यूपी का सियासी मौसम भांपने में फिर नाकाम हुए जयंत, अब एक ही ईलाज

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लखनऊ। चौधरी जयंत सिंह के लिए बतौर सुप्रीमो यह पहली परीक्षा थी पर सियासी मौसम का विज्ञान भांपने में वह चूक कर गए। लगातार पांचवा चुनाव ऐसा है जब रालोद को सत्ता प्राप्ति की राह में करारी मात मिली है। हालांकि यदि यदि सीटों के ग्राफ की बात करें तो इस बार रालोद के पास सीटों की संख्या पिछले चुनाव से बढ़ गई लेकिन इन सीटों के दम पर और गठबंधन की असफलता ने रालोद के भविष्य पर संकट खड़ा कर दिया है।

लगातार तीसरे विधानसभा चुनाव और दो लोकसभा चुनाव में रालोद मात खा गई है। वैसे तो रालोद का असर पश्चिमी उप्र की 136 सीटों पर माना जाता है पर इस चुनाव में 33 सीटों पर लड़ी रालोद .8 सीटें ही जीत सकी। हालांकि पिछले चुनाव से तुलना की जाए तो उसकी व्यक्तिगत सफलता आठ गुना बढ़ी है लेकिन जो अंदाजा सपा रालोद का थिंक टैंक मानकर चल रहा था यह उससे कोसो ही दूर रह गई। चुनाव से पहले और उस दौरान एक समय ऐसा भी आया जब जयंत के सामने भाजपा में शामिल होने का विकल्प भी था।

रणनीतिकारों का मानना था कि रालोद को भाजपा के साथ जाने से बड़ा लाभ हो सकता है। सीटें भी ज्यादा मिल सकती हैं पर यहां जयंत चूक कर गए। उन्होंने सपा के साथ गठबंधन किया। बावजूद इसके कि अखिलेश ने उन्हें उम्मीद से कम 33 सीटें दीं और इनमें भी सात सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को रालोद के चुनाव चिह्न पर उतारने की शर्त थोप दी। इसका भी असर दूर तक गया। रही सही कसर सिवालखास सीट ने पूरी कर दी। यह जिस तरह से गुलाम मोहम्मद को अखिलेश ने रालोद के चिह्न पर टिकट दिया और इसका जमकर विरोध किया, उसने पूरे यूपी में खास तौर से जाट वोटों के इरादों मेें काफी परिवर्तन कर दिया। इसका संदेश भी दूर तक गया।

भविष्य की राहों पर सवाल
अब बड़ा सवाल यह हो गया है कि रालोद का भविष्य क्या होगा। वर्ष 2002 में रालोद भाजपा के साथ 36 सीटों पर लड़ी थे तो 12 जीती थे। 2005 तक सपा के साथ 12 सीट पर रहे। दो उप चुनाव जीतकर सीटें 14 हो गई थी। वर्ष 2012 में रालोद ने कांग्रेस गठबंधन में 36 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ा था और मात्र 8 सीटों पर जीत का स्वाद चखा। हालांकि इससे पहले वर्ष 2007 के चुनाव में रालोद 254 सीटों पर चुनाव लड़ा और सफलता मिली थी मात्र 10 सीटों पर। 2017 के चुनाव में रालोद की दुर्गति हो गई। 277 सीटों पर रालोद ने उम्मीदवार उतारे पर मात्र छपरौली ही बच पाई। ऊपर से छपरौली से जीते सहेंद्र रमाला भी भाजपा में चले गए। रालोद का खाता शून्य हो गया। यही हाल लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में रहा। दोनों ही बार चौधरी अजित सिंह और जयंत चौधरी चुनाव हार गए और रालोद का खाता ही नहीं खुला। अब आगे वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव है। लंबे समय से सत्ता से दूर जयंत लोकसभा चुनाव में किसके साथ रहेंगे

इस चुनाव में रालोद के ये जीते
1. शामली प्रसन्न चौधरी
2. थाना भवन अशरफ अली
3. बुढ़ाना राजपाल बालियान
4. पुरकाजी अनिल कुमार
5. मीरापुर चंदन चौहान
6. सिवाल गुलाम मोहम्मद
7. छपरौली डा. अजय कुमार
8. सादाबाद प्रदीप चौधरी गुड्डू