इसके दो बाप हैं लेकिन किसी को भी इसकी चिंता नहीं… आपकी थाली से गायब हो सकता है नमक

It has two fathers but no one cares about it... Salt may be missing from your plate
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नई दिल्ली: अच्छे से अच्छा मसाला डाल दीजिए लेकिन नमक के बिना खाने के स्वाद नहीं आएगा। महंगाई के इस दौर में नमक पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। देश में नमक उद्योग (salt industry) को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। नमक बनाने वाले किसानों की बुरी हालत है। उन्हें दूसरी फसलों की तरह एमएसपी (MSP) नहीं मिलता है। देश में सबसे ज्यादा नमक गुजरात में होता है। लेकिन पिछले कुछ साल से मॉनसून के लंबा खिंचने से गुजरात में नमक का उत्पादन प्रभावित हुआ है। जानकारों का कहना है कि अगर यही ट्रेंड बना रहता है तो अगले कुछ साल में देश में नमक के उत्पादन में 30 फीसदी तक कमी आ सकती है। मॉनसून के देर से आने और लंबी खिंचने से भी नमक की खेती प्रभावित होती है। समस्या है भी है कि अंग्रेजों के जमाने में नमक उत्पादन को माइनिंग माना जाता था और आज भी वैसी ही व्यवस्था कायम है। नमक की खेती करने वाले किसान अपने लिए वेज सिस्टम और सोशल सिक्योरिटी चाहते हैं।

अमेरिका और चीन के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा नमक उत्पादक देश है। भारत में हर साल करीब तीन करोड़ टन नमक का उत्पादन होता है। भारत करीब एक करोड़ टन नमक का निर्यात करता है जबकि 1.25 करोड़ टन नमक का इस्तेमाल इंडस्ट्रीज में होता है। बाकी नमक रिटेल कस्टमर्स कंज्यूम करते हैं। भारत 55 से अधिक देशों को नमक का निर्यात करता है। भारत के कुल नमक उत्पादन में गुजरात की हिस्सेदारी 76 फीसदी से अधिक है। गुजरात के अलावा राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में नमक का उत्पादन होता है।

कैसे बनता है नमक
हिमाचल और राजस्थान में नमक माइनिंग से निकाला जाता है जबकि बाकी राज्यों में इसे समुद्र के खारे पानी से बनाया जाता है। गुजरात में नमक बनाने का काम अक्टूबर से मई तक चलता है। लेकिन पिछली बार तटीय इलाकों में मॉनसून के अधिक समय तक सक्रिय रहने के कारण यह देरी से शुरू हुआ। फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक इंडियन सॉल्ट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (ISMA) के प्रेजिडेंट भरत रावल ने कहा कि पिछले साल अक्टूबर के पहले हफ्ते तक गुजरात में बारिश हुई। इस कारण किसानों को ज्यादा टाइम नहीं मिला।

अमूमन मॉनसून सितंबर में लौट जाता है और कुछ छिछले तालाबों में समंदर के पानी को इकट्ठा कर लिया जाता है। इसके बाद सूरज की तेज रोशनी में ज्‍यादातर पानी भाप बनकर उड़ जाता है। इनकी तली में नमक इकट्ठा हो जाता है। इसे मशीन की मदद से इकट्ठा कर लिया जाता है। पानी के सूखने की प्रक्रिया में दो से तीन महीने का समय लगता है। जैसे-जैसे पानी उड़ता जाता है, रेत और मिट्टी के साथ ही कैल्शियम कार्बोनेट नीचे बैठते जाते हैं। मशीन से इकट्ठा करने के बाद नमक को धोया जाता है। इसके बाद इसे पैकेट में भरकर भेज देते हैं।

तमिलनाडु में भी समस्या
तमिलनाडु का तूतूकुड़ी जिला देश में नमक के उत्पादन में दूसरे नंबर पर है। लेकिन बेमौसम बारिश का कारण यहां भी नमक का उत्पादन प्रभावित हुआ है। बारिश के कारण नमक की क्यारियों में पानी जमा हो गया है। यहां जनवरी में मॉनसून खत्म होने के बाद नमक की खेती का काम शुरू होता है। अप्रैल से सितंबर तक उत्पादन चरम पर होता है। फिर अक्टूबर में मॉनसून शुरू होने का साथ ही यह काम बंद हो जाता है। इस साल जुलाई और अगस्त में बारिश होने के कारण नमक का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

नमक का इस्तेमाल कई तरह की इंडस्ट्रीज में होता है। इनमें पॉलीस्टर, प्लास्टिक, ग्लास, केमिकल्स और कुछ दूसरी इंडस्ट्रीज शामिल हैं। नमक के उत्पादन में कमी से कीमत बढ़ जाएगी जिससे ये चीजें महंगी हो जाएगी। इन चीजों की कीमत बढ़ने का असर सीधे आपकी जेब पर पड़ेगा। नमक की खेती से करीब पांच लाख लोगों को प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। अभी नमक की खेती में लगे किसानों के प्रति टन नमक के उत्पादन पर 250 से 300 रुपये मिलते हैं। कई बार तो किसानों को लागत मूल्य भी नहीं मिल पाता है।

नमक के दो बाप
द हिंदू की एक रिपोर्ट के मुताबिक रावल ने कहा कि नमक केंद्र का विषय है जबकि जमीन राज्य सरकार के अधीन आती है। यानी नमक के दो बाप हैं लेकिन कोई भी उसकी सुध लेने को तैयार नहीं है। सरकार और मैन्युफैक्चरर्स के स्तर पर इसकी जबावदेही तय होनी चाहिए। हमें पूरे देश के लिए एक साझा नीति की जरूरत है। इस्मा की मांग है कि नकम को माइनिंग प्रॉडक्ट के बजाय एग्रीकल्चर प्रॉडक्ट माना जाना चाहिए।

अंग्रेजों के जमाने में नमक को माइनिंग प्रॉडक्ट माना जाता था क्योंकि आजादी से पहले इसे हिमाचल प्रदेश में खान से निकाला जाता था। लेकिन आज 90 परसेंट नमक समुद्र के खारे पानी से बनाया जाता है। रावल ने कहा कि माइनिंग से केवल 0.5 फीसदी नमक निकाला जाता है जबकि 99.5 परसेंट समुद्र के पानी से बनाया जाता है। उनका कहना है कि नमक एग्रीकल्चरल प्रॉडक्ट माना जाना चाहिए। उनकी साथ ही दलील है कि नमक की खेती सीजनल एक्टिविटी है। यह सालभर चलने वाला काम नहीं है।