- स्कूल के समय में नहीं होगा बदलाव!, शिक्षा विभाग ने पोस्ट कर बता दिए नियम - May 19, 2024
- लखीसराय में आपसी रंजिश में फायरिंग, दिनदहाड़े दो को मारी गोली, बेटी की मौत, मां की हालत गंभीर - May 19, 2024
- भरी सभा में नीतीश कुमार ने मानी गलती, कहा- अब आगे ऐसा नहीं होगा, मुसलमानों से कह दी बड़ी बात - May 19, 2024
मध्यप्रदेश में शुक्रवार को मतदान होना है। इस राज्य में सियासी तौर पर सीधी लड़ाई तो भाजपा और कांग्रेस के बीच में ही है। लेकिन समाजवादी पार्टी ने अब तक के अपने सभी चुनाव में सबसे ज्यादा ताकत मध्यप्रदेश के इसी चुनाव में झोंकी है। दरअसल अखिलेश यादव की ओर से मध्यप्रदेश के चुनाव में पूरी ताकत झोंकने के पीछे कांग्रेस को न सिर्फ खुले तौर पर चुनौती देना बताया जा रहा है, बल्कि सियासी जानकारों का मानना है कि समाजवादी पार्टी की मध्यप्रदेश में इतनी आक्रामक रैलियों और सम्मेलनों के चलते आने वाले लोकसभा के चुनाव में INDIA गठबंधन के दौरान अपनी शर्तों पर ही कांग्रेस को सीटें देने का पूरा रोड मैप भी तैयार किया है।
समाजवादी पार्टी ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस से कुछ विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए गठबंधन के चलते बात रखी थी। लेकिन जब यह बात बिगड़ी तो दोनों राजनीतिक दलों के रिश्ते भी INDIA गठबंधन के बावजूद तल्ख हो गए। नतीजा हुआ कि अखिलेश यादव ने मध्यप्रदेश में इस बार के विधानसभा चुनाव में पिछली बार की तुलना में अपनी पूरी ताकत मध्यप्रदेश के सियासी मैदान में झोंक दी। राजनीतिक जानकार पुष्कर शर्मा कहते हैं कि अगर सीटों की बात की जाए, तो समाजवादी पार्टी ने 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में 50 से ज्यादा सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। जबकि इस विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने 70 से ज्यादा सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए हैं। पुष्कर कहते हैं कि दरअसल अखिलेश यादव ने मध्यप्रदेश में सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस से हुए मनमुटाव के चलते ही वहां पर अपनी पूरी ताकत लगा दी है। उनका मानना है कि अगर समाजवादी पार्टी की वजह से मध्यप्रदेश में कोई सियासी खेल बिगड़ता है और कांग्रेस को नुकसान होता है, तो राजनीतिक तौर से समाजवादी पार्टी की यह जीत भी मानी जा सकती है।
सियासी जानकारों का मानना है कि यह बात तय है, जितनी सीटों पर अखिलेश यादव ने अपने प्रत्याशी उतारे हैं, वहां उस अनुपात में उन्हें बिल्कुल सीटें नहीं मिलने वालीं। वरिष्ठ राजनीतिक जानकार ओपी शाक्य कहते हैं कि लेकिन कांग्रेस के साथ सीट बंटवारे को लेकर हुई तल्खी के बाद अगर समाजवादी पार्टी कुछ सीटों पर भी कांग्रेस का खेल बिगाड़ती है, तो सपा आने वाले चुनावों से पहले एक तरह से दबाव की राजनीति का आधार तो तैयार कर ही देगी। शाक्य का मानना है कि अगर समाजवादी पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ता है या कुछ प्रमुख सीटों पर कड़े मुकाबले में समाजवादी पार्टी आती है, तो लोकसभा चुनावों से पहले अखिलेश यादव और मजबूती के साथ गठबंधन में सीटों के बंटवारे पर अपना हक जता सकेंगे। समाजवादी पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता बताते हैं कि उनकी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पहले ही कहा है कि वह उत्तर प्रदेश में सीटों को देने की हैसियत में हैं। इसलिए यह कहना कि मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी ने ज्यादा प्रत्याशी उतार कर उत्तर प्रदेश में दबाव की राजनीति का रास्ता अपनाया है, यह पूरी तरह से निराधार है। उनका मानना है कि उनकी पार्टी विस्तार की दिशा में आगे बढ़ रही है। मध्यप्रदेश समेत अन्य राज्यों में लड़ा जा रहा चुनाव उसी का हिस्सा है।
दरअसल इस साल हो रहे विधानसभा के चुनाव में मध्यप्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना ऐसे राज्य हैं, जहां कांग्रेस और भाजपा के अलावा अन्य कोई भी बड़ा स्थानीय दल बहुत सक्रिय नहीं है। ऐसे में समाजवादी पार्टी से लेकर बहुजन समाज पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से लेकर आम आदमी पार्टी समेत असदुद्दीन ओवैसी भी इन राज्यों में सियासी संभावनाएं तलाशने के लिए मजबूती के साथ चुनाव में उतरे हैं। वरिष्ठ पत्रकार बृज सिंह बताते हैं कि मध्यप्रदेश में तो समाजवादी पार्टी से लेकर बहुजन समाज पार्टी बीते कई सालों से सियासी तौर पर अपनी किस्मत आजमाती आई है। कभी मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी को सीटें मिल जाती हैं, तो कभी राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी को। लेकिन इतने सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि इन पार्टियों की मदद से वहां पर सरकार बनने या बिगड़ने का बहुत बड़ा खाका खींचा गया हो। यही वजह है कि जब INDIA गठबंधन की नींव रखी गई, तो जो क्षेत्रीय पार्टियां थीं उन्हें अपनी पार्टी के विस्तार के लिए बड़ा फलक नजर आने लगा था। लेकिन कांग्रेस ने जब यह कहा कि यह गठबंधन विधानसभा चुनाव के लिए नहीं है, तो समाजवादी पार्टी ने आक्रामक रूप से मध्यप्रदेश में अपनी सियासी फील्डिंग सजानी शुरू कर दी।