राजस्थान में अमित शाह का दौरा! कुछ तो बड़ा होने वाला है

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जयपुर. राजस्थान बीजेपी में मचे सियासी घमासान के बीच गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) रविवार 5 दिसंबर को जयपुर आ रहे हैं. शाह गुटों में बंटी बीजेपी को एकजुटता को एकता का पाठ पढ़ाएंगे. प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के साथ जनप्रतिनिधियों के बड़े सम्मेलन में शाह के संबोधन पर पार्टी के सभी नेताओं की निगाह टिकी है. उनका दौरा ये भी संकेत देगा कि 2023 में पार्टी किसी चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ेगी या फिर पीएम मोदी के फेस पर राजस्थान की जनता के बीच जाएगी. राजस्थान में बीजेपी को सत्ता से बाहर हुए पूरे तीन साल हो गए हैं. बस चुनाव में अब मुश्किल से दो साल बाकी हैं. पार्टी में सियासी संग्राम मचा है. वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) की सक्रियता से पार्टी में खींचतान और बढ़ा दी है. ऐसे दौर में बीजेपी के कार्यकर्ताओं में नई उर्जा का संचार करने और राजस्थान की जनता के बीच ये संदेश देने की बीजेपी में सब कुछ ठीक है, गृह मंत्री अमित शाह राजस्थान के दौरे पर आ रहे हैं, जिसमें वो प्रदेश कार्यसमिति की बैठक को संबोधित करेंगे. कार्यकर्ताओं को मिशन 2023 के लिए अभी से जी जान जुट जाने का आव्हान करेंगे.

शाह प्रदेशभर के दस हजार जनप्रतिनिधियों की भी क्लास लेने जा रहे हैं. ये वो जनप्रतिनिधि हैं जो कमल के निशान पर चुनाव जीते हैं जिनकी बीजेपी में आस्था है. सांसदों से लेकर विधायकों तक और जिला प्रमुख से लेकर प्रधान तक इस बैठक में शामिल होंगे. राजस्थान बीजेपी अध्यक्ष सतीश पूनिया ने कहा कि बैठक में संगठनात्मक गतिविधियों की समीक्षा होगी. साथ ही आगामी कार्ययोजना का ऐलान भी होगा ताकि पार्टी का कार्यकर्ता फिर से रिचार्ज हो सके. गहलोत सरकार को घेरने के लिए वो और ज्यादा मुखर हो.

शाह के दौरे के क्या है मायने?
बीजेपी में वसुंधरा राजे 2023 के चुनाव की तैयारी में जुट गई है. उनकी देवदर्शन यात्रा ने पार्टी के प्रदेश और आलाकमान की चिंता बढ़ा दी है. प्रदेश नेतृत्व से राजे का छत्तीस का आंकड़ा है. राजे एक तरह से सतीश पूनिया के खिलाफ प्रदेशभर में मोर्चा खोले हुए हैं. आलाकमान अभी किसी भी पार्टी नेता को 2023 के लिए सीएम का चेहरा प्रोजेक्ट नहीं करना चाहता. केंद्रीय नेतृत्व से वसुंधरा राजे के रिश्ते अभी सामान्य नहीं बताये जा रहे हैं. राजे ने देवदर्शन के बहाने जो भीड़ जुटाई, उससे ये सियासी मैसेज देने की उन्होंने कोशिश की है कि वह राजस्थान में ही रहेंगी. फिर से एक बार सीएम बनने की उनकी ख्वाहिश है. कार्यकर्ता उनके साथ हैं. उन्हें आलाकमान का नजंदाज करना रास नहीं आ रहा.

2023 के लिए बीजेपी में कई चेहरों की सीएम को लेकर अभी से ही दावेदारी है. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला, जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल, बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के नाम खबरों में हैं. हालांकि संगठन निष्ठ नेता खुद को सीएम का चेहरा कभी नहीं मानते. वसुंधरा राजे का बड़ा समर्थक वर्ग है. उनके विरोधी भी मानते हैं कि अभी उनमें बहुत राजनीति बाकी है. बीजेपी की टिकट पर जीते सभी जनप्रतिनिधियों के बीच अमित शाह साफ साफ मैसेज देने आ रहे हैं कि पार्टी किसी व्यक्ति के पीछे नहीं विचारों के साथ चलती है. कार्यकर्ताओं में लीडरशिप को लेकर उपजे असमंजस को भी शाह दूर करने की कोशिश करेंगे ताकि कार्यकर्ताओं का मनोबल न टूटे और पार्टी में बिखराव की स्थिति न हो. कार्यकर्ता आलाकमान के निर्देश पर चलें, न कि किसी नेता के.

कृषि कानूनों ने बीजेपी के कार्यकर्ताओं के मनोबल को काफी हद तक प्रभावित किया है. पार्टी ने भले ही कदम पीछे खींचते हुए कृषि कानून वापस लेने का फैसला कर लिया हो मगर जो नुकसान एक साल में हुआ, उसकी भरपाई बहुत मुश्किल है. शाह जनप्रतिनिधियों और सहकारी आंदेालन से जुड़े लोगों के बीच इस पर काफी कुछ बोलेंगे. शाह को कुशल रणनीतिकार माना जाता है. चुनाव प्रबन्धन और मतदाताओं के मिजाज को भांपने में उनका कोई सानी नहीं. गृहमंत्री होने के बावजूद कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद का उनका आंदाज राजस्थान में धड़ों में बंटी पार्टी को एकजुटता का संदेश देगा.

बीजेपी गहलोत सरकार को घेरने के लिए प्रदेशभर में आंदोलन कर रही है. शाह के आने से आंदोलन की धार और पैनी होगी. साथ ही किसान कर्जमाफी, बिजली, पानी, चिकित्सा, शिक्षा और बेरोजगारी के मुददों पर पार्टी और मुखर होकर सरकार के खिलाफ आवाज उठाएगी. इस दौरे से केंद्र की योजनाओं के धरातल पर असर का भी फीडबैक लिया जायेगा. लाभान्वितों के जीवन में आये बदलाव पर भी चर्चा होगी ताकि चुनाव में बीजेपी बता सके कि उसकी योजनाओं ने कैसे लोगों के जीवन को संबल प्रदान किया है. निगाहें वसुंधरा कैंप पर भी रहेगी कि आखिर वो अमित शाह के दौरे पर प्रदेश संगठन कि किस अंदाज में शिकायत करता है.