गर्म मार्च में ठंडी का एहसास, बेमौसम बारिश ने तोड़ा 73 साल का रिकॉर्ड; आखिर क्यों बदल रहा मौसम का ट्रेंड

Feeling cold in hot March, unseasonal rain broke the record of 73 years; Why is the weather trend changing?
Feeling cold in hot March, unseasonal rain broke the record of 73 years; Why is the weather trend changing?
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देश में मार्च में मौसम के मिजाज के दो रंग देखने को मिले हैं। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार मार्च के पहले दो सप्ताह गर्मी भरे रहे हैं वहीं बाद के दो सप्ताह में मौसम अधिक ठंडा रहा है। आंकड़ों के अनुसार बीते 73 साल में मार्च के आखिरी दो सप्ताह दस सबसे ठंडे सप्ताह में रहा है। मार्च में बारिश ने भी मुश्किल बढ़ाई है। दिल्ली में मार्च औसत अधिकतम तापमान सामान्य से 0.31 डिग्री सेल्सियस कम दर्ज हुआ। दिल्ली में 34वीं बार ऐसा मौसम रहा जब मार्च में मौसम ठंडा रहा है। दिल्ली में मार्च के शुरुआती दो सप्ताह सामान्य से 2.1 और 1.9 डिग्री अधिक गरम थे। वहीं अगले दो सप्ताह सामान्य से 2.8 और 2.5 डिग्री सेल्सियस कम था जिसने 73 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया।

राज्यों के पारे में उतार-चढ़ाव
देश के 30 में से 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मौसम से जुड़े आंकड़ों का अध्ययन किया गया है। इसमें से छह राज्य असम, पंजाब, त्रिपुरा, केरल, मणिपुर और मिजोरम ऐसे हैं जहां गर्मी सामान्य से 0.5 डिग्री अधिक थी। वहीं सिक्किम, जम्मू-कश्मीर, मेघालय, तेलंगाना और महाराष्ट्र में पारा 1.1 डिग्री से 4.99 डिग्री सेल्सियस तक नीचे गया था।

1951 के बाद मार्च सबसे ठंडा
आईएमडी के अनुसार 29 मार्च तक देश का औसत अधिकतम तापमान 30.5 डिग्री था। ग्रिडेड डाटा सेट के अनुसार 1981 से 2010 के औसत तापमान से 0.96 डिग्री सेल्सियस कम रहा है। वर्ष 1951 के बाद मार्च का तापमान सबसे ठंडा दर्ज किया गया है। मार्च में मौसम को लेकर विभाग के पूर्वानुमान में ऐसा कुछ नहीं था की मार्च में पारा इस तरह से गिरेगा।

अनुमान के विपरित रहा मौसम
आईएमडी का 28 फरवरी को अनुमान था कि देश के अधिकतर हिस्सों में मार्च में गर्मी सामान्य से अधिक होगी। पहले सप्ताह में पारा सामान्य से 1.1 डिग्री तक अधिक रहा। दो सप्ताह बाद देशभर में तापमान 1.3 डिग्री सेल्सियस नीचे आया। 21 मार्च और 28 मार्च को खत्म हुए सप्ताह में पारा सामान्य से 3.5 और 2.3 डिग्री सेल्सियस गिरा जिससे मौसम ठंडा रहा।

ऐसा होने के पांच प्रमुख कारण
1. दो पश्चिमी विक्षोभ का एकसाथ सक्रिय होने से पारे में गिरावट।
2. राजस्थान और तटीय क्षेत्रों में परिसंचरण का स्तर अधिक होना।
3. ऊपरी क्षोभ मंडल में 120 से 200 किलोमीटर की गति से हवा।
4. बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से नमी के स्तर में बढ़ोतरी।
5. मार्च में देश के कई इलाकों में बेमौसम बरसात से पारा गिरा।

जलवायु परिवर्तन में भारत की भूमिका 4.8 फीसदी
जलवायु संकट के लिए वैश्विक औसत तापमान में भारत की भूमिका 4.8 फीसदी है। वहीं अमेरिका की भागीदारी 17.3 फीसदी है। चीन 12.3 फीसदी के साथ सूची में तीसरे नंबर पर है। नेचर जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार वातावरण में कार्बनडाईऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों का उत्सर्जन सर्वाधिक हो रहा है। अर्थव्यवस्था को तेजी देने की कोशिश में ये गैसें दुनिया के तापमान को बढ़ाने का जरिया बन रही हैं।

तीन गैसें बड़ी जिम्मेदार
ब्रिटेन के टिंडल सेंटर फॉर क्लाइमेट रिसर्च और अन्य संगठनों की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार तीन गैसें वातावरण में गर्मी बढ़ाने की बड़ी कारक हैं। अमेरिका ने 2021 तक इन गैसों के उत्सर्जन से तापमान में 0.28, चीन ने 0.20, रुस ने 0.10, ब्राजील ने 0.08 और भारत ने 0.05 डिग्री सेल्सियस तक वैश्विक तापमान को बढ़ाया है। इसी तरह जापान, कनाडा और ब्रिटेन वैशविक तापमान में 0.03 से 0.05 डिग्री सेल्सियस तक का योगदान दे रहे हैं।

विकसित देशों की भूमिका अहम
शोध पत्र के अनुसार औद्योगिक क्रांति के बाद वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी की दिशा में विकसित देशों की भूमिका अहम है। वैश्विक तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए कार्बन उत्सर्जन में कटौती को लेकर दुनियाभर में काम चल रहा है। इसके बावजूद गैसों के उत्सर्जन और वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी की स्थिति पर कोई खास फर्क नहीं दिख रहा है। विशेषज्ञों का आकलन है कि ये तीन गैसे वातावरण के साथ स्वास्थ्य के लिए भी घातक होंगी।