कभी कंपाउंडर की नौकरी करता था ‘जीवा’, जानें कैसे पश्चिमी यूपी में बनाया खौफ

Jeeva used to work as a compounder, know how he created panic in western UP
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लखनऊ। 90 के दशक में इस इलाके से एक कुख्यात गैंगस्टर निकला. नाम था संजीव माहेश्वरी, जिसने बाद में संजीव जीवा के तौर पर अपराध की दुनिया में अपनी पहचान बनाई.

मुजफ्फरनगर का रहने वाला संजीव शुरुआती जीवन में कंपाउंडर था. नौकरी के दौरान ही उसके मन में अपराध की दुनिया में घुसने का भूत सवार हो गया और उसने अपने दवाखाना के संचालक का ही अपहरण कर लिया. इस वारदात के बाद उसके हौसले बुलंद हो गए और 90 के दशक में जीवा ने कोलकाता के एक कारोबारी के बेटे का अपहरण कर लिया. उसने फिरौती में दो करोड़ रुपए मांगे. ये वह दौर था, जब दो करोड़ रुपए फिरौती मांगना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी.

बजरंगी की गैंग में शामिल होने के बाद मुख्तार से मिला

संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा मुख्तार अंसारी का शूटर भी रहा है. उसका मुख्तार के साथ जुड़ने का किस्सा भी बड़ा रोचक है. दरअसल, 10 फरवरी 1997 को हुई बीजेपी नेता ब्रम्ह दत्त द्विवेदी की हत्या में भी संजीव जीवा का नाम सामने आया था. इस हत्याकांड में जीवा को उम्रकैद की सजा हुई. इसके बाद जीवा मुन्ना बजरंगी गैंग में शामिल हो गया. यहां से उसका संपर्क मुख्तार अंसारी से हो गया.

कृष्णानंद हत्याकांड से भी जुड़ा संजीवा जीवा का नाम

कहा जाता है कि मुख्तार अंसारी को नए-नए हथियारों का शौक था और संजीव जीवा अपने तिकड़म से इन हथियारों को जुगाड़ने में माहिर था. उसकी इस खासियत के कारण ही संजीव को मुख्तार का संरक्षण मिल गया. इसके बाद जीवा का नाम कृष्णानंद राय हत्याकांड में भी सामने आया था.

नाजिम और बरनाला गैंग में भी शामिल रहा है जीवा

संजीव जीवा ने इसके बाद हरिद्वार के नाजिम गैंग में घुसपैठ की. इसके बाद वह सतेंद्र बरनाला गैंग में शामिल हो गया. हालांकि, अलग-अलग गैंग के लिए काम करने के बाद भी संजीव को सुकून नहीं मिला और उसने अपनी गैंग बनाने का फैसला कर लिया.

जेल में ही रहकर अवैध कारोबार चलाता था संजीव

जीवा कई बड़े सफेदपोशों और बड़े उद्योगपतियों के संपर्क में रहकर जेल से ही यूपी और दिल्ली में अपराध करवाता था. चाहे जमीनों पर अवैध कब्जा कर रंगदारी मांगने का मामला हो या गैंग को मजबूत करने के लिए नये लड़कों को पैसे और पॉपर्टी का लालच देना. इन सभी कामों को जीवा जेल में ही बैठकर अंजाम देता था.

दबाव डालकर सस्ते दाम पर खरीद लेता था प्रॉपर्टी

संजीव जीवा तो जेल में था, लेकिन उसके अवैध कामों को बाहर बागपत का रहने वाला अनुज दोघट अंजाम तक पहुंचाता था. जीवा के गुर्गों की निगाहें ऐसी संपत्तियों पर होती थी, जो विवादित हैं. इसके बाद जीवा दबाव बनाकर अनुज के जरिए सस्ते दामों में खरीदकर काफी महंगे दाम में बेचता था.

2017 में पत्नी को रालोद से लड़ाया था चुनाव

गैंगस्टर जीवा के परिवार के लोगों के पास मुजफ्फर नगर और सहारनपुर में कई मोबाइल टावर के ठेके होने की बात भी सामने आई है. अपराध की दुनिया में नाम कायम करने के बाद जीवा ने सियासत में भी किस्मत आजमाने को कोशिश की. साल 2017 में उसने अपनी पत्नी पायल को राष्ट्रीय लोकदल से मुजफ्फरनगर सीट पर चुनाव लड़ा दिया. हालांकि, पायल जीत हासिल नहीं कर सकीं और पांचवे नंबर पर रहीं.