मरने से पहले अतीक ने ISI गैंग के उगल दिए थे सारे राज, बहुत खौफनाक है पूरी कहानी

Before dying, Atiq had spilled all the secrets of ISI gang, the whole story is very scary
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नई दिल्ली: प्रयागराज के चकिया मोहल्ले में माफियागिरी से संसद तक पहुंच जाने वाले उत्तर प्रदेश के खूंखार गैंगस्टर अतीक अहमद की पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) से सांठगांठ का खुलासा हो चुका है। यूपी पुलिस ने शनिवार को हमले में मारे गए अतीक और उसके भाई अशरफ अहमद के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (FIR) में दावा किया है कि इस गैंगस्टर खानदान का पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से भी तालमेल था। शाहजहां पुलिस ने एफआईआर में कहा है कि खुद अतीक ने आईएसआई और लश्कर के साथ लिंक होने की बात कबूली थी। अंग्रेजी न्यूज वेबसाइट फर्स्टपोस्ट डॉट कॉम की खबर के मुताबिक, अतीक आईएसआई से जुड़े जिस गैंग का सरगना था, उसके नाम का भी खुलासा होने का दावा किया जा रहा है। अतीक अपने भाई अशरफ के साथ मारा जा चुका है और उसकी पत्नी शाइस्ता भागी हुई है। दोनों भाइयों की हत्या से पहले अतीक के एक बेटे असद को यूपी पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था। बाकी चार बेटों में दो अली और उमर जेल में हैं जबकि दो नाबालिग बेटे बाल सुधार गृह में हैं।

अतीक आईएस 227 का सरगना, 132 सदस्य
कथित तौर पर अतीक के पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसाई से जुड़े गैंग का नाम IS 227 बताया जाता है। 132 सदस्यों वाले इस गैंग का सरगना अतीक अहमद था तो पत्नी शाइस्ता और तीन बेटे उमर, अली और असद के साथ-साथ भाई अशरफ भी इस गैंग से जुड़े थे। यह गैंग उगाही और जमीन हड़पने जैसे गुनाहों में लिप्त था। इसकी मदद के लिए पाकिस्तान से ड्रोन के जरिए पंजाब में हथियार गिराए जाते थे। खुद अतीक ने कथित तौर पर पुलिस के सामने स्वीकारा, ‘आईएसआई ड्रोन से पंजाब में हथियार भेजा करता है और उससे जुड़े लोग उन हथियारों को उठाकर कुछ हिस्सा लश्कर के आतंकियों, कुछ खालिस्तानियों जबकि .45 बोर पिस्टल, एके-47 और आरडीएक्स जैसे कुछ हथियार मुझे पहुंचा देते हैं। मैं हथियारों का पेमेंट करता हूं। लश्कर और खालिस्तानी आतंकियों से जुड़े लोग मुझसे मिलने भी आया करते हैं। उनकी आपस में बातचीत से लगता है कि वो देश में कुछ बड़ा करने की प्लानिंग करते रहते हैं।’

अतीक ने खुद किया पाकिस्तानी कनेक्शन का खुलासा!
फर्स्टपोस्ट डॉट कॉम के मुताबिक, अतीक ने पूछताछ में यह भी बताया कि उसे आईएसआई और लश्कर से जुड़े लोगों के ठिकानों की जानकारी है, लेकिन जेल से नहीं बताया जा सकता है। उसने कहा, ‘मुझे पता है कि हथियार कहां रखे गए हैं। उन जगहों को कोई मकान संख्या अलॉट नहीं है। अगर आप (पुलिस) मुझे और मेरे भाई को साथ में वहां ले चलें तो मैं उन जगहों की पहचान कर सकता हूं।’ अतीक और अशरफ ने यह भी बताया कि उमेश पाल की दिनदहाड़े हत्या में प्रयुक्त हथियार भी पाकिस्तान से आए थे। हैरानी की बात है कि अतीक और अशरफ को जिस जिगना पिस्टल (Zigana pistol) से मारा गया, उसका भी पाकिस्तानी लिंक है। वैसे तो जिगना पिस्टल तुर्की में बना हुआ है और भारत में बैन है। लेकिन पाकिस्तान से इसकी तस्करी होती रहती है। तुर्की डिफेंस डेली के मुताबिक, पाकिस्तान की गन वैली से मशहूर डेा आदम खेल में जिगना मोडल के पिस्टल की नकल बनाकर तस्करी की जाती है। नकली पिस्टल बनाया तो बिल्कुल असली जैसा ही है, लेकिन उसकी कीमत बहुत कम होती है।

1979 में पहली हत्या, फिर बढ़ता गया रौब
अतीक अहमद ने अपने जीवन की पहली हत्या 1979 में की थी। तब पुलिस ने खुल्दाबाद थाने में उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ था। फिर उसने गैंगस्टर चांद बाबा का गैंग जॉइन कर लिया और रातोंरात चर्चा में आ गया। गैंगस्टर चांद बाबा शोक-ए-इलाही के नाम से भी कुख्यात था। उसकी छवि गरीबों के मसीहा की हुआ करती थी और उसे खूब राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था। यह सब देखकर अतीक के मन में भी नेताओं से सांठगांठ की महत्वाकांक्षा जगी और तब चांद बाबा से उसकी दुश्मनी होने लगी। भले ही उसकी अपने उस्ताद की दुश्मनी मोल लेनी पड़ी, लेकिन अतीक ने अपने कदम वापस नहीं लिए। उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा हिलोरें ले रही थी और आखिरकार उसने 1989 में इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी मैदान में खम ठोंक ही दिया। उधर, चांद बाबा ने भी अतीक के खिलाफ नामांकन का पर्चा भर दिया।

अपने उस्ताद को ही मारकर इलाहाबाद का डॉन बन गया अतीक
एक चुनावी रैली के दौरान चांद बाबा की हत्या हो गई और अतीक अहमद के खिलाफ एफआईआर दर्ज हो गया। इस मर्डर के बाद इलाहाबाद में माफियागिरी का नया बादशाह अतीक अहमद बन गया। 1991 और 1993 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अतीक अहमद ने इलाहाबाद पश्चिम से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की। फिर उसने 1996 में समाजवादी पार्टी (SP) और 2002 में अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़े और विधानसभा पहुंचता गया। 2003 में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी तो अतीक ने अपना दल छोड़कर सपा में वापसी कर ली। पांच बार लगातार विधायक बनकर उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा और बढ़ गई। 2004 में वह फूलपुर से सपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा और संसद पहुंच गया। फूलपुर वही सीट है जहां से कभी देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू जीतकर संसद गए थे।

विधायक राजू पाल की हत्या से बढ़ी धमक
अतीक अहमद ने लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंच तो उसकी विधानसभा सीट खाली हो गई। उप-चुनाव में अतीक ने अपने भाई अशरफ अहमद को कैंडिडेट बनाया। इसी चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (BSP) उम्मीदवार राजू पाल ने अशरफ को पटखनी दी थी। अतीक को लगा जैसे राजू पाल ने उसकी बादशाहत को चुनौती दे दी। उसने राजू पाल को ठिकाने लगाने की सोच ली। उसने 2005 में राजू पाल की हत्या करवा दी। जब विधायक राजूपाल का पोस्टमॉर्टम हुआ तो उनके शरीर से दो दर्जन से भी ज्यादा गोलियां निकाली गईं। अशरफ इस हत्या का मुख्य आरोपी बनाया गया। इलाहाबाद पश्चिम सीट पर फिर उप-चुनाव हुआ। इस बार राजू पाल की विधवा पूजा पाल चुनाव मैदान में उतरीं। अशरफ अहमद ने उन्हें हरा दिया।

अतीक की नजर जिस पर पड़ी, बर्बाद हो गया
अतीक अहमद और अशरफ के खिलाफ हत्या के मुकदमे की मुख्य गवाह बनीं पूजा पाल। गैंगस्टर भाइयों ने इस केस में हर गवाह को धमकाया, जरूरत पड़ी तो मारा। 2006 में इस केस के एक और मुख्य गवाह उमेश पाल को अगवा करने का आरोप अतीक और अशरफ पर लगा। 17 साल बाद 24 फरवरी, 2023 को अतीक ने जेल में बैठे-बैठे उमेश पाल की दिनदहाड़े हत्या करवा दी। चार दशक तक अतीक और अशरफ की मनमानी चलती रही। उसकी नजर जिस पर पड़ जाए, उसकी दुर्गति कोई टालने वाला नहीं। सरकारें पंगु दिखीं, राजनीतिक पार्टियां और नेता उसके सामने पानी भरते दिखे। वह नजारा कौन भूल सकता है जब अतीक अहमद अपने कुत्ते के साथ मुलायम सिंह यादव के मंच पर चढ़ गया और मुलायम उसके कुत्ते से हाथ मिलाते दिखे। जनवरी 2007 में गैंगरेप के आरोपी को मदरसे में जगह दिलवाई। 2016 में अतीक के गुर्गों ने इलाहाबाद में यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों के साथ मारपीट की।

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अतीक के आतंक के आगे घुटने टेकती सियासत, फिर आ गया वो दिन
अतीक की तूती कुछ इस कदर बोलती रही कि एक पार्टी उससे दूरी बरतती तो दूसरी उसके कदम चूमने लगती। 2021 में अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता प्रवीण ने असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम जॉइन कर लिया। उसने इसी वर्ष जनवरी में ओवैसी की पार्टी छोड़कर मायावती की बीएसपी जॉइन की थी। कितनी हैरत की बात है कि राजू पाल भी इसी बीएसपी से विधायक चुने गए थे जिसकी हत्या अतीक और अशरफ ने करवाई थी। लेकिन वो कहते हैं ना- ऊपर वाले के यहां देर है, अंधेर नहीं। दशकों तक सियासत, सत्ता और प्रशासन भले ही अतीक के आतंक के आगे घुटने टेकती रही, लेकिन योगी आदित्यनाथ की सरकार आई तो उसकी उलटी गिनती शुरू हो गई। 24 फरवरी को उसने उमेश पाल की प्रयागराज में दिनदहाड़े हत्या करवाकर अपने विनाश की इबारत खुद ही लिख ली। अब न अतीक है और न अशरफ। अतीक का बेटा असद तो दोनों से पहले ही एनकाउंटर में मारा जा चुका था।