नई दिल्ली। परिवार नियोजन के उपायों को सफलतापूर्वक क्रियान्वित करने वाले कई दक्षिणी राज्य 2031 के बाद लोकसभा और राज्यसभा में जनसंख्या के आधार पर सीट की संख्या में बदलाव किए जाने पर आपत्ति करेंगे। ये बातें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कही। उन्होंने कहा कि यह कदम देश के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती पेश करेगा।
राज्यसभा के नव-निर्वाचित सदस्यों के लिए एक ओरिएंटेशन कार्यक्रम में जयराम रमेश ने संसद के उच्च सदन की भूमिका और भारतीय लोकतंत्र में इसके योगदान के बारे में चर्चा की। राज्यसभा के जनसंख्या आधारित प्रतिनिधित्व को रेखांकित करते हुए रमेश ने कहा कि प्राय: अमेरिकी सीनेट की तुलना राज्यसभा से की जाती है, लेकिन दोनों के बीच काफी अंतर है। क्योंकि सीनेट (अमेरिकी संसद के उच्च सदन) में सभी प्रांतों के दो प्रतिनिधि होते हैं और यह जनसंख्या के आधार पर नहीं होता। जर्मनी के अलावा ऐसा कोई देश नहीं है, जहां प्रांतों को उनकी जनसंख्या के अनुसार प्रतिनिधित्व दिया जाता हो।
रमेश ने कहा कि जर्मनी के अलावा ऐसा कोई देश नहीं है जहां राज्यों को जनसंख्या के हिसाब से प्रतिनिधित्व दिया जाता हो। राज्यसभा में जनसंख्या आधारित प्रतिनिधित्व संविधान निर्माताओं द्वारा किया गया एक महान नवाचार है। उन्होंने कहा कि देश के सामने सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि 2026 में क्या होगा। क्योंकि दक्षिणी राज्यों को यह आशंका है कि केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश ऐसे राज्य हैं जहां जनसंख्या में गिरावट शुरू हो जाएगी। जबकि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और राजस्थान में जनसंख्या बढ़ रही है।
जयराम रमेश ने अपने एक बयान में कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार एक संशोधन लाई थी। जो कहता था कि 2026 तक कोई परिसीमन नहीं होगा, यानी लोकसभा और राज्यसभा की सीटों की संख्या 2026 तक समान रहेगी। उसके बाद 2031 में पहली जनगणना के अनुसार, सांसदों की संख्या बदली जाएगी।