पंजाब की हार से कांग्रेस ने लिया सबक… हरियाणा और हिमाचल में खेला ये बड़ा दांव…

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पंजाब में कांग्रेस सियासी प्रयोग कर चुनाव में अपना राजनीतिक हश्र देख चुकी है. पंजाब की हार से सबक लेते हुए कांग्रेस अब दूसरे राज्यों में स्थापित नेताओं पर ही भरोसा जता रही है. हरियाणा में कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष की कमान पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के करीबी उदयभान को सौंपी गई है, जो दलित समुदाय से आते हैं. ऐसे ही हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को सौंपा है. ऐसे में साफ जाहिर होता कि कांग्रेस अब अपने स्थापित और मजूबत नेताओं के सहारे ही चुनावी जंग लड़ने का फैसला किया है.

पंजाब में कांग्रेस का सियासी हश्र

बता दें कि कांग्रेस ने पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह पर भरोसा करने के बजाय नवजोत सिंह सिद्धू पर दांव लगाया था. पार्टी ने कैप्टन को हटाकर सत्ता चरणजीत सिंह चन्नी तो संगठन की कमान नवजोत सिंह सिद्दू को सौंपकर नए चेहरे का सियासी प्रयोग किया था. इसका हश्र यह हुआ कि कांग्रेस सिर्फ पंजाब की सत्ता से ही बाहर नहीं हुई बल्कि 20 सीटों से भी नीचे चली गई, जो कि पार्टी की अब तक की राज्य में सबसे बुरी हार है.

पंजाब में कांग्रेस के राजनीतिक बिखराव से सबक लेते हुए पार्टी हाईकमान ने अब किसी दूसरे राज्य में गलती नहीं दोहराना चाहती है. इसी का नतीजा है कि गुजरात में कांग्रेस ने पाटीदार नेता नरेश पटेल को लेकर अभी तक अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं. वहीं, हरियाणा में कुलदीप विश्वनोई पर भरोसा जताने के बजाय कांग्रेस ने जिस तरह हुड्डा खेमे के उदय भान को पार्टी की कमान सौंपी है, उसके पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पावरफुल बनकर उभरे हैं.

हुड्डा के करीबी उदयभान बने प्रदेश अध्यक्ष

कांग्रेस ने उदय भान को पीसीसी चीफ बनाकर हुड्डा को पूरी तरह खुलकर खेलने का मौका दे दिया है. कांग्रेस हाईकमान ने नए अध्यक्ष और चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति करते समय सभी गुटों को साधने की कवायद है तो किया ही, साथ ही हुड्डा को कांग्रेस विधायक दल के नेता पर बरकरार रखते हुए दलित व जाट के बीच राजनीतिक संतुलन साधने में सफलता हासिल की है.

प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद साफ है कि हरियाणा में न केवल जल्दी ही संगठन तैयार होगा, बल्कि विधानसभा और लोकसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे को लेकर हुड्डा की पसंद-नापसंद का पूरा ख्याल रखा जाएगा. हालांकि, हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की ताजपोशी की संभावना थी, लेकिन पार्टी में आम धारणा है कि जो नेता कांग्रेस पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनता है, वह कभी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है. इसलिए हुड्डा ने कांग्रेस विधायक दल का नेता बने रहना मंजूर किया है.

सैलजा को हटाने में हुड्डा खेमा सफल रहा

बता दें कि 2019 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद हुड्डा ने खुलकर कहा था कि यदि टिकटों का बंटवारा ठीक ढंग से किया गया होता तो राज्य में कांग्रेस सत्ता में होती. उनका यह इशारा प्रदेश अध्यक्ष रही कुमारी सैलजा की तरफ था, जिन्होंने करीब आधा दर्जन ऐसे नेताओं के टिकट कटवा दिए थे, जिन्हें हुड्डा चुनाव लड़वाना चाहते थे. हुड्डा समर्थक विधायक पिछले काफी समय से कुमारी सैलजा को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटवाने के लिए प्रयास कर रहे थे.

कुमारी सैलजा से पहले अशोक तंवर और हुड्डा समर्थक विधायकों की भी पटरी नहीं बैठ पाई थी. इस तनातनी का नतीजा यह हुआ कि न तो अशोक तंवर और न ही सैलजा संगठन तैयार नहीं कर पाए. तंवर के बाद सैलजा के खिलाफ मोर्चा खोलने में हुड्डा समर्थक कामयाब हो गए, लेकिन कांग्रेस हाईकमान प्रदेश अध्यक्ष की कमान दलित नेता उदयभान को ही सौंपी है. ये अलग बात है कि उदयभान को हुड्डा का करीबी माना जाता है.

2019 में हुड्डा को नहीं मिली थी पूरी छूट

दरअसल, 2019 में बड़ी मशक्कत के बाद कांग्रेस ने हुड्डा के अगुवाई में चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन पार्टी हुड्डा को चेहरा बनाने में बहुत देर कर गई थी. इसके बाद भी हुड्डा ने बीजेपी को कांटे की टक्कर दिया था. हुड्डा को कांग्रेस के जी-23 यानी असंतुष्ट नेताओं का बड़ा नेता माना जाता है. ऐसे में पार्टी हुड्डा के सियासी ताकत से वाकिफ है, जिसके चलते उन्हीं की मनपसंद उदयभान को कमान दी गई, जिससे कुलदीप बिश्नोई नाराज भी हो गए हैं. हालांकि, बिश्नोई ने कहा कि राहुल गांधी के फैसले के बाद ही कोई निर्णय लेंगे.

पंजाब की गलती से कांग्रेस ने लिया सबक

कुलदीप बिश्नोई को भी नवजोत सिंह सिद्धू की तरह राहुल गांधी का करीबी माना जाता, लेकिन पंजाब में कांग्रेस सिद्धू को कमान देकर अपना सियासी हश्र देख चुकी है. ऐसे में कांग्रेस अब अन्य राज्यों में यह गलती नहीं दोहारना चाहती. हिमाचल प्रदेश के बाद हरियाणा में जिस तरह कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को हाईकमान ने तरजीह दी है, उसे देखकर यह भी लग रहा है कि पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है.

हिमाचल में बैलेस बनाने की कवायद

हिमाचल में कांग्रेस ने पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह को पार्टी की कमान सौंपी तो उनके विरोधी माने जाने वाले सुखबिंद्र सुक्खा को चुनावी प्रचार कमेटी का अध्यक्ष बनाया जबकि आनंद शर्मा को संचालन कमेटी की जिम्मेदारी सौंपी गई गई है. इस तरह कांग्रेस ने सारे गुटों को साधकर रखने की कवायद की है तो हरियाणा में कांग्रेस हाईकमान ने जाट और गैर जाट यानी दलित के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है.

हरियाणा में जाट-दलित कॉम्बिनेशन

जाटों के प्रतिनिधित्व के रूप में श्रुति चौधरी, गुर्जरों के लिए रामकिशन गुर्जर, ब्राह्मण प्रतिनिधित्व के लिए जितेंद्र कुमार भारद्वाज व वैश्य कोटे से सुरेश गुप्ता को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है. यादव कोटे से पार्टी ने कैप्टन अजय सिंह यादव को पहले ही पिछड़ा वर्ग विभाग का राष्ट्रीय संयोजक बना दिया थाय रामकिशन गुर्जर और सुरेश गुप्ता के बहाने पार्टी ने जीटी रोड बेल्ट को प्रतिनिधित्व दिया है. मध्य हरियाणा रोहतक से भूपेंद्र सिंह हुड्डा और भिवानी