छत्तीसगढ़ में फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रही कांग्रेस, आदिवासियों को साधे रखने की कवायद

Congress is making strides in Chhattisgarh, trying to keep tribals simple
Congress is making strides in Chhattisgarh, trying to keep tribals simple
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नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में कांग्रेस कोई भी जोखिम नहीं उठाना चाहती है। इसलिए फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। पार्टी विधायक और आदिवासी नेता मोहन मरकाम को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाए जाने के दो दिन के भीतर उन्हें भूपेश बघेल मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया। पार्टी ने मोहन मरकाम की जगह आदिवासी नेता व सांसद दीपक बैज को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी सौंपी है।

क्षेत्रीय समीकरणों का ध्यान
कांग्रेस इस कवायद से जहां चुनाव से पहले अंदरूनी टकराव को टालने में सफल रही है, वहीं पार्टी ने जातीय व क्षेत्रीय समीकरणों को भी बनाए रखा है। मरकाम बस्तर क्षेत्र से आते हैं। इसलिए पार्टी ने उसी क्षेत्र से आदिवासी नेता दीपक बैज को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंप दी, ताकि चुनाव से पहले क्षेत्रीय समीकरणों में कोई बदलाव नहीं आए। क्योंकि, बस्तर क्षेत्र छत्तीसगढ़ की राजनीति में अहम भूमिका निभाता है।

सूबे की सियासत में बस्तर की भूमिका अहम
छत्तीसगढ़ की सियासत में बस्तर सत्ता का रास्ता माना जाता है। वर्ष 2013 को छोड़ दिया जाए, तो इस क्षेत्र की 12 सीट पर बढ़त बनाने वाली पार्टी सरकार बनाती है। इस वक्त बस्तर की सभी सीट पर कांग्रेस का कब्जा है। वर्ष 2018 के चुनाव में पार्टी ने 11 सीट जीती थी। एक साल बाद हुए उपचुनाव में एक सीट और जीतकर पार्टी ने सभी सीट पर कब्जा कर लिया। इसलिए पार्टी कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती।

आदिवासी मतदाताओं का भरोसा बरकरार रखने की कोशिश
पार्टी सूत्रों का कहना है कि पिछले कुछ समय से सरकार और संगठन के बीच तालमेल की कमी की वजह से मरकाम का हटना तय माना जा रहा था। पर, पार्टी ने मरकाम की जगह उसी क्षेत्र के दीपक बैज को जिम्मेदारी देकर आदिवासी मतदाताओं का भरोसा बरकरार रखने की कोशिश की है। पार्टी के एक नेता के मुताबिक, मरकाम की जगह गैर आदिवासी अध्यक्ष बनाने से गलत संदेश जा सकता था।

कांग्रेस को आदिवासियों पर भरोसा
आदिवासी मतदाता भाजपा से नाराज हैं। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में आदिवासी मतदाताओं ने कांग्रेस पर भरोसा जताया है। कर्नाटक में अनुसूचित जाति के लिए 15 सीट आरक्षित है। कुछ माह पहले हुए चुनाव में पार्टी को 15 में से 14 सीट हासिल हुई, जबकि एक सीट पर जेडीएस ने जीत हासिल की। ऐसे में पार्टी को भरोसा है कि छत्तीसगढ़ में भी वर्ष 2018 की तरह आदिवासी कांग्रेस को वोट देंगे।

29 आदिवासी विधायक
छत्तीसगढ़ विधानसभा के 90 सदस्यों में से कांग्रेस के 71 विधायक हैं। इनमें 29 आदिवासी विधायक हैं। प्रदेश में आदिवासियों के लिए 29 सीट आरक्षित हैं। वर्ष 2018 के चुनाव में पार्टी को आदिवासियों के लिए आरक्षित 27 सीट पर जीत हासिल हुई थी। जबकि दो सीट भाजपा ने जीती थी। कांग्रेस के दो अन्य विधानसभा सीट से आदिवासी विधायक है। इसलिए, पार्टी आदिवासियों को नाराजगी का कोई मौका नहीं देना चाहती। इसलिए, मरकाम को फौरन मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है।

सरगुजा संभाग में विधानसभा की 14 सीट
छत्तीसगढ़ में बस्तर के अलावा सरगुजा संभाग भी आदिवासी बहुल क्षेत्र है। सरगुजा संभाग में विधानसभा की 14 सीट हैं। पिछले चुनाव में सभी सीट पर कांग्रेस को जीत मिली थी। छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव की सरगुजा संभाग पर मजबूत पकड़ है। टीएस सिंहदेव की नाराजगी से पार्टी को इस क्षेत्र में नुकसान उठाना पड़ सकता था। इसलिए, पार्टी ने उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाकर सिंहदेव की नाराजगी और आदिवासी मतदाताओं का भरोसा बरकरार रखने की कोशिश की है।