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नई दिल्ली: मोदी और योगी की जोड़ी अब दक्षिण में कमाल करने के लिए रेडी है। माहौल बनने लगा है। कर्नाटक में अयोध्या की तर्ज पर राम मंदिर बनाने का ब्लूप्रिंट बन गया है। राज्य के अगले बजट में मंदिर निर्माण के फैसले का ऐलान कर दिया जाएगा। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के हाथों से इस प्रोजेक्ट को लॉन्च कराने की योजना बना रही है। सिर्फ इस बात से विपक्षी दल हिल गए हैं। इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। दक्षिण के राज्य कर्नाटक और तेलंगाना भी इनमें शामिल हैं। बीजेपी कर्नाटक में अपना खूंटा गाड़े रखकर तेलंगाना फतह करना चाहती है। यह उसके लिए साउथ में फैलने का रास्ता तैयार कर देगा। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को बीजेपी चैंपियन की तरह देखती है। उन्हें वो करने के लिए जाना जाता है जो कभी नहीं हुआ। उत्तर प्रदेश इसका उदाहरण है। योगी आदित्यनाथ विकास और धर्म की राजनीति का मॉडल पेश कर हवा का रुख बदलने में देर नहीं लगाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी योगी की इस खूबी को जानते हैं। अपने इस सिपहसालार पर इतना भरोसा करने की उनकी यही वजह है। जिस तरह से बीजेपी साउथ के एजेंडे पर सक्रिय है, उसे देखकर लगता है कि वह सारे गुणा-गणित बिगाड़ेगी। मोदी और योगी की युगलबंदी को इसके लिए बीजेपी आगे बढ़ाने वाली है।
योगी और राम मंदिर का नाम आते ही विपक्ष के खड़े हुए कान
कर्नाटक में राम मंदिर और योगी आदित्यनाथ का नाम आते ही विपक्षी दलों के कान खड़े हो गए हैं। कर्नाटक के रामनगर जिले में एक पहाड़ी पर प्राचीन राम मंदिर के पुनर्निर्माण पर काम शुरू करने की योजना है। इसके लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आमंत्रित करने का बीजेपी का प्लान है। जनता दल (सेक्युलर) इस योजना को विफल करने की कोशिश में जुट गया है। सबसे ज्यादा बिलबिलाए हुए हैं एचडी कुमारस्वामी। वह जेडीएस के नेता और पूर्व सीएम हैं। कुमारस्वामी ने आरोप लगाया है कि बीजेपी वोट पाने के लिए मंदिर को चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है। उनका कहना है कि यह काम बीजेपी सत्ता में रहते हुए पहले भी करा सकती थी। वह चाहते हैं कि प्रस्तावित मंदिर का शिलान्यास योगी के हाथों के बजाय आदि चुनचनागिरी और जेएसएस मठों के प्रमुखों से कराया जाए।
हिंंदू और हिंंदुत्व पर खुलकर बोलते हैं यूपी के सीएम
यह पहाड़ी बेंगलुरु से 50 किमी दूर है। इसे रामदेवरा बेट्टा के नाम से जाना जाता है। 1970 के दशक में फिल्म शोले की शूटिंग के बाद से यहां लोगों ने आना शुरू कर दिया था। सिर्फ योगी का नाम आने भर से विपक्ष में खलबली मचने का मतलब निकालना बहुत मुश्किल नहीं है। यूपी के सीएम हिंदुत्व की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं। वह हिंदू और हिंदुत्व पर खुलकर बोलते हैं। उनके आक्रामक तेवर और शैली उन्हें दूसरे नेताओं से अलग करती है। वह बड़ी आसानी से हिंदुओं को एक छतरी के नीचे ले आते हैं। बीजेपी योगी आदित्यनाथ की इस खूबी को पहले भी भुना चुकी है। पीएम मोदी भी इस बात को जानते हैं। उत्तर प्रदेश में योगी वह कर चुके हैं जो कई दशकों तक कोई पार्टी और नेता नहीं कर सका। उनके नेतृत्व में लगातार दूसरी बार बीजेपी सत्ता में लौटी।
मोदी और योगी की जोड़ी से बेचैनी बढ़ना क्यों है लाजिमी
योगी के पास गिनाने के लिए उपलब्धियों की कमी नहीं है। उनके नेतृत्व में राज्य ने विकास के कई मापदंडों को हासिल किया है। योगी के पास दिखाने के लिए विकास और धर्म का अनूठा मॉडल है। इसी मॉडल से वह बीजेपी के लिए तुरुप का इक्का साबित होते रहे हैं। बीजेपी के लिए वह जहां-जहां प्रचार करते हैं, उसके शानदार नतीजे देखने में आए हैं। अब पार्टी फिर योगी के इसी करिश्मे को देखना चाहती हैं। योगी के साथ मोदी की युगलबंदी से धार और तेज हो जाती है। दोनोंं को हिंंदू हृदय सम्राट के तौर पर जाना जाता है। बीजेपी इन दोनों के सहारे साउथ के दरवाजे खोलना चाहती है। हैदराबाद में दो दिवसीय बैठक में भी इसे लेकर चर्चा हुई थी। इसमें उन सीटों पर स्थिति मजबूत करने की योजना बनाई गई थी जहां बीजेपी अब तक कमजोर रही है।