देश में मंकीपॉक्स की दस्तक, क्या कोरोना जैसे होंगे हालात? एक्सपर्ट्स ने दिया जवाब

Monkeypox's knock in India, will the situation be like Corona? Experts gave the answer
Monkeypox's knock in India, will the situation be like Corona? Experts gave the answer
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नई दिल्ली: देश में मंकीपॉक्स का पहला मामला केरल में मिल चुका है. केरल सरकार की ओर से जानकारी दी गई है कि 35 साल के मरीज की हालत में लगातार सुधार हो रहा है. कोल्म जिले में रहने वाले मरीज ने हाल ही में यूएई की यात्रा की थी. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्थिति की निगरानी के लिए एक केंद्रीय टीम को केरल भेजा है. फिलहाल सवाल है कि जब भारत समेत दुनिया कोरोनाकाल के तीसरे साल में प्रवेश कर रही है, वैसे में मंकीपॉक्स जैसे मेडिकल इमरजेंसी से भारत कैसे निपटेगा? आजतक ने स्थिति का जायजा लेने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों, संक्रामक रोग विशेषज्ञों और डॉक्टरों से बात की.

इंडिया मेडिकल टास्क फोर्स से जुड़े केरल के एक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉक्टर राजीव जयदेवन ने कहा कि कोरोना के विपरीत मंकीपॉक्स तेजी से फैलने वाली बीमारी नहीं है. उन्होंने कहा कि अमेरिका और यूरोप में इस साल करीब छह हजार केस मिले हैं लेकिन इनमें से किसी मरीज की मौत नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि अफ्रीका के कुछ स्थानों में मंकीपॉक्स से एक निश्चित मृत्यु दर थी लेकिन इस बीमारी का कांगो स्ट्रेन कहीं और नहीं फैल रहा है.

डॉक्टर जयदेवन ने कहा कि मंकीपॉक्स का वायरस मुख्य रूप से मरीज के पास होने या फिर शारीरिक संपर्क से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में जाता है. ऐसे में जिन्होंने मंकीपॉक्स से संक्रमित किसी मरीज के संपर्क में आए हैं, उन्हें सावधान रहने की जरूरत है.

फोर्टिज एस्कॉर्ट्स अस्पताल में क्रिटिकल केयर मेडिसिन के डायरेक्टर डॉक्टर सुप्रदीप घोष कहते हैं कि मास्क लगाने से कोरोना को रोकने में मदद मिलती थी लेकिन मंकीपॉक्स वायरस के साथ ऐसा नहीं है. केवल संक्रमित मरीजों के साथ निकटता या फिर शारीरिक संपर्क से बचना होगा.

वहीं, संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि मंकीपॉक्स के ड्रॉपलेट्स या सतहों के माध्यम से फैलने की दूर तक कोई संभावना नहीं है और इस तरह का कोई मामला अबतक सामने नहीं आया है.

मंकीपॉक्स को LGBTQ समुदाय से जोड़ने पर चल रही तीखी बहस

दुनिया भर में मंकीपॉक्स को LGBTQ समुदाय से जोड़ने पर एक तीखी बहस चल रही है, जिससे इस समुदाय के लोगों में आक्रोश है. स्पेशलिस्ट्स का कहना है कि लोगों के एक विशेष समूह पर आरोप लगाना ठीक नहीं है. हालांकि डब्ल्यूएचओ को इसे सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज घोषित करने के लिए और अधिक प्रयास करना चाहिए.

इनफेक्शन डिजीज स्पेशलिस्ट डॉक्टर ईश्वर गिलाडा का कहना है कि यह 21वीं सदी का सेक्शुअली ट्रांसमिटेड डिजीज है. एचआईवी MSM (पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुष) आबादी के बीच शुरू हुआ लेकिन जल्द ही विषमलैंगिक (heterosexually) में भी फैल गया, ऐसा ही मंकीपॉक्स के साथ हो रहा है.

गिलाडा का सुझाव है कि यह भारत के NACO (राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन) के लिए एचआईवी नियंत्रण और उपचार कार्यक्रम में सफलताओं को देखते हुए कदम उठाने का समय है.

‘पालतू जानवरों या बंदरों से दूर रहने की जरूरत नहीं’
विशेषज्ञों का कहना है कि मंकीपॉक्स के बारे में गलत सूचनाओं से हमें सतर्क रहना चाहिए. डॉक्टर जयदेवन कहते हैं कि मंकीपॉक्स का नाम बंदरों से जोड़ना गलत है. पालतू जानवरों जैसे कुत्ते, बिल्ली, और मवेशी और मुर्गी के बारे में चिंतित होने की कोई जरूरत नहीं है.

भारत को आगे क्या करना चाहिए?
डॉक्टर सुप्रदीप घोष का कहना है कि मंकीपॉक्स को देखते हुए सरकारी अस्पतालों में विशेष रूप से मेडिकल हॉस्पिटल्स में तैयारी करने की जरूरत है. वहां आईसीयू स्पेशलिस्ट तैनात करने की जरूरत है जो मंकीपॉक्स के मरीजों का उचित तरीके से इलाज कर सके.

डॉक्टर राजीव जयदेवन कहते हैं कि कोरोना महामारी के दो सालों के दौरान हम लोगों ने सोशल डिस्टेंस और स्वच्छता के जो उपाय सीखे हैं, उन्हें अपनाने और बनाए रखने की जरूरत है जो न सिर्फ कोरोना बल्कि अन्य संक्रामक रोगों को रोकने में मदद करेगी.

ईश्वर गिलाडा कहते हैं कि यह समय चेचक के टीकों का उत्पादन शुरू करने का है. मंकीपॉक्स की रोकथाम और मंकीपॉक्स के मामलों के उपचार दोनों में यह हमारी मदद करेगा.

क्या है मंकीपॉक्स के लक्षण?
मंकीपॉक्स वायरस का इन्क्यूबेशन पीरियड 6 से 13 दिन तक होता है. कई बार 5 से 21 दिन तक का भी हो सकता है. इन्क्यूबेशन पीरियड का मतलब ये होता है कि संक्रमित होने के बाद लक्षण दिखने में कितने दिन लगे. संक्रमित होने के पांच दिन के भीतर बुखार, तेज सिरदर्द, सूजन, पीठ दर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकान जैसे लक्षण दिखते हैं.

मंकीपॉक्स शुरुआत में चिकनपॉक्स, खसरा या चेचक जैसा दिखता है. बुखार होने के एक से तीन दिन बाद त्वचा पर इसका असर दिखना शुरू होता है. शरीर पर दाने निकल आते हैं. हाथ-पैर, हथेलियों, पैरों के तलवों और चेहरे पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं. ये दाने घाव जैसे दिखते हैं और खुद सूखकर गिर जाते हैं.