित बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने हत्याओं की जिम्मेदारी ली है। खबर के मुताबिक पंजाब के नौ लोग ईरान जा रहे थे, जहां से वे तुर्किये के रास्ते यूरोप में प्रवेश करने वाले थे। लेकिन उन्हें मार डाला गया।

इस घटना के बाद पाकिस्तान सरकार ने उग्रवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कही है। बलूच राष्ट्रवादी अकसर पंजाब के लोगों के खिलाफ हिंसा की ऐसी वारदातों को अंजाम देते रहते हैं। उनका आरोप है कि बलूचिस्तान की खनिज संपदा का दोहन करने में पंजाब के लोग शामिल हैं। यही नहीं बलूचिस्तान में उन चीनी नागरिकों को भी लगातार निशाना बनाया जा रहा है, जो वहां चल रही परियोजनाओं में लगे हुए हैं।

जिन्ना की वादाखिलाफी ने दे दिया दशकों न मिटने वाला जख्म

गौरतलब है कि 1947 में भारत विभाजन के बाद पाकिस्तान जब अस्तित्व में आया था तो बलूचिस्तान के एक शासक कलात खान उसमें विलय के पक्ष में नहीं थे। इस पर मोहम्मद अली जिन्ना ने वादा भी किया था कि वह सबकी राय लेंगे। अंत में सेना के जोर पर उसका विलय करा लिया गया। वह विलय तो हो गया, लेकिन बलूचों में आज भी पाकिस्तान को लेकर गुस्सा है और पंजाबी प्रभुत्व से एक वर्ग में गहरी नफरत है।