‘कई देशों ने सहमति से संबंध बनाने की उम्र कम की, हमें भी करना चाहिए विचार’, बॉम्बे HC की बड़ी टिप्पणी

'Many countries have reduced the age of consensual relationship, we should also consider', Bombay HC's big comment
'Many countries have reduced the age of consensual relationship, we should also consider', Bombay HC's big comment
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मुंबई: बॉम्बे हाईकोर्ट ने किशोरों के लिए सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र सीमा को कम करने पर बड़ी बात कही है. अदालत ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के प्रावधानों के तहत आपराधिक मामलों की बढ़ती संख्या पर अफसोस जाहिर किया, जहां पीड़ितों के किशोर होने और सहमति से संबंध बनाने की जानकारी देने के बावजूद आरोपियों को दंडित किया जाता है. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा,’सहमति की उम्र को आवश्यक रूप से शादी की उम्र से अलग किया जाना चाहिए क्योंकि यौन कृत्य केवल शादी के दायरे में नहीं होते हैं. इस महत्वपूर्ण पहलू पर न केवल समाज, बल्कि न्यायिक प्रणाली को भी ध्यान देना चाहिए.’ कोर्ट ने कहा है कि कई देशों ने किशोरों के लिए सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र कम कर दी है और अब समय आ गया है कि हमारा देश और संसद भी दुनिया भर में हो रही घटनाओं से अवगत हों.

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पीठ ने कहा, ‘समय के साथ, भारत में विभिन्न क़ानूनों द्वारा सहमति की उम्र बढ़ाई गई है. 1940 से 2012 तक इसे 16 वर्ष पर बनाए रखा गया था, जब POCSO अधिनियम ने सहमति की आयु बढ़ाकर 18 वर्ष कर दी, जो संभवतः विश्व स्तर पर सबसे अधिक आयु में से एक थी, क्योंकि अधिकांश देशों ने सहमति की आयु 14 से 16 वर्ष के बीच निर्धारित की है.’ जस्टिस डांगरे ने कहा कि “जर्मनी, इटली, पुर्तगाल और हंगरी जैसे देशों में 14 साल की उम्र के बच्चों को सेक्स के लिए सहमति देने के लिए सक्षम माना जाता है. लंदन और वेल्स में सहमति की उम्र 16 साल है और जापान में यह 13 साल है.’

न्यायमूर्ति डांगरे ने कहा कि जो तस्वीर सामने आई है वह यह है कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से अपेक्षा की जाती है कि वह खुद को यौन गतिविधि में शामिल न करे और यदि वह ऐसा करती भी है, तो गतिविधि में सक्रिय भागीदार होने के नाते, उसकी सहमति सारहीन है और कानून की नजर में सहमति नहीं है. दूसरी तरफ यदि 20 वर्ष की आयु का कोई लड़का भी 17 वर्ष और 364 दिन की लड़की के साथ संबंध बनाता है, तो उसे उसके साथ बलात्कार करने का दोषी पाया जाएगा, जबकि लड़की ने स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है कि यौन संबंध में उसकी सहमति थी.

मामले में दोषी को किया बरी

न्यायमूर्ति भारती डांगरे की पीठ ने 25 वर्षीय व्यक्ति द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही, जिसमें एक विशेष अदालत द्वारा फरवरी 2019 में पारित आदेश को चुनौती दी गई थी. इसमें उसे 17 वर्षीय लड़की से बलात्कार के लिए दोषी ठहराया गया था. शख्स और पीड़ित लड़की ने दावा किया था कि वे आपसी सहमति से रिलेशनशिप में थे. लड़की ने विशेष अदालत को बताया था कि मुस्लिम कानून के तहत उसे बालिग माना जाता है और इसलिए उसने आरोपी व्यक्ति के साथ निकाह किया है. न्यायमूर्ति डांगरे ने दोषसिद्धि के आदेश को रद्द कर दिया और उस व्यक्ति को यह कहते हुए बरी कर दिया कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों से साफ है कि यह सहमति से यौन संबंध का मामला है.

संसद से विचार करने का आग्रह

न्यायमूर्ति डांगरे ने आदेश में कहा कि शारीरिक आकर्षण या मोह का मामला हमेशा सामने आता रहा है.यौन संबंधों की उम्र को लेकर कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि हमारा देश भी दुनिया भर में होने वाली घटनाओं से अवगत हो. जस्टिस डांगरे ने कहा कि हमारे देश के लिए यह आवश्यक है कि वह इस संबंध को लेकर दुनिया भर में जो कुछ भी हो रहा है, उस पर नज़र डालें. अदालत ने कहा, ‘आखिरकार, यह संसद का काम है कि वह उन मामलों पर संज्ञान लेते हुए उक्त मुद्दे पर विचार करे, जो अदालतों के समक्ष आ रहे हैं, जिनमें से अधिकांश रोमांटिक रिलेशनशिप के मामले हैं. किशोरों के मामलों में, जो विपरीत लिंग के आकर्षण में पड़ जाते हैं और आवेग में आकर यौन संबंध बनाते हैं, केवल एक को ही बलात्कार का अपराध करने का आरोप लगने पर परिणाम भुगतना पड़ता है, भले ही दूसरा भी इसमें शामिल हो.’ अदालत ने कहा कि कामुकता का विकास जीवन में जल्दी शुरू होता है और शैशवावस्था, बचपन, किशोरावस्था, वयस्कता से मृत्यु तक जारी रहता है और कामुकता के बारे में आत्म-जागरूकता बचपन के दौरान विकसित होती है.