लौट गए हैं लालू, क्या कोई करवट लेने जा रही है बिहार की राजनीति? सारी संभावनाएं जान लीजिए

Lalu has returned, is Bihar politics going to take a turn? explore all possibilities
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पटना: बिहार की राजनीति पर इन दिनों लालू प्रसाद यादव का फोबिया हावी हो गया है। चर्चा है कि राजनीति के माहिर लालू प्रसाद 2023 में कोई बड़ा खेला करने जा रहे हैं। स्थिति तो यह बन गई है लालू प्रसाद के आगमन के पहले ही वर्तमान परिदृष्य में उनकी चुनौतियों का जिक्र जोर-शोर से चल रहा है। इन चुनौतियों में मंत्रिपरिषद विस्तार, प्रो चंद्रशेखर का रामचरितमानस पर दिया गया नकारात्मक बयान और अगड़े-पिछड़ा की राजनीति को ले कर दिया गया बयान शामिल है। इसके अलावा राजस्व मंत्री आलोक मेहता का बयान या फिर मंत्री सुरेंद्र यादव का दिया गया सेना विरोधी बयान भी इन्हीं चुनौतियों का हिस्सा है। खासतौर पर पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह के वो बयान जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कृषि नीति को खराब ठहराते हैं।

स्वास्थ्य और लालू प्रसाद की राजनीति
जिस तरह से लालू प्रसाद ने लंबे समय स्वास्थ लाभ के लिए संघर्ष करते हुए बिताया है, उस हिसाब से उनका शरीर भाग दौड़ की राजनीति करने का इजाजत तो नहीं देंगी। किडनी ट्रांसप्लांट करने के बाद स्वास्थ संबंधी दिए गए निर्देश में एक साल लोगों से दूरी बनाकर रखना इसलिए जरूरी है कि इन्फेक्शन से बचा जाए। अपनी बेटी रोहिणी की किडनी ले कर प्रत्यर्पण करने वाले लालू प्रसाद उनके इस नेक कार्य को जाया नहीं होने देंगे। बड़ी राजनीतिक फेर बदल करने के लिए जरूरी विधायकों की संख्या के साथ साथ दिल्ली-पटना एक करना होगा और इस स्थिति में ये संभव नहीं है।

चुनौतियां और समाधान
महागठबंधन की सरकार के बनने के बाद सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। परस्पर अंतर्विरोध के कारण महागठबंधन के भीतर चुनौतियों का अंबार लगा है। प्रो. चंद्रशेखर ने रामचरितमानस के श्लोक के जरिए मुस्लिम समीकरण के साथ पिछड़ों की राजनीति को हवा देकर जदयू नेतृत्व को असहज कर दिया। राजस्व मंत्री आलोक मेहता ने 90 और 10 प्रतिशत की राजनीति को जिस दिन उजागर किया उसके बाद अगड़े-पिछड़े की राजनीति की गंगा में काफी पानी बह गया है। सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार की कार्यनीति पर भी जो सवाल उठाए गए वह पार्टी स्तर पर कार्रवाई की चौखट पर दम तोड़ता नजर आ रहा है।

2023 में परिवर्तन की क्या वजह हो सकती है ?
राजद की तरफ से कार्रवाई को लेकर शिथिल होना इस बात की ओर इशारा करता है कि राजद नेतृत्व न तो पार्टी को कमजोर करना चाहती है और न ही सरकार को अस्थिर। एक ही वजह परिवर्तन की हो सकती है, जब राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजद मंत्रियों के बयानबाजी से नाराज हो जाएं और वे राजद का साथ छोड़कर चुनाव में जाएं या फिर नई सरकार बनाने के समीकरण पर विचार करें।

सरकार बदलने की कोई वजह नहीं- एक्सपर्ट
राजनीतिक विशेषज्ञ सुधीर शर्मा मानते हैं कि लालू प्रसाद के स्वदेश लौटने से राजनीति में कोई परिवर्तन नहीं होने जा रहा है। बयानवीर राजद नेताओं को लालू प्रसाद एक फोन कर उनकी हैसियत बता सकते थे। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की राजनीति को जो जानते हैं वह यह भी जानते हैं कि नीतीश कुमार बिना लालू प्रसाद से बातचीत किए बगैर 2025 में तेजस्वी यादव को नेतृत्व सौंपने की बात नहीं करते। हां, सरकार बदलने की थोड़ी भी संभावना है तो वह नीतीश कुमार के तेवर पर ही निर्भर है।